Naga Sadhus Maha Kumbh 2025: संगम नगरी प्रयागराज में भव्य और दिव्य महाकुंभ की शुरुआत 14 जनवरी 2025 से होगी लेकिन उससे पहले महाकुंभ को लेकर बेहद रोचक कथाएं और प्रचलित कहानियां जानने की लोगों में इच्छाएं जाग्रत हो रही हैं।प्रयागराज महाकुंभ को लेकर योगी सरकार ने इस बार खासी तैयारियां की हैं दुनिया भर से पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए महाकुंभ में अलग-अलग तरह की सुविधाओं की व्यवस्था की गई है ताकि आने वाले संत-महात्माओं को महाकुंभ में किसी तरह की कोई परेशानी ना होने पाए।
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जानिए,शैव अखाड़ों की क्या है संन्यास परंपरा?

12 सालों में एक बार लगने वाले महाकुंभ मेले में पहुंच रहे अलग-अलग अखाड़ों की परंपराएं भी बेहद अजब-गजब और रोचक हैं।13 अखाडों में से एक सात शैव अखाड़े श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं।शैव अखाड़ों की संन्यास परंपरा में शामिल होने के लिए त्यागी सबसे पहले 17 तरह का पिंडदान करते हैं इनमें 16 पिंडदान वो दूसरों के नाम तो 17वां अपने नाम का करके खुद को मृत घोषित कर देते हैं।पिंडदान करने के बाद त्यागी अपने माता-पिता,भाई-बहन,सगे-संबंधी,नाते-रिश्तेदार सभी से सारे रिश्ते समाप्त कर धर्म के प्रचार की ओर आगे बढ़ जाते हैं।
महाकुंभ में पूर्वज गुरुओं की तस्वीरों के साथ रहते नागा साधु

महाकुंभ में संत-महात्माओं के साथ ही दूर-दराज से नागा साधु भी पहुंचते हैं खून के रिश्तों से दूरी बना चुके इन नागा साधुओं को गुरु के रुप में पिता की छाया प्राप्त होती है।नागा साधुओं का अपने गुरु के साथ यह रिश्ता आम तौर पर सामाजिक रिश्तों से भी मजबूत दिखाई देता है क्योंकि यह नागा साधु अपने गुरु,दादा गुरु,परदादा गुरु,सर दादा गुरु और उनके पूर्वज गुरुओं की तस्वीर को अपने सीने से लगाकर घूमते रहते हैं।महाकुंभ मेले में अपने बैठने के स्थान पर ये नागा साधु अपने गुरुओं की तस्वीर और उनके नाम को लगाकर रखते हैं जिससे ये पता चलता है कि,वो किस गुरु परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
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अध्यात्म जीवन में पिता की जगह देते हैं गुरु को स्थान
नागा साधु संन्यासियों के लिए उनकी भौतिक पहचान उनके गुरु के नाम से होती है नागा साधु अपने सभी पुराने रिश्ते पुराने नाम छोड़कर संन्यासी अध्यात्म की दुनिया में प्रवेश करते हैं जिसके कारण उनके पिता की जगह उनके गुरु का नाम होता है।

नागा साधुओं का अध्यात्म की दुनिया में प्रवेश करते ही उनका सबसे करीबी रिश्ता अपने गुरु से होता है उनकी देखरेख में वह अध्यात्म की दुनिया में कदम रखते हैं और उन्हीं के बताए रास्तों पर अपने पूरे जीवन में आगे बढ़ते हैं।उनका मानना होता है कि,गुरु के चेले ही उनके गुरु भाई और उनका परिवार होता है उन रिश्तों को अपने अध्यात्म जीवन में प्रवेश करते ही वो पीछे छोड़ देते हैं जिनके साथ उनका खून का रिश्ता होता है।