Sharda Sinha: छठ गीतों के साथ विदा हुईं बिहार कोकिला, पूरे राजकीय सम्मान के साथ हुआ अंतिम संस्कार

बिहार की प्रसिद्ध लोकगायिका शारदा सिन्हा को गुरुवार को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। पटना के राजेंद्र नगर स्थित उनके आवास पर उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए भारी संख्या में लोग जमा हुए थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि अर्पित कर शोक व्यक्त किया।

Akanksha Dikshit
By Akanksha Dikshit
Sharda Sinha

Sharda Sinha Last Rites: बिहार कोकिला और छठ के गीतों को लेकर अपनी पहचान बनाने वाली शारदा सिन्हा (Sharda Sinha) का पटना के गुलबी घाट पर आज अंतिम संस्कार किया गया जहां उनके पति ब्रज कुमार सिन्हा का भी अंतिम संस्कार किया गया था। बिहार की प्रसिद्ध लोकगायिका शारदा सिन्हा को गुरुवार को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। पटना के राजेंद्र नगर स्थित उनके आवास पर उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए भारी संख्या में लोग जमा हुए थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि अर्पित कर शोक व्यक्त किया। गुलबी घाट पर शारदा सिन्हा का अंतिम संस्कार उनके बेटे अंशुमान सिन्हा द्वारा किया गया। अंतिम यात्रा में लोगों की भावनाएँ उमड़ पड़ीं, और बिहार कोकिला का लोकप्रिय छठ गीत ‘दुखवा मिटाईं छठी मैया’ अंतिम यात्रा के दौरान बजाया गया, जो लोगों को भावुक कर गया।

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छठ पर्व के एक दिन पहले हुआ निधन, भावुक हुए प्रशंसक

शारदा सिन्हा के निधन का समय भी भावुक कर देने वाला था, क्योंकि उन्होंने छठ पर्व से एक दिन पहले दुनिया को अलविदा कहा। लोग इसे एक विशेष संयोग मान रहे हैं और उनकी अंतिम इच्छा को विधि का विधान समझ रहे हैं। उनके पुत्र अंशुमान सिन्हा ने बताया कि अपने पति के निधन के बाद शारदा जी टूट चुकी थीं और उन्होंने इच्छा जताई थी कि उन्हें भी गुलबी घाट पर अंतिम विदाई दी जाए। बेटे ने उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उन्हें वहीं विदाई दी।

“बिहार कोकिला” के नाम से प्रसिद्ध थी शारदा सिन्हा

शारदा सिन्हा का नाम बिहार के लोक संगीत में अत्यंत आदर के साथ लिया जाता है। उन्हें “बिहार कोकिला” के रूप में जाना जाता था। शारदा जी ने अपने करियर में कई मशहूर लोकगीत गाए, जिनमें ‘कार्तिक मास इजोरिया’, ‘सूरज भइले बिहान’ जैसे लोकप्रिय छठ गीत शामिल हैं। उनके गीतों ने न केवल बिहार बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी अपार लोकप्रियता हासिल की। उनके गीत ‘छठी मैया आई ना दुअरिया’, ‘द्वार छेकाई’, ‘पटना से’ और ‘कोयल बिन’ जैसे लोकगीत खासतौर पर छठ पूजा और विवाह के अवसरों पर खूब गाए जाते हैं।

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आखिरी छठ गीत बना यादगार

शारदा सिन्हा एक समर्पित छठ उपासक थीं और अपनी खराब सेहत के बावजूद हर वर्ष छठ पर एक नया गीत जरूर रिलीज करती थीं। इस साल भी उन्होंने अपनी मृत्यु से एक दिन पहले ‘दुखवा मिटाईं छठी मैया’ नामक गीत जारी किया था। इस गीत के माध्यम से उन्होंने अपनी बीमारी और संघर्ष की कहानी बयां की, जो उनके चाहने वालों के लिए हमेशा यादगार रहेगा।

मिथिला की बेगम अख्तर के रूप में भी थी मशहूर

बिहार में शास्त्रीय और लोक संगीत के अनोखे मिश्रण के कारण शारदा सिन्हा को “मिथिला की बेगम अख्तर” भी कहा जाता था। शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित सिन्हा ने भोजपुरी, मैथिली और मगही भाषाओं में कई अमूल्य लोकगीत गाए, जिससे उनकी पहचान हर घर तक पहुँची। उनकी कला का सम्मान न केवल बिहार में बल्कि बॉलीवुड में भी हुआ। शारदा जी ने हिट हिंदी फिल्मी गानों में भी अपनी आवाज़ दी, जैसे ‘मैंने प्यार किया’ फिल्म का गीत ‘कहे तोसे सजना’। सलमान खान की इस फिल्म में उनके गीत को काफी सराहा गया और आज भी इसे एक यादगार प्रेम गीत के रूप में जाना जाता है।

फिल्म जगत में बनाई अलग पहचान

शारदा सिन्हा का योगदान न केवल लोक संगीत में था, बल्कि उनके गाए गीतों ने फिल्म उद्योग में भी अपनी जगह बनाई। सलमान खान की फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ के गीत ‘कहे तोसे सजना’ ने भी दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी थी। इस गीत ने शारदा जी की आवाज़ को नई पहचान दी और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा मिली।

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पटना के गुलबी घाट पर उमड़ा जनसैलाब

पटना के गुलबी घाट पर अंतिम दर्शन के लिए शारदा सिन्हा के प्रशंसकों की भारी भीड़ उमड़ी। भाजपा के वरिष्ठ नेता अश्विनी चौबे, पूर्व सांसद रामकृपाल यादव, विधायक संजीव चौरसिया सहित कई गणमान्य लोग उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए। उनके निधन से शारदा सिन्हा के चाहने वालों के बीच गहरा शोक व्याप्त है। लोग उनके गीतों को याद करते हुए उनकी स्मृतियों में खो गए और उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

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लोक संगीत को दिया नया आयाम

शारदा सिन्हा ने लोक संगीत को एक नया मुकाम दिया। उन्होंने लोकगीतों को न केवल आधुनिक स्वरूप दिया बल्कि उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया। उनकी आवाज़ ने कई त्योहारों और अवसरों को खास बना दिया। उनके गीतों के माध्यम से उन्होंने बिहार और मिथिला की संस्कृति को संजोकर रखा और इसे समर्पित भाव से गाया। उनके निधन से बिहार ने अपनी सच्ची लोकगायिका और संस्कृति की एक धरोहर को खो दिया है।

उनकी संगीत विरासत रहेगी हमेशा अमर

शारदा सिन्हा की संगीत यात्रा और उनके लोकगीत आज भी लोगों के दिलों में बसी हैं। उनकी आवाज़ और गीतों में जो अपनापन और लोक संस्कृति की झलक है, वह सदियों तक जीवित रहेगी। उनके गाए हुए छठ और विवाह गीत बिहार की सांस्कृतिक धरोहर हैं, जो उन्हें कभी भुलाने नहीं देंगे।

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