Munich Olympics 1972: जब खेल के जश्न के बीच में हुआ आतंकी हमला, 11 इजरायली एथलीट्स का हुआ कत्ल

Akanksha Dikshit
By Akanksha Dikshit
Munich Olympics 1972

Munich Olympics 1972: साल 1972 का म्यूनिख ओलंपिक (Munich Olympics) जर्मनी के लिए एक नया अध्याय लिखने का सुनहरा अवसर था। जर्मनी की सड़कें रौशनी से गुलजार हो उठी थीं, हर तरफ चमक-चांदनी बिखरी थी। जर्मनी इस समर ओलंपिक के आयोजन के जरिए दिखाना चाहता था कि अब वह हिटलर की छाया से पूरी तरह आजाद हो चुका है। हालांकि, इस ओलंपिक में कुछ ऐसा हुआ, जिसे याद कर आज भी रूह कांप जाती है।

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खेल गांव में गूंजी गोलियों की आवाजें

म्यूनिख ओलंपिक का खेल गांव खिलाड़ियों से गुलजार था। जश्न और खुशी का माहौल था। लेकिन 5 सितंबर 1972 की रात को सब कुछ बदल गया। फिलिस्तीन के 8 आतंकवादी, जिनका ग्रुप ‘ब्लैक सेप्टेम्बर’ के नाम से जाना जाता था, खेल गांव की तरफ बढ़े। उनके कंधे पर भारी भरकम स्पोर्ट्स बैग और हाथ में चमचमाती कलाश्निकोव असॉल्ट राइफलें थीं। तड़के करीब 4 बजे ये आतंकी खेल गांव की चारदीवारी के पास पहुंचे और 8 फीट ऊंची दीवार फांदकर खेल गांव में दाखिल हो गए। उस वक्त कुछ अमेरिकी एथलीट रात भर पार्टी करने के बाद अपने फ्लैट की तरफ लौट रहे थे, लेकिन नशे में धुत होने के कारण किसी ने आतंकियों की तरफ ध्यान ही नहीं दिया।

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इजरायली एथलीट्स के फ्लैट पर हमला

आतंकवादी तेज़ी से उस तरफ बढ़े जहां इजरायली एथलीट्स के फ्लैट थे। वे सब गहरी नींद में सो रहे थे। आतंकियों ने पहले मास्टर की से हॉल का दरवाजा खोला और फिर फ्लैट का गेट तोड़ना शुरू कर दिया। इस बीच आहट पाकर इजरायली कुश्ती टीम के रेफरी योसेफ गटफ्रायंड की नींद खुल गई। उन्होंने दरवाजे की तरफ नजर डाली तो सुराख से एक शख्स के हाथ में कलाश्निकोव दिखाई पड़ी। योसेफ तुरंत समझ गए कि कुछ गड़बड़ है और चिल्लाते हुए तुरंत दूसरे एथलीट को आगाह किया।

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योसेफ ने लगा दी जान की बाजी

योसेफ 6 फीट 3 इंच लंबे और 140 किलो वजनी थे जो दरवाजे के पीछे पूरी ताकत लगाकर खड़े हो गए और आतंकियों को रोकने की कोशिश की। करीब 10 सेकंड बाद आतंकी दरवाजा तोड़ने में कामयाब रहे और सबसे पहले योसेफ को पकड़ लिया। इसके बाद उन्होंने दूसरे एथलीट्स को बंदूक की बट मार कर जमीन पर गिरा दिया। इसके बाद आतंकवादी दूसरे फ्लैट्स की तरफ बढ़े, जिनमें इजरायली एथलीट ठहरे थे।

बंधकों को छुड़ाने के लिए आतंकियों ने की मांगे

करीब 25 मिनट बीतते-बीतते फिलिस्तीन आतंकियों ने दो इजरायली एथलीट को जान से मार दिया और दो एथलीट भागने में सफल रहे। 9 एथलीट्स को बंदी बना लिया गया। जो दो इजरायली एथलीट वहां से बचकर भागने में सफल हुए थे, उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया। चंद मिनट के अंदर जर्मन पुलिस खेल गांव में पहुंच गई। पुलिस ने बातचीत शुरू की। इस बीच एक आतंकवादी ने बालकनी से एक कागज नीचे फेंका, जिसमें अंग्रेजी में उनकी मांगें लिखी हुई थीं। सबसे पहली डिमांड थी कि इजरायल और जर्मनी के जेल में बंद उनके 234 साथियों को तुरंत रिहा किया जाए और उन्हें सुरक्षित जगह ले जाने के लिए प्लेन का इंतजाम किया जाए।

इसके लिए सुबह 9:00 बजे तक की डेडलाइन रखी गई। जर्मनी के चांसलर ने इजरायल की प्रधानमंत्री गोल्डा मायर को फोन मिलाया और उन्हें चरमपंथियों की डिमांड के बारे में बताया, लेकिन वह ऐसी कोई मांग मानने के लिए तैयार नहीं हुईं।

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विफल रहा रेस्क्यू ऑपरेशन

जर्मनी की सरकार ने खुद बंधकों को छुड़ाने का प्लान बनाया। उन्होंने आतंकवादियों को अपना जहाज देने को तैयार हो गए। तय किया गया कि जब आतंकवादी इजरायली बंधकों को लेकर मिस्र के लिए रवाना होंगे, उसी समय जर्मन कमांडो उन्हें छुड़ा लेंगे। हालांकि, यह प्लान बुरी तरह फेल हो गया। आतंकवादी जब हेलीकॉप्टर से बंधकों को लेकर एयरपोर्ट पहुंचे तो उन्हें खबर लग गई कि उन्हें मिस्र ले जाने के लिए जो विमान खड़ा है, उसमें पायलट तक नहीं है। उन्हें लगा कि अब उनका आखिरी समय नजदीक आ गया है और उन्होंने उस हेलीकॉप्टर में ग्रेनेड फेंक दिया, जिसमें बंधक थे। देखते ही देखते हेलीकॉप्टर आग का गोला बन गया और सारे 9 इजरायली एथलीट्स की जान चली गई।

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खुफिया एजेंसी ने लिया बदला

इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के चीफ ज्वी जमीर एयरपोर्ट की बिल्डिंग से पूरी घटना देख रहे थे। वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने प्रधानमंत्री गोल्डा मायर (Golda Meir) को फोन मिलाया और कहा, “मेरे पास बहुत बुरी खबर है।” मायर के हाथ से फोन छूटकर नीचे गिर गया। म्यूनिख ओलंपिक में इस तरह अपने खिलाड़ियों की बेरहम हत्या से इजरायल आग बबूला था। संसद में सारे दलों की बैठक बुलाई गई। प्रधानमंत्री गोल्डा मायर ने भर्राई आवाज में आतंकवाद के खिलाफ ‘युद्ध’ का ऐलान किया। संसद में मौजूद हर एक शख्स ने उन्हें समर्थन दिया।

इस घटना के बाद आतंकवादियों से बदला लेने लिए एक खुफिया मिशन लॉन्च किया गया था। जिसका नाम रखा गया था ‘रैथ ऑफ गॉड’ यानी ईश्वर का कोप। इसके बाद मिडिल ईस्ट के अलग-अलग देश में छिपे आतंकवादियों को चुन-चुनकर मार गिरया गया।

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