Dimple Yadav News: 1 जुलाई से भारतीय न्याय प्रणाली में तीन नए आपराधिक कानून (new criminal laws) लागू हो गए हैं। भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC), और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की जगह अब भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने ले ली है। समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) की सांसद डिंपल यादव (Dimple Yadav) ने आरोप लगाया है कि ये कानून संसद में बिना किसी चर्चा के पास किए गए हैं।
डिंपल यादव ने यह भी कहा कि अगर कोई व्यक्ति विदेशों में अपने अधिकारों के लिए विरोध करता है तो उन पर भी ये कानून लागू होंगे। उन्होंने दावा किया कि यह कानून देशवासियों पर शिकंजा कसने की तैयारी है।
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न्यायालय में लंबित मामलों का निष्पादन
राजनीतिक दबाव के चलते अब तक कई संगीन मुकदमे कोर्ट से वापस ले लिए जाते थे, लेकिन 1 जुलाई 2024 से लागू होने वाले नए कानूनों के बाद अब यह संभव नहीं हो सकेगा। अब न्यायालय में लंबित आपराधिक मामलों को वापस लेने के लिए पीड़ित को अपनी बात रखने का पूरा अवसर मिलेगा। न्यायालय बिना पीड़ित की सुनवाई के मुकदमा वापस लेने की सहमति नहीं देगा।
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न्याय की अवधारणा को मजबूत करने के प्रयास
नए कानूनों में न्याय की अवधारणा को मजबूत करने के लिए कई प्रविधान किए गए हैं। समयबद्ध न्याय के लिए पुलिस और कोर्ट के लिए सीमाएं भी निर्धारित की गई हैं। छोटे अपराधों में सजा के तौर पर सामुदायिक सेवा का प्रविधान किया गया है। पुलिस विवेचना में तकनीक के अधिक उपयोग के लिए डिजिटल साक्ष्यों को पारंपरिक साक्ष्यों के रूप में मान्यता दी गई है। नए कानूनों में आतंकवाद और संगठित अपराध जैसे नए विषय भी जोड़े गए हैं। ई-एफआईआर और जीरो एफआईआर की भी व्यवस्था की गई है। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने इन तीनों नए कानूनों को तुरंत रोकने की मांग की है और लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव नोटिस दिया है।
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कांग्रेस का विरोध
मनीष तिवारी ने कहा कि इन कानूनों के जरिए पुलिसिया स्टेट की नींव डाली जा रही है और भारत को वेलफेयर स्टेट से पुलिस स्टेट बनाने की दिशा में ले जाया जा रहा है। उन्होंने संसद में इन कानूनों पर पुनः चर्चा की मांग की है। कांग्रेस सांसद बी मनिकम टैगोर और केसी वेणुगोपाल ने नीट-यूजी और यूजीसी नेट जैसी परीक्षाओं में पेपर लीक के मामलों और एनटीए की विफलता पर भी लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव प्रस्तुत किया है।