2024 लोकसभा चुनाव को लेकर झूठी या भ्रामक जानकारियां देने के आरोपों में सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी मेटा को मानहानि का नोटिस भेजने का फैसला किया है।मेटा के प्लेटफॉर्म्स,फेसबुक और इंस्टाग्राम के ऊपर 2024 के चुनावों से संबंधित गलत और भ्रामक जानकारी के प्रसार के आरोप लगे हैं।इस मामले में मेटा के खिलाफ आलोचना हुई है कि,उसने चुनावी प्रक्रिया से संबंधित झूठी खबरों को फैलने से नहीं रोका।
क्या है मामला?

भारत में आगामी चुनावों से पहले और चुनावी प्रक्रिया के दौरान, मेटा प्लेटफॉर्म्स पर कई ऐसी पोस्ट्स और सामग्री सामने आई थीं जिनमें गलत जानकारी, नफरत फैलाने वाली बातें और चुनावी नतीजों के बारे में अफवाहें फैलाने की कोशिश की जा रही थी।यह सामग्री आमतौर पर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही थी,जिससे चुनावी निष्पक्षता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर असर पड़ने का खतरा था।
भारतीय संसदीय समिति ने मेटा को एक नोटिस भेजने का निर्णय लिया है, जिसमें कंपनी से सवाल किया गया है कि,उसने इस तरह की सामग्री को नियंत्रित करने और हटाने के लिए क्या कदम उठाए हैं?समिति ने मेटा से जवाब मांगा है वह इस तरह की गलत जानकारी फैलाने वाली सामग्री को रोकने के लिए क्या कार्यवाहियाँ कर रही है और भारतीय कानूनों का पालन कैसे कर रही है।
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मेटा को नोटिस क्यों भेजा गया?

संसदीय समिति का कहना है कि,मेटा पर यह जिम्मेदारी है कि वह चुनावी नतीजों, राजनीतिक प्रचार, और चुनावी प्रक्रिया से संबंधित किसी भी गलत जानकारी के प्रसार को नियंत्रित करे।भारतीय कानून और नियमों के अनुसार, चुनावी नतीजों के बारे में झूठी जानकारी फैलाना न केवल नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह लोकतांत्रिक संस्थाओं को भी कमजोर कर सकता है।संसदीय समिति ने मेटा से यह स्पष्ट करने के लिए कहा है कि,वह इस प्रकार के मामलों में किस प्रकार से अपने प्लेटफॉर्म्स पर निगरानी रख रही है और उसने गलत सूचना फैलाने को रोकने के लिए क्या प्रभावी कदम उठाए हैं?
मेटा का क्या कहना है?

हालांकि इस मामले पर अब मेटा का पक्ष भी सामने आ सकता है, जिसमें कंपनी कह सकती है कि,वह अपने प्लेटफॉर्म्स पर गलत जानकारी को रोकने के लिए विभिन्न तरह के तकनीकी उपायों और मॉडरेशन प्रक्रियाओं का पालन करती है।कई बार आलोचना यह रही है कि,मेटा इन कदमों को पर्याप्त रूप से लागू नहीं कर पाता, खासकर जब राजनीतिक या संवेदनशील मुद्दों की बात आती है।
संसदीय समिति का कहना है कि,मेटा ने भारत के नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी और डेटा को सुरक्षित रखने में नाकामी दिखाई है और भारतीय कानूनों का पालन नहीं किया है। इसके अलावा, समिति ने मेटा से सवाल पूछा है कि वह गलत जानकारी, नफरत फैलाने वाली सामग्री और फर्जी खबरों को अपनी प्लेटफॉर्म पर कैसे नियंत्रित कर रहा है।

आगे की कार्रवाई
यदि मेटा इस मामले में संतोषजनक जवाब नहीं देती है, तो संसदीय समिति इसके खिलाफ और सख्त कदम उठा सकती है।इसके अलावा अगर मेटा से यह सुनिश्चित नहीं किया जाता कि,वह भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और गोपनीयता का ख्याल रखे तो यह मामला और भी गंभीर हो सकता है।इस घटना को लेकर यह देखा जाएगा कि,क्या मेटा अपने प्लेटफॉर्म्स पर चुनावी सामग्री और गलत सूचना पर प्रभावी नियंत्रण रखता है और क्या भारतीय संसद इसे लेकर किसी और कदम का प्रस्ताव करती है।