Mahakumbh 2025: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के प्रयागराज में आयोजित होने वाले महाकुंभ 2025 (Mahakumbh 2025) के लिए बस कुछ ही दिन बचे है. सीएम योगी लगातार तैयारियों का जायजा ले रहे है. इस बीच एक बड़े बदलाव की घोषणा की गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाकुंभ में बोली जाने वाली शब्दावली में संशोधन करते हुए दो प्रमुख शब्दों का नाम बदल दिया है। अब महाकुंभ में ‘शाही स्नान’ और ‘पेशवाई’ की जगह ‘अमृत स्नान’ और ‘नगर प्रवेश’ शब्दों का उपयोग किया जाएगा। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है, जब महाकुंभ के दौरान श्रद्धालुओं की भारी संख्या आने की संभावना है और प्रशासन सभी व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने में जुटा हुआ है।
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शाही स्नान का नया नाम ‘अमृत स्नान’

बताते चले कि, महाकुंभ (Mahakumbh) में शाही स्नान (Shahi Snan) का विशेष महत्व होता है। एक महाकुंभ में कुल छह शाही स्नान होते हैं और यह परंपरा सदियों पुरानी है। हालांकि, शास्त्रों में शाही स्नान का कोई उल्लेख नहीं मिलता है फिर भी यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। शाही स्नान का आयोजन उस विशेष मुहूर्त में किया जाता है, जब पहले साधु-संत स्नान करते हैं और उसके बाद आम भक्तों के लिए स्नान की प्रक्रिया शुरू होती है।
इस परंपरा को अब ‘अमृत स्नान’ के नाम से जाना जाएगा। यह बदलाव संतों और अखाड़ों की ओर से लगातार उठाई जा रही मांग के बाद किया गया है। इसके लिए दो नाम सुझाए गए थे, एक ‘राजसी स्नान’ और दूसरा ‘अमृत स्नान’, जिसमें से सरकार ने ‘अमृत स्नान’ को फाइनल किया है। इस बदलाव से यह परंपरा और भी आस्था और धार्मिक महत्व से जुड़ी नजर आएगी।
पेशवाई का नाम बदलकर ‘नगर प्रवेश’

महाकुंभ (Mahakumbh) के दौरान एक अन्य महत्वपूर्ण आयोजन होता है पेशवाई, जो मूल रूप से फारसी शब्द है और जिसका मतलब होता है किसी सम्माननीय व्यक्ति का स्वागत करना। महाकुंभ में इसका उपयोग साधु-संतों के जुलूस के संदर्भ में होता था, जिसमें वे रथ, हाथी-घोड़ों पर सवार होकर महाकुंभ नगरी में प्रवेश करते थे। अब इस शब्द को बदलकर ‘नगर प्रवेश’ कहा जाएगा। पेशवाई के नाम परिवर्तन के लिए संतों और अखाड़ों ने ‘छावनी प्रवेश’, ‘प्रवेशाई’ या ‘नगर प्रवेश’ जैसे नामों की सिफारिश की थी, जिसे स्वीकार कर सरकार ने ‘नगर प्रवेश’ को फाइनल किया है।
संतों और अखाड़ों की रही थी मांग

महाकुंभ (Mahakumbh) के आयोजन से पहले शाही स्नान (Shahi Snan) और पेशवाई के नाम बदलने की मांग संतों और अखाड़ों द्वारा की जा रही थी। उनकी यह मांग यह दर्शाती है कि इन शब्दों में धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता जुड़ी हुई है, और इन बदलावों से महाकुंभ की धार्मिकता और महत्व को एक नई दिशा मिलेगी। इन बदलावों के बाद, महाकुंभ के आयोजन को और भी आस्थावान और श्रद्धालुओं के लिए आकर्षक बनाने की कोशिश की जा रही है। इस बदलाव के साथ, महाकुंभ 2025 को एक नया रूप और नया अर्थ मिलेगा, जो श्रद्धालुओं के अनुभव को और भी समृद्ध और सुखद बनाएगा।
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