Manmohan Singh Death News:पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर 2024 को निधन हो गया। उनका निधन भारतीय राजनीति में एक अहम अध्याय का समापन है। बीते गुरुवार को दिल्ली के एम्स अस्पताल में उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद, उनकी 2014 की आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा गया बयान फिर से चर्चा में आ गया है। इस दौरान उन्होंने कहा था, “इतिहास शायद मेरे साथ न्याय करेगा”। आइए जानते हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा था और इसका क्या संदर्भ था।
2014 की प्रेस कॉन्फ्रेंस: एक ऐतिहासिक बयान
यह घटना 2014 की है, जब डॉ. मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के अंत में थे। उस समय उनकी सरकार को कई संकटों का सामना करना पड़ा था। महंगाई, कोयला घोटाला और टेलीकॉम घोटाले जैसे बड़े मुद्दों ने उनकी सरकार को घेर लिया था। इसके अलावा, विपक्ष और मीडिया ने उन पर कमजोर प्रधानमंत्री होने का आरोप भी लगाया था।इन आलोचनाओं के बीच, डॉ. मनमोहन सिंह ने 2014 में अपनी आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की थी। इस दौरान उन्होंने कहा था, “मैं ईमानदारी से मानता हूं कि मीडिया या फिर संसद में विपक्ष मेरे बारे में चाहे आज जो भी कहे, पर मुझे भरोसा है कि इतिहास मेरे साथ न्याय करेगा”।

यह बयान उनके आत्मविश्वास और दृढ़ विश्वास को दर्शाता था। उन्होंने आगे कहा था कि वह भारत सरकार के कैबिनेट में होने वाली सभी बातों का खुलासा नहीं कर सकते, लेकिन उन्हें यकीन था कि परिस्थितियों और गठबंधन राजनीति की मजबूरी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने जितना संभव हो सका उतना अच्छा काम किया।
आलोचनाओं के बावजूद प्रधानमंत्री के रूप में योगदान
डॉ. मनमोहन सिंह का दूसरा कार्यकाल आलोचनाओं से भरा था। उन पर कमजोर नेतृत्व का आरोप था, लेकिन यह शायद उनकी निपुणता और ईमानदारी को न समझ पाने का परिणाम था। एक अर्थशास्त्री के तौर पर उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था में कई सुधार किए थे, लेकिन उनका कार्यकाल घोटालों, भ्रष्टाचार और महंगाई से जूझ रहा था।

मनमोहन सिंह ने अपनी राजनीति की शुरुआत 1991 में की थी, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने उन्हें वित्त मंत्री नियुक्त किया था। उनके कार्यकाल में भारत ने आर्थिक उदारीकरण की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए थे, जिनकी वजह से आज भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर मजबूत हो चुकी है। हालांकि, उनके बाद की सरकार में इन सुधारों की दिशा में कोई बड़े बदलाव नहीं आए और कई समस्याएं उभरीं।
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भारत सरकार में लंबे समय तक दी सेवाएं
डॉ. मनमोहन सिंह ने 1972 से 1976 तक मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में, 1982 से 1985 तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में और 1985 से 1987 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में भारत की आर्थिक नीतियों में अहम योगदान दिया। बाद में, जब वह प्रधानमंत्री बने, उन्होंने अपने कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी और कई ऐतिहासिक आर्थिक सुधार किए।
‘इतिहास शायद मेरे साथ न्याय करेगा’ – एक आत्ममूल्यांकन
डॉ. मनमोहन सिंह का यह बयान दरअसल अपने कार्यकाल के प्रति उनके आत्ममूल्यांकन का हिस्सा था। उनका विश्वास था कि समय के साथ लोग उनके योगदान और उनके द्वारा उठाए गए निर्णयों को सही ढंग से समझेंगे। उन्होंने जानबूझकर अपनी सरकार के कई निर्णयों के बारे में चुप रहना चुना, क्योंकि राजनीति की जटिलताओं और गठबंधन सरकार के दबावों में कुछ फैसले लेने की मजबूरी थी। उन्होंने यह माना कि उनका काम और उनका दृष्टिकोण भविष्य में सही तरीके से आंका जाएगा।
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मनमोहन सिंह का योगदान
मनमोहन सिंह के योगदान को एक संपूर्ण रूप में समझने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि उन्होंने 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए खोला और भारत को एक नया आर्थिक ढांचा दिया। उनकी नीतियों और निर्णयों ने भारत को आर्थिक सुधारों की दिशा में एक मजबूत कदम बढ़ाने का मौका दिया। हालांकि उनके अंतिम कार्यकाल में कई समस्याएं आईं, लेकिन उनके प्रयासों को इतिहास में जरूर याद किया जाएगा।

उनका यह बयान कि “इतिहास शायद मेरे साथ न्याय करेगा”, अब उनके निधन के बाद एक सच्चाई की तरह प्रतीत होता है, क्योंकि समय ने साबित किया है कि उनके द्वारा किए गए सुधार और योगदान भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के लिए एक अमूल्य धरोहर हैं।