छोटा कद-18 किलो वजन,फिर भी नहीं मानी हार,Doctor बने गणेश बरैया,जानें बुलंद हौसले के पीछे की कहानी..

Aanchal Singh
By Aanchal Singh

Dr Ganesh Baraiya: वो कहते है ना कि हौसलें बुलंद हो, तो कामयाबी मिलने से कोई नहीं रोक सकता है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया डॉ गणेश बरैया ने, जिनकी हाइट 3 फीट, वजन 18 किलो है. अक्सर ऐसा देखा गया है कि कम हाइट वालें लोगों को काफी सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है.कुछ ऐसे होते है, जो थक हार कर शांत बैठ जाते है, तो वही कुछ ऐसे होते है, जो उससे डट कर सामना करते है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया गुजरात के गणेश ने, उन्होंने अपनी कम हाइट को अपनी सफलता में बाधा नहीं बनने दिया और उन्होंने अपना मुकाम हासिल कर लिया.

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कम हाइट बनी बाधा..

दरअसल, गुजरात के रहने वाले गणेश की बहुत ही कम लंबाई है. उनकी हाइट 3 फीट है, जिसकी वजह से उन्हें बहुत सी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था, गणेश की कम लंबाई के चलते उन्हें डॉक्टर बनने से रोका गया.23 साल के गणेश को कुछ सालों पहले ‘मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया’ ने एमबीबीएस करने से रोक दिया था,सिर्फ उनकी कम लंबाई की वजह से.लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी,बल्कि उन्होंने अपने स्कूल प्रिंसिपल की मदद ली और पहले डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर के यहां पहुंचे. उसके बाद राज्य के शिक्षा मंत्री और यहां तक कि वह गुजरात हाइकोर्ट तक चले गए.

सुप्रीम कोर्ट में लगाई गुहार

गुजरात हाइकोर्ट का रुख करते हुए डॉ बरैया ने एमसीआई के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की. वहां से भी उनके हाथ निराशा लगी, लेकिन फिर भी उन्होंने हार नगीं मानी. हाई कोर्ट ने निराशा मिलने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एमसीआई के आदेश को पलट दिया. जिसके बाद उन्होंने साल 2019 में एमबीबीएस में एडमिशन लिया. एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद अब वह भावनगर के सरकारी अस्पताल में इंटर्न के तौर पर काम कर रहे हैं.

डॉ बरैया ने बयां की अपने सफर की मुश्किलें

डॉ बरैया ने न्यूज ऐजेंसी से बात करते हुए बताया कि, ’12वीं क्लास पास करने के बाद मैंने नीट एग्जाम क्लियर किया. मगर मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने मेरा आवेदन इसलिए रिजेक्ट कर दिया, क्योंकि मेरी लंबाई कम थी. उनका कहना था कि मैं अपनी छोटी हाइट की वजह से इमरजेंसी केस हैंडल नहीं कर पाऊंगा. फिर मैंने अपने प्रिंसिपल डॉ. दलपत भाई कटारिया और रेवाशीष सर्वैया से इस बारे में बात कीऔर उनसे पूछा कि हम इसे लेकर क्या कर सकते हैं.’डॉ बरैया ने आगे कहा, ‘उन्होंने मुझे भावनगर के कलेक्टर और गुजरात के शिक्षा मंत्री से मिलने को कहा. उनके बताए रास्ते पर चलते हुए मैंने कलेक्टर से मुलाकात की और फिर हम गुजरात हाइकोर्ट पहुंचे. हमारे साथ दो और उम्मीदवार थे, जो दिव्यांग थे. हमें हाइकोर्ट में हार मिली, फिर हमने सुप्रीम कोर्ट में फैसले को चुनौती दी.’

बरैया ने बताई अपनी रोजना की चुनौतियां

डॉ बरैया से जब उनकी लंबाई कम होने के चलते रोजना की चुनौतियों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि शुरुआत में मरीजों ने मेरी हाइट को लेकर संकोच किया, लेकिन समय के साथ वे कंफर्टेबल हो गए और उन्होंने मुझे डॉक्टर के तौर पर स्वीकार कर लिया. उन्होंने कहा, ‘जब भी मरीज मुझे देखते हैं तो पहले तो थोड़ा चौंक जाते हैं, लेकिन फिर मेरी बात मान लेते हैं और मैं भी उनके शुरुआती व्यवहार को स्वीकार कर लेता हूं. वे मेरे साथ सौहार्दपूर्ण और सकारात्मकता से पेश आते हैं.’

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