Sambhal Violence: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संभल की शाही जामा मस्जिद के रंगाई-पुताई मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। मस्जिद कमेटी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने फिलहाल केवल सफाई कार्य की अनुमति दी है, जबकि रंगाई-पुताई पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए यह फैसला दिया।
मस्जिद कमेटी ने रंगाई-पुताई की अनुमति मांगी थी

बताते चले कि मस्जिद कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक सिविल रिवीजन याचिका दाखिल की थी, जिसमें मस्जिद में रंगाई-पुताई कराने की अनुमति मांगी गई थी। इस याचिका पर हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से रिपोर्ट मांगी थी, जिसमें मस्जिद की संरचनात्मक स्थिति का जायजा लिया गया था।
ASI रिपोर्ट में संरचनात्मक मरम्मत की जरूरत नहीं बताई गई

ASI ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि मस्जिद की वर्तमान स्थिति में रंगाई-पुताई की कोई आवश्यकता नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार, मस्जिद में कोई भी संरचनात्मक समस्या नहीं है, जिसके लिए मरम्मत या रंगाई की जरूरत हो। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि मस्जिद का ढांचा पूरी तरह सुरक्षित है और इस पर किसी प्रकार की रंगाई करने की आवश्यकता नहीं है।
हाईकोर्ट ने मस्जिद कमेटी को दी सफाई की अनुमति

हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने मस्जिद कमेटी से साफ तौर पर कहा कि वे सिर्फ मस्जिद की सफाई करवा सकते हैं, लेकिन रंगाई-पुताई की अनुमति नहीं दी जा सकती। इसके साथ ही, मस्जिद कमेटी को मंगलवार तक अपनी आपत्ति दर्ज कराने का मौका भी दिया गया है, जिसके बाद मामले की अगली सुनवाई की जाएगी।
मस्जिद के सर्वे का आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में एक तीन सदस्यीय कमेटी गठित करने का आदेश दिया था, जो मस्जिद का सर्वे करेगी। इस कमेटी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) का एक विशेषज्ञ, एक वैज्ञानिक और जिला प्रशासन का एक अधिकारी शामिल होगा। यह कमेटी मस्जिद की संरचनात्मक स्थिति का विस्तृत अध्ययन करेगी और उसकी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपेगी।
कोर्ट ने ASI रिपोर्ट को आधार बना कर फैसला सुनाया

ASI द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के आधार पर हाईकोर्ट ने मस्जिद कमेटी की रंगाई-पुताई वाली याचिका को खारिज कर दिया और फिलहाल इसे टाल दिया। कोर्ट ने कहा कि इस समय मस्जिद में केवल सफाई की ही अनुमति दी जाएगी। यह मामला अयोध्या, काशी और मथुरा जैसे धार्मिक स्थल के विवादों की तरह महत्वपूर्ण है, और इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया है कि कोर्ट मस्जिद की ऐतिहासिक और संरचनात्मक महत्ता को देखते हुए किसी भी तरह की मरम्मत या बदलाव से पहले पर्याप्त जांच-पड़ताल चाहता है।