महाकुंभ एक विशाल धार्मिक आयोजन है, जो हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह आयोजन हर तीन साल में चार प्रमुख तीर्थस्थलों – इलाहाबाद (प्रयागराज), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में होता है। इसे एक तरह से धार्मिक और आध्यात्मिक पुनर्नविकरण का अवसर माना जाता है। महाकुंभ के बीच एक 14 साल की लड़की, राखी सिंह अब गौरी गिरि महारानी बनी। यह लड़की आगरा के पेठा कारोबारी संदीप उर्फ दिनेश सिंह धाकरे की बेटी है। वह 4 दिन पहले अपने परिवार के साथ महाकुंभ में शामिल होने आई थी। महाकुंभ में नागा साधुओं को देखकर राखी ने संन्यास लेने का फैसला किया। उसने परिवार से घर वापस जाने का अनुरोध किया और इसके बाद अपने माता-पिता से संन्यास लेने की अनुमति मांगी।
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संन्यास महंत कौशल गिरि को दिया दान
राखी का परिवार श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के महंत कौशल गिरि से जुड़ा हुआ है, और इस संबंध के कारण, राखी ने अपना संन्यास महंत कौशल गिरि को दान कर दिया। अब राखी को गौरी गिरि महारानी के नाम से जाना जाता है और वह भगवा वस्त्र धारण कर चुकी हैं।उनके पिता दिनेश सिंह बताते हैं कि जब उन्होंने अपनी बेटी को भगवा वस्त्र में देखा तो उनकी आँखों में आंसू आ गए। परिवार का यह कहना है कि यह उनके लिए एक भावनात्मक और बहुत ही पवित्र पल था।
माता-पिता के लिए अनुभव से भरा भावनाओं का संमुदर
राखी के माता-पिता के लिए यह अनुभव भावनाओं से भरा था क्योंकि उन्होंने अपनी बेटी को इस धार्मिक यात्रा पर चलते हुए देखा। राखी की छोटी बहन निक्की भी है, जो अभी स्कूल में पढ़ाई कर रही है। दिनेश सिंह का परिवार कई वर्षों से श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े के महंत कौशल गिरि के संपर्क में है, और इस संबंध के कारण उन्होंने राखी को इस रास्ते पर भेजने का निर्णय लिया।
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नागा साधुओं को देखकर लिया संन्यास
14 वर्षीय लड़की ने महाकुंभ के दौरान नागा साधुओं को देखकर संन्यास लेने का निर्णय लिया और अपनी आत्मा की शांति के लिए यह कदम उठाया। यह घटना हरिद्वार में आयोजित महाकुंभ मेले की है, जहां धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस लड़की ने संन्यास लेने के बाद अपनी सारी संपत्ति और दान के रूप में अपनी सारी जिम्मेदारियां श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े के महंत कौशल गिरि को सौंप दीं।
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‘महामां’ के रूप में मिली पहचान
इस लड़की का नाम गौरी गिरि रखा गया, और अब वह ‘महामां’ के रूप में जानी जाती हैं। यह कदम उनके जीवन का एक नया मोड़ था, जहां उन्होंने सांसारिक सुखों को त्यागकर आत्मज्ञान और साधना की दिशा में कदम रखा। इस प्रकार, महाकुंभ में उन्हें संन्यास की दीक्षा दी गई और अब वह संन्यासी जीवन जीने की तैयारी में हैं।यह घटना संन्यास और त्याग की परंपरा को दर्शाती है, जो हिंदू धर्म में आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की ओर बढ़ने का मार्ग मानी जाती है। 14 साल की उम्र में संन्यास लेने का यह फैसला एक गहरी आस्था और भक्ति को प्रदर्शित करता है।