One Nation One Election: इससे पहले, देश के तीन पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने संसदीय समिति में ‘एक राष्ट्र, एक मत’ प्रस्ताव का समर्थन किया था। लेकिन इस बार पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर और पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने इस विधेयक पर सवाल उठाए हैं। उनका दावा है कि विधेयक में कई खामियां हैं। साथ ही, उनका प्रस्ताव यह भी है कि चुनाव आयोग को असीमित शक्तियां नहीं दी जा सकतीं।
चंद्रचूड़ ने उठाए सवाल
पूर्व मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के अनुसार, हालांकि यह संविधान के मूल ढांचे पर कोई प्रभाव नहीं डालता, फिर भी इस विधेयक में कई खामियां हैं। इसमें और संशोधनों की आवश्यकता है। अन्यथा, भविष्य में इसे कानूनी जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। संविधान में आयोग को बहुत अधिक शक्तियां दी गई हैं। पांच साल तक सरकार न रहने पर सुशासन देना संभव नहीं है। इस बीच, खर्च कम करने की बात को खारिज नहीं किया जा सकता। हालांकि, हमें यह चुनना होगा कि सुशासन या खर्च कम करने में से क्या ज़्यादा जरूरी है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर ने भी कहा कि आयोग की भूमिका को लेकर लोगों के मन में कई सवाल उठ रहे हैं।
क्या है सरकार का तर्क?
गौरतलब है कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक के मसौदे के अनुसार, यदि विधानसभा या लोकसभा बहुमत के अभाव में भंग हो जाती है, तो केवल शेष अवधि के लिए ही लोकसभा या विधानसभा उपचुनाव होंगे। उसके बाद, सभी स्तरों पर चुनाव एक साथ होंगे। सरकार का तर्क है कि इससे भारी खर्च आएगा। विपक्ष का आरोप है कि यदि विधानसभा-लोकसभा-नगरपालिका-पंचायत के चुनाव एक साथ होंगे, तो लोकतंत्र की विविधता नष्ट हो जाएगी। प्रत्येक चुनाव एक अलग मुद्दे पर आधारित होता है। जनता उस अवसर को गँवा देगी।
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