मदरसों के बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं होंगे स्थानांतरित, NCPCR की सिफारिशों पर SC ने लगायी रोक….सरकारी फंडिंग रहेगी जारी

Akanksha Dikshit
By Akanksha Dikshit
NCPCR gets a setback

NCPCR gets a setback: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सरकारों द्वारा राइट टू एजुकेशन एक्ट 2009 (Right to Education Act) के तहत मान्यता प्राप्त न करने वाले मदरसों की जांच और मान्यता रद्द करने के आदेश पर रोक लगा दी है। यह आदेश राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की रिपोर्ट के आधार पर दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि ऐसे मदरसे शिक्षा के अधिकार अधिनियम का पालन नहीं कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ (D. Y. Chandrachud), न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल थे, ने मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Muslim organization Jamiat Ulema-e-Hind) की याचिका पर सुनवाई करते हुए इस आदेश पर अंतरिम रोक लगाने का फैसला सुनाया।

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मुस्लिम संगठन ने एनसीपीसीआर की सिफारिशों को दी चुनौती

मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सरकारों के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित करने की बात कही गई थी। संगठन ने इस फैसले को धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों के खिलाफ बताया। शीर्ष अदालत ने इस पर तत्काल रोक लगाते हुए कहा कि एनसीपीसीआर द्वारा 7 जून और 25 जून को जारी किए गए निर्देशों पर कार्रवाई नहीं की जाएगी। साथ ही राज्यों द्वारा इन निर्देशों के आधार पर जारी किए गए आदेश भी फिलहाल निलंबित रहेंगे।

मदरसे बंद करने की नहीं, फंडिंग रोकने की थी सिफारिश

एनसीपीसीआर (NCPCR) के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने स्पष्ट किया कि आयोग ने मदरसों को बंद करने का आदेश नहीं दिया था। उनकी सिफारिश यह थी कि जो मदरसे शिक्षा के अधिकार अधिनियम का पालन नहीं कर रहे हैं, उन्हें सरकारी फंडिंग से वंचित किया जाए। उनका कहना था कि मदरसे गरीब मुस्लिम बच्चों को धर्मनिरपेक्ष शिक्षा से दूर रखकर उन्हें धार्मिक शिक्षा तक सीमित कर रहे हैं। कानूनगो का तर्क था कि सभी बच्चों को समान अवसर मिलने चाहिए, चाहे वे किसी भी धर्म या पृष्ठभूमि से हों। उनका कहना था कि मुस्लिम बच्चों पर केवल धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने का दबाव नहीं डाला जाना चाहिए, बल्कि उन्हें भी अन्य बच्चों की तरह आधुनिक शिक्षा का पूरा अधिकार मिलना चाहिए।

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सपा समेत विपक्ष की कड़ी प्रतिक्रिया

एनसीपीसीआर की रिपोर्ट पर कई विपक्षी नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इसे अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाने की साजिश बताया। उनका आरोप था कि सरकार चुनिंदा तरीके से अल्पसंख्यक संस्थानों को बदनाम करने का प्रयास कर रही है।

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सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद को उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा के अलावा अन्य राज्यों को भी इस याचिका में पक्षकार बनाने की अनुमति दी है। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि एनसीपीसीआर के 27 जून तक के निर्देशों और उसके बाद की सभी कार्रवाई पर फिलहाल रोक जारी रहेगी।

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मदरसों को शिक्षा अधिनियम के दायरे में लाने की मांग

एनसीपीसीआर ने अपनी रिपोर्ट में मदरसों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे और कहा था कि जब तक ये संस्थान शिक्षा के अधिकार अधिनियम का अनुपालन नहीं करते, तब तक इन्हें दी जाने वाली सरकारी फंडिंग बंद कर देनी चाहिए। आयोग ने यह भी सुझाव दिया था कि मदरसों में पढ़ रहे बच्चों को धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक शिक्षा का भी मौका मिलना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के इस फैसले से मदरसों की फंडिंग पर रोक लगाने की एनसीपीसीआर की सिफारिश फिलहाल टल गई है। कोर्ट ने मुस्लिम संगठन की दलीलें सुनते हुए इस पर अंतरिम रोक लगाई है। अब यह देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की आगे की सुनवाई में क्या फैसले लिए जाते हैं और मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा का भविष्य किस दिशा में जाएगा।

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