One Nation,One Election: केंद्र सरकार ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (एक देश, एक चुनाव) प्रस्ताव को एक कदम और आगे बढ़ाते हुए केंद्रीय कैबिनेट से मंजूरी प्राप्त कर ली है। इस अहम फैसले के बाद, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुआई में बनी एक उच्चस्तरीय समिति ने इस प्रस्ताव के समर्थन में 32 राजनीतिक दलों को एकजुट किया। हालांकि, 15 पार्टियों ने इसके विरोध में अपना रुख साफ किया है। इस विवादास्पद मुद्दे पर राजनीतिक दलों के बीच असहमति का सिलसिला जारी है, लेकिन इस मसले को हल करने की दिशा में केंद्र सरकार सक्रिय रूप से कदम उठा रही है।
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रामनाथ कोविंद की अगुवाई में बनी समिति ने पेश किया मसौदा
रामनाथ कोविंद ने एक कार्यक्रम के दौरान जानकारी दी कि 5 अक्टूबर को आयोजित सलाह-मशविरे में 32 पार्टियों ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि 15 पार्टियों ने इसे लेकर विरोध जताया। इनमें से कुछ विपक्षी दलों का कहना है कि यह प्रक्रिया लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। हालांकि, कोविंद ने यह भी कहा कि इन विरोधी दलों में से कई ने अतीत में एक साथ चुनाव कराए जाने के पक्ष में समर्थन दिया था।
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एक देश, एक चुनाव: क्या है उद्देश्य?
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का उद्देश्य यह है कि भारत में सभी चुनावों को एक साथ कराया जाए, ताकि चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और लागत प्रभावी बनाया जा सके। इससे निर्वाचन आयोग, सरकार और अन्य संबंधित संस्थाओं पर दबाव कम होगा, साथ ही चुनावी खर्चों में भी कमी आएगी। इसके अलावा, यह प्रणाली देश की राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा दे सकती है, क्योंकि एक साथ चुनाव होने से राजनीतिक पार्टियों को एक समय में चुनावी अभियान चलाने का अवसर मिलेगा।
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क्या हैं विरोधी दलों के तर्क?
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की राह में सबसे बड़ी बाधा उन दलों का विरोध है, जो इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरे के रूप में देखते हैं। उनका कहना है कि यह प्रस्ताव छोटे राज्यों और स्थानीय मुद्दों को नजरअंदाज कर सकता है, जिससे क्षेत्रीय पार्टियों को नुकसान हो सकता है। इसके अलावा, उन्हें यह भी चिंता है कि इस प्रस्ताव से केंद्र सरकार का प्रभाव बढ़ेगा और राज्यों की स्वतंत्रता में कमी आ सकती है।
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‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का भविष्य
अब जबकि केंद्रीय कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, यह संभावना जताई जा रही है कि इस संबंध में शीतकालीन सत्र में विधेयक पेश किए जा सकते हैं। हालांकि, विपक्षी दलों के विरोध और इस प्रस्ताव से जुड़ी कानूनी और संवैधानिक चुनौतियों के कारण यह पूरी प्रक्रिया आसान नहीं होगी।
इस मुद्दे पर आगामी फैसले भारतीय राजनीति के भविष्य को आकार दे सकते हैं, और यह देखना होगा कि क्या सभी राजनीतिक दल एकमत होकर इस प्रस्ताव को लागू करने की दिशा में काम करेंगे या फिर यह एक लंबी कानूनी और राजनीतिक लड़ाई का हिस्सा बन जाएगा।