Kanwar Yatra Nameplate Row: कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) रूट पर दुकानदारों को फिलहाल ‘नेमप्लेट’ लगाने की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने नेमप्लेट लगाने की बाध्यता को खत्म करने का आदेश दिया है, लेकिन यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ है। अब सुप्रीम कोर्ट में ‘नेमप्लेट’ के समर्थन में एक नई याचिका दाखिल की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि इस मामले को जबरदस्ती साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने खुद को इस मुद्दे पर पक्षकार बनाए जाने की मांग भी की है।
शिवभक्तों की सुविधा और कानून व्यवस्था के मद्देनजर निर्देश
कांवड़ यात्रा रूट पर पड़ने वाले खाने-पीने की दुकानों के मालिकों को अपने नाम और कर्मचारियों के नाम साफ-साफ लिखने का आदेश दिया गया था। याचिकाकर्ता सुरजीत सिंह यादव का कहना है कि नेमप्लेट लगाने का निर्देश शिवभक्तों की सुविधा, उनकी आस्था और कानून व्यवस्था को कायम रखने के मद्देनजर दिया गया है। लेकिन कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में इसे बेवजह साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई है। कोर्ट में इस मसले पर याचिका दाखिल करने वाले दुकानदार नहीं हैं, बल्कि वे लोग हैं, जो इसे सियासी रंग देना चाहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सुनवाई के दौरान कहा है कि उपरोक्त निर्देशों के कार्यान्वयन पर रोक लगाने के लिए अंतरिम आदेश पारित करना उचित है। ढाबा मालिकों, फल विक्रेताओं, फेरीवालों समेत खाद्य विक्रेताओं को भोजन या सामग्री का प्रकार प्रदर्शित करने की जरूरत हो सकती है, लेकिन उन्हें मालिकों की पहचान उजागर करने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सरकार को नोटिस भी जारी किया है। कोर्ट का कहना था कि यदि याचिकाकर्ता अन्य राज्यों को जोड़ते हैं तो उन राज्यों को भी नोटिस जारी किया जाएगा।
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याचिका में शिवभक्तों के मूल अधिकारों का हवाला
सुरजीत सिंह यादव ने शिवभक्तों के मूल अधिकारों का हवाला देकर खुद को भी इस मसले में पक्षकार बनाए जाने और उसका पक्ष सुने जाने की मांग की है। उनका कहना है कि नेमप्लेट लगाने का निर्देश शिवभक्तों की आस्था और कानून व्यवस्था के लिहाज से दिया गया है, लेकिन इसे साम्प्रदायिक रंग देने का प्रयास किया जा रहा है। यादव का आरोप है कि इस मामले में याचिका दाखिल करने वाले दुकानदार नहीं, बल्कि वे लोग हैं, जो इस मामले को सियासी रंग देना चाहते हैं।
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उच्चतम न्यायालय की सुनवाई का प्रभाव
हिंदू एकता परिषद (HIP) के महासचिव बजरंग बागड़ा ने कहा, “माननीय उच्चतम न्यायालय ने कांवड़ यात्रियों के मार्ग पर पड़ने वाले ढाबों और अन्य भोजनालयों के मालिकों या संचालकों की पहचान प्रदर्शित करने के संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार के निर्देश पर अंतरिम रोक लगा दी है। इससे हिंदू समुदाय, हिंदू श्रद्धालुओं और कावंड़ यात्रा करने वालों का मनोबल गिरा है।” इस विवाद ने धार्मिक यात्रा और साम्प्रदायिकता के मुद्दों को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है। नेमप्लेट लगाने का उद्देश्य यदि शिवभक्तों की सुविधा और कानून व्यवस्था को बनाए रखना है, तो इसे साम्प्रदायिक रंग देना अनुचित है। दोनों पक्षों को इस मामले में सहयोग और समझदारी से काम लेना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश इस विवाद को शांत करने का एक कदम है, लेकिन इस तरह के मुद्दों को लेकर समाज में उत्पन्न होने वाली विवादास्पद स्थितियों को हल करना जरूरी है। उम्मीद है कि कोर्ट इस मामले में निष्पक्ष और संतुलित निर्णय देगा, जो सभी पक्षों के हितों को ध्यान में रखेगा। इस विवाद ने स्पष्ट कर दिया है कि धार्मिक और सामाजिक मुद्दों को राजनीति से दूर रखकर, सामंजस्य और सहयोग की भावना से ही समाधान निकाला जा सकता है। याचिकाकर्ताओं को भी चाहिए कि वे अपने दावों को तथ्यों पर आधारित करें और साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ावा देने से बचें।
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