PM मोदी पहुंचे राजघाट, समाधि स्थल पर अर्पित की पुष्पांजलि…

Shankhdhar Shivi
By Shankhdhar Shivi

महात्मा गांधी की आज जयंती है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के समाधि स्थल राजघाट पर पुष्पांजलि अर्पित की। बता दे कि पीएम मोदी सोमवार सुबह 7:30 बजे राजघाट पहुंचे।

Gandhi Jayanti 2023 : 2 अक्टूबर को हर वर्ष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती मनाई जाती है। मोहनदास करमचंद गांधी, एक ऐसा नाम जो दुनियाभर में अपने दृढ़ निश्चय, सत्य के लिए अटल-अडिग और अंहिसा के रास्ते पर चलकर विजय हासिल करने के लिए जाना जाता है। इस बार देश बापू की 154वीं जयंती मना रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब रूस-यूक्रेन जंग के संबंध में दो टूक कहते हैं कि ‘यह युग युद्ध का नहीं है’ तो उनके इस कथन में महात्मा गांधी का दृष्टिकोण ही झलकता है। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्तूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था। वही गुजरात के पोरबंदर में जन्मे बापू के बर्थडे पर देश भर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

अहिंसा की शक्ति…

गांधीजी द्वारा दी गई सबसे मूल्यवान और स्थायी सीखों में से एक अहिंसा की शक्ति थी, जिसे हम अहिंसा के नाम से भी जानते हैं। महात्मा गांधी ने साबित किया कि शांतिपूर्ण प्रतिरोध महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन ला सकता है। स्कूली छात्रों को इससे सीखना चाहिए और समझना चाहिए कि अक्सर हिंसा में शामिल हुए बिना भी झगड़ों को सुलझाया जा सकता है।

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जब जो बाइडेन को याद आए बापू…

महात्मा गांधी के सिद्धांत आज भी दुनिया को साझा प्रयासों के लिए किस कदर प्रेरित करते हैं, इसकी बानगी हाल में भारत की अध्यक्षता में देश में ही संपन्न हुए जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान देखने को मिली जब दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बापू की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित कर कहा, ”भारत और अमेरिका के बीच साझेदारी महात्मा गांधी के संरक्षक (ट्रस्टीशिप) के सिद्धांत में निहित है, ट्रस्टीशिप जो हमारे देशों के बीच साझा है और जो हमारे साझे ग्रह के लिए है।”

सच्चाई और ईमानदारी…

सत्य और ईमानदारी महात्मा गांधी द्वारा सिखाए गए बुनियादी मूल्य हैं. स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्रयासों से महात्मा गांधी ने हमें दिखाया कि सत्य की ही जीत होती है. यह उनकी वास्तविक जीवन की कई घटनाओं से साबित भी होता है. गांधीजी ने सत्य का जीवन व्यतीत किया और केवल सत्य की खोज की।

बापू ने देखा था ‘स्वच्छ भारत’ का सपना…

बापू की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ में कई ऐसे मौकों का जिक्र है जब उन्होंने स्वच्छता के लिए खुद आगे आकर लोगों को प्रेरित किया. अपने हाथों से सार्वजनिक जगहों पर सफाई की. भारत सरकार की एक वेबसाइट कहती है कि महात्मा गांधी ने ‘स्वच्छ भारत’ का सपना देखा था, वह चाहते थे कि सभी देशवासी मिलकर देश को स्वच्छ बनाने में योगदान दें। उनके इस सपने को पूरा करने के लिए पीएम मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया जो आज भी जारी है। इस बार बापू की जयंती को देखते हुए स्वच्छता अभियान कार्यक्रम के लिए बीजेपी सेवा पखवाड़ा मना रही है। पीएम मोदी को भी इसमें योगदान देते हुए देखा गया. उन्होंने रविवार (1 अक्टूबर) को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक वीडियो शेयर किया, जिसमें पीएम मोदी फिटनेस ट्रेनर अंकित बैयनपुरिया के साथ झाड़ू लगाते हुए नजर आए।

महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता किसने कहा…

महात्मा गांधी को “राष्ट्रपिता” कहने का स्रोत पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने दिया था। सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी को “राष्ट्रपिता” कहकर सम्मानित किया था क्योंकि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका महत्वपूर्ण योगदान था और वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता थे। उसके बाद से “राष्ट्रपिता” का उपयोग गांधी जी के सम्मान में आम तौर से किया जाने लगा।

बापू के अनमोल वचन…

  • आंख के बाद आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी।
  • अपनी गलती को स्वीकारना झाड़ू लगाने के समान है जो धरातल की सतह को चमकदार और साफ कर देती है।
  • व्यक्ति अपने विचारों से निर्मित एक प्राणी है, जो वह सोचता है वही बन जाता है।
  • स्वयं को जानने का सबसे अच्छा तरीका है खुद को दूसरों की सेवा में डुबो देना।
  • जो भी चाहे अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन सकता है, वो सबके भीतर है।
  • निर्मल अंत:करण को जो प्रतीत हो वहीं सत्य है।
  • ऐसे जिएं कि कल आपका आखिरी दिन है और ऐसे सीखें जैसे आपको हमेशा जीवित रहना है।
  • धरती पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन हमारी आवश्यकता पूरी करने के लिए हैं, लालच की पूर्ति के लिए नहीं।
  • अहिंसा कायरता की आड़ नहीं है, अहिंसा वीर व्यक्तियों का सर्वोच्च गुण है, अहिंसा का रास्ता हिंसा के मार्ग की तुलना में कहीं ज्यादा साहस की अपेक्षा रखता है।
  • क्रूरता का उत्तर क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक और बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है।
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