PM Awas Yojana: प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी 2.0 के तहत प्रयागराज में एक बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है, जिसमें तकनीकी प्रकोष्ठ (सीएलटीसी) द्वारा 1062 आवेदकों की फर्जी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) पोर्टल पर अपलोड की गई थी। जांच में यह खुलासा हुआ कि सीएलटीसी के अधिकारी अविनाश मिश्रा ने गलत प्रमाण पत्रों का इस्तेमाल करके इन डीपीआर को अपलोड किया था। इस मामले में सख्त कार्रवाई की जा रही है, और सूडा के निदेशक डॉ. अनिल कुमार ने सीएलटीसी की संबद्धता समाप्त करने और अधिकारी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने के निर्देश दिए हैं।
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ऑनलाइन प्रणाली में फर्जीवाड़ा

प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत वर्तमान में सभी कार्य ऑनलाइन किए जा रहे हैं। जिला स्तर पर सीएलटीसी द्वारा आवेदकों की डीपीआर पोर्टल पर अपलोड की जाती है, जिससे आवेदकों के घर बनाने की प्रक्रिया को मंजूरी मिलती है। प्रयागराज में बड़ी संख्या में आवेदनों के आने की वजह से विभाग ने इन मामलों की जांच शुरू की। जांच के बाद पता चला कि प्रयागराज से कुल 1177 आवेदकों की डीपीआर पोर्टल पर अपलोड की गई थीं, जिनमें से 1062 फर्जी पाई गईं।
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क्या हुआ जांच में?

जांच में पाया गया कि सीएलटीसी के अधिकारी अविनाश मिश्रा ने 1177 आवेदकों की डीपीआर अपलोड की, लेकिन इनमें से 1062 डीपीआर फर्जी थी। यह भी सामने आया कि अविनाश मिश्रा ने जिन प्रमाण पत्रों को पोर्टल पर अपलोड किया था, वे प्रमाण पत्र संबंधित तहसील द्वारा जारी नहीं किए गए थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि अविनाश मिश्रा ने अपने कर्तव्यों का उल्लंघन किया था और कई आवेदकों को झूठे तरीके से फाइले पोर्टल पर डाली थीं।
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प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश

फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद सूडा के निदेशक डॉ. अनिल कुमार ने त्वरित कार्रवाई की और सीएलटीसी की संबद्धता समाप्त कर दी। इसके साथ ही, उन्होंने सीएलटीसी अधिकारी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश दिए हैं ताकि इस घोटाले की गहराई से जांच की जा सके और दोषियों को सजा मिल सके। इस मामले की जांच अब डूडा के परियोजना अधिकारी द्वारा की जाएगी, जो आगे की कार्रवाई करेंगे।
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प्रमुख बिंदु:
पीएम आवास योजना-शहरी 2.0 में प्रयागराज के सीएलटीसी ने 1062 फर्जी डीपीआर अपलोड की थीं।
सीएलटीसी अधिकारी अविनाश मिश्रा द्वारा गलत प्रमाण पत्रों का उपयोग किया गया।
सूडा निदेशक ने सीएलटीसी की संबद्धता समाप्त कर दी और प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश दिए।
जांच के दौरान यह पाया गया कि आवेदकों के प्रमाण पत्र संबंधित तहसील से जारी नहीं किए गए थे।