Sindoor khela 2024: नवरात्र का पावन पर्व दशमी तिथि के साथ समाप्त हो जाता है, और इसके अगले दिन पूरे भारत में दशहरा मनाया जाता है। विशेष रूप से बंगाली समुदाय में यह पर्व विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है, जिसमें मां दुर्गा की विदाई की जाती है। इस मौके पर बंगाल में एक विशेष परंपरा निभाई जाती है जिसे सिंदूर खेला कहा जाता है। यह परंपरा बंगाली संस्कृति की एक अहम और सुंदर रस्म है, जो हर साल धूमधाम से मनाई जाती है। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि सिंदूर खेला की रस्म क्या है, इसका इतिहास और क्यों इसे इतना खास माना जाता है।
यह बंगाली समुदाय की एक महत्वपूर्ण परंपरा
सिंदूर खेला (Sindoor khela 2024 History) बंगाली समुदाय की एक अनूठी परंपरा है, जिसमें विवाहित महिलाएं मां दुर्गा की मूर्ति को सिंदूर अर्पित करती हैं और फिर आपस में एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर इस रस्म को संपन्न करती हैं। यह रस्म मां दुर्गा के पवित्र विदाई के समय की जाती है, जिसमें उन्हें सम्मान और आशीर्वाद के रूप में सिंदूर अर्पित किया जाता है। इस प्रक्रिया को मां के प्रति आदर और उनकी विदाई के समय प्रेम का प्रतीक माना जाता है। सिंदूर, जो सुहाग का प्रतीक होता है, इसे लगाने का उद्देश्य है कि विवाहित महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन में खुशहाल और संपन्न बनी रहें।
सिंदूर खेला का इतिहास
सिंदूर खेला (Sindoor khela 2024) की परंपरा का इतिहास कई सदियों पुराना है। यह रस्म बंगाल के सांस्कृतिक और धार्मिक आस्थाओं से जुड़ी हुई है। माना जाता है कि मां दुर्गा की विदाई के समय महिलाएं उन्हें विदाई देते हुए अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इसी क्रम में वे एक-दूसरे को भी सिंदूर लगाकर सुखद वैवाहिक जीवन की शुभकामनाएं देती हैं। यह परंपरा शुरू से ही विवाहित महिलाओं तक सीमित रही है, लेकिन अब यह रस्म व्यापक रूप से सभी महिलाओं द्वारा खुशी और एकता का प्रतीक मानी जाती है।
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Sindoor khela का महत्व
बंगाली समाज में सिंदूर खेला एक खास और पवित्र रस्म मानी जाती है। इस परंपरा का संबंध न सिर्फ धार्मिक आस्थाओं से है, बल्कि यह सामाजिक जुड़ाव और महिलाओं के बीच आपसी प्रेम और समर्थन का भी प्रतीक है। जब महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं और एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं, तो यह उनके पारिवारिक जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना के रूप में देखा जाता है।
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सिंदूर खेला की तैयारी और आयोजन
विजयादशमी के दिन सिंदूर खेला (Sindoor khela 2024 Celebration)की तैयारी पहले से की जाती है। महिलाएं सजधज कर लाल बॉर्डर वाली सफेद साड़ी पहनती हैं और मां दुर्गा की मूर्ति के सामने इकट्ठा होती हैं। मां की पूजा करने के बाद, वे एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर इस परंपरा को उत्साहपूर्वक निभाती हैं। यह रस्म न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह बंगाल की सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है।