Prime Chaupal: राजधानी लखनऊ से सटे गोसाईगंज तहसील के गांवों की हालत देखकर देश के विकास पर सवाल खड़े हो जाते हैं। यहां के गांव आज भी पक्की सड़कों, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, साफ-सफाई और मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। सोचने वाली बात यह है कि जब राजधानी के पास बसे गांवों की यह स्थिति है, तो दूर-दराज के जिलों की क्या हालत होगी? यह तस्वीर उस बंदरबांट को उजागर करती है जो सरकारी योजनाओं के पैसों में की जाती है।
बताते चले कि, गांव मलौली में एक बुजुर्ग महिला अपने जिंदा होने का प्रमाण देने के लिए कैमरे के सामने आईं। इनकी वृद्धावस्था पेंशन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। यह स्थिति सिर्फ एक महिला की नहीं, बल्कि सैकड़ों बुजुर्गों की कहानी है जो पेंशन की आस में सालों से दर-दर भटक रहे हैं। यह सच्चाई सिस्टम की संवेदनहीनता और भ्रष्टाचार की गहराई को दर्शाती है।
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विकास सिर्फ कागज़ों तक सीमित

चाहे केंद्र की मोदी सरकार हो या प्रदेश की योगी सरकार, दोनों ही ग्रामीण विकास को लेकर गंभीर हैं। लेकिन सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कहती है। गांव में विकास के नाम पर की जाने वाली घोषणाएं सिर्फ कागज़ों तक सीमित हैं। पेंशन जैसी बुनियादी योजनाएं भी गरीबों तक नहीं पहुंच पा रही हैं, जिससे उनका जीवन सम्मान के साथ जीना मुश्किल हो गया है।
बेमानी हो गई जल निकासी और शिक्षा व्यवस्था

गांव में जल निकासी के लिए बनाई गई नालियां सिर्फ दिखावे की वस्तु बन गई हैं। वहीं शिक्षा की स्थिति भी चिंताजनक है—स्कूलों पर ताले लगे हैं और बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। संविधान का अनुच्छेद 21A, जो हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार देता है, यहां मज़ाक बन कर रह गया है। यह स्थिति साफ दिखाती है कि कैसे गांवों में सरकार के आदेश और योजनाएं जमीनी स्तर पर लागू नहीं हो पा रही हैं।
हर गरीब को छत का सपना अधूरा

‘हर गरीब को छत’ केंद्र सरकार का एक प्रमुख नारा रहा है, लेकिन गांव मालौली में आज भी कई परिवार मिट्टी के कच्चे मकानों में रह रहे हैं। यहां के लोग अभी भी ऐसी ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं, जिसे देखकर लगता है मानो विकास की रफ्तार इस गांव तक कभी पहुंची ही नहीं।
विकास तक पहुंचने की ठानी मुहिम

प्राइम टीवी ने आवाज़ बुलंद की है। हमने तय किया है कि जब तक सरकारी योजनाओं के पैसे गरीबों तक नहीं पहुंचेंगे, हम चुप नहीं बैठेंगे। यह लड़ाई विकास की है, और हम हर स्तर पर इसे जारी रखेंगे। अब देखना यह होगा कि सरकार इस दर्द को कब सुनेगी और इन गांवों को भी विकास की मुख्यधारा से जोड़ पाएगी या नहीं।