लोकसभा चुनाव 2024: जानें रायबरेली का चुनावी इतिहास

Laxmi Mishra
By Laxmi Mishra

लोकसभा चुनाव: आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी की नजरें बनी हुई हैं कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता मगर चुनाव को लेकर जोरशोर की तैयारियां शुरू हो गई हैं। बता दे कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अभी से सभी दलों ने तैयारी शुरू कर दी हैं और अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं।

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जानें रायबरेली का इतिहास

रायबरेली उत्तर प्रदेश का एक अभिन्न हिस्सा है, जहां की समृद्ध संस्कृति, भाषा और साहित्य से जुड़ी कहानियां पूरे देश में फेमस है। यह शहर लखनऊ और अयोध्या से काफी पास है, यही कारण है कि यहां पर लोग ज्यादातर अवधि भाषा ही बोलते हैं। यह एक फलता-फूलता शहर था जो कला और संस्कृति के लिए तो जाना जाता ही है, लेकिन इसके साथ ही यहां से लोगों को काम करने के कई अवसर भी दिए जाते हैं। कहा जाता है कि त्रेता युग के दौरान यह शहर कौशल साम्राज्य का ही एक हिस्सा हुआ करता था। जहां भगवान श्रीराम का शासन था। कोशल साम्राज्य की राजधानी अयोध्या थी, जो आज भी रायबरेली के बहुत करीब है।

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यूपी की 80 सीटो में रायबरेली जिला अंग्रेजों द्वारा 1858 में बसाया गया था। रायबरेली अपने मुख्यालय शहर के बाद नामित किया था। परंपरा यह है कि शहर भरो द्वारा स्थापित किया गया था जो भरौली या बरौली के नाम से जानी जाती थी जो बाद में परिवर्तित होकर बरेली बन गयी। 13वीं सदी के शुरूआत में रायबरेली पर भरो का शासन था जिनको राजपूतो और कुछ मामलो में कुछ मुस्लिम उपनिवेशवादीयो द्वारा विस्थापित कर दिया गया था।

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भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुवात

जब 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुवात हुई थी और जिळा किसी भी अन्य स्थान के लोगों से पीछे नहीं था। फिर यहाँ जन गिरफ्तारी, सामूहिक जुर्माना, लाठी भांजना और पुलिस फायरिंग की गई थी। जिसके चलते सरेनी में उत्तेजित भीड़ पर पुलिस ने गोलीबारी की जिसमे कई लोग शहीद हो गए और कई अपंग हो गए। इस जिले के लोग उत्साहपूर्वक व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया और बड़े पैमाने में गिरफ्तारी दीं जिसने विदेशी जड़ो को हिलाकर रख दिया।

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ऐसे में देखा जाएं तो रायबरेली में आजादी की अनेकों गाथाएं हैं। उन्नाव के बैसवारा ताल्लुक के राजा राना बेनी माधव सिंह ने रायबरेली के एक बड़े हिस्से में अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ क्रांति की मशाल जलाई थी। अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले राजा बेनी माधव रायबरेली जिले के लिए महानायक बने। सन् 1857 की क्रांति के दौरान जनपद रायबरेली में बेनी माधव ने 18 महीने तक जिले को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराया था। जिसके चलते रायबरेली, उन्नाव और लखनऊ में लोगों को अंग्रेजों की दरिंदगी का सामना करने के लिए बैसवारा के राणा बेनीमाधव ने हजारों किसानों, मजदूरों को जोड़ कर क्रांति की जो मशाल जलाई उससे अंग्रेजों के दंभ को चूरचूर कर दिया गया।

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यूपी का व्यापारिक केन्द्र रायबरेली

बताते चले कि यह जिला लखनऊ से 80 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है। रायबरेली उत्तर प्रदेश राज्य का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र है। रायबरेली में केंद्र सरकार के प्रमुख उद्योगों की स्थापना की गई है जिनमें आधुनिक रेल डिब्बा कारखाना, इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज एवं नेशनल थर्मल पॉवर कार्पोरेशन मुख्य है। यहाँ पर अनेक प्राचीन इमारतें हैं। जिनमें किला, महल और कुछ सुन्दर मस्जिदें हैं।

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आपको बतादें कि यह श्रीमती इंदिरा गांधी का निर्वाचन क्षेत्र रहा है। यहां पर उत्तर प्रदेश का पहला ऐम्स स्थापित हुआ है और देश के कई उच्च शिक्षा एवं शोध संस्थान भी हैं। जैसे- नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, पेट्रोलियम संस्थान एवं देश का प्रथम राष्ट्रीय विमानन विश्वविद्यालय।

प्रशासनिक रूप में जिले का इतिहास

वहीं अगर इतिहास के पन्नों में इस जिले को देखे तो 13 वीं सदी की शुरुआत में, क्या अब रायबरेली और इसके चारों ओर इलाकों राजभर राजपूतों द्वारा विस्थापित थे और कुछ मामलों में कुछ मुस्लिम द्वारा यह जिला शासित था। जिले के दक्षिण पश्चिमी भाग बैस राजपूतों द्वारा कब्जा किया गया था। कानपुर और अमेठी वाले, अन्य राजपूत कुलों, खुद को उत्तर पूर्व और पूर्व में स्थापित थे।

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सरेनी, खिरो और रायबरेली के परगना के पश्चिमी भाग के परगना लखनऊ के सिरकार्स का हिस्सा बनाया। 1762 में, मानिकपुर के सिरकार्स अवध के क्षेत्र में शामिल किया गया था और चकल्दार के तहत रखा गया था। 1858 में, रायबरेली में मुख्यालय के साथ लखनऊ डिवीजन के एक भाग के रूप में एक नए जिले, फार्म प्रस्तावित किया गया था। जिले के रूप में तो गठित और मौजूदा एक से आकृति और आकार में बहुत अलग था और चार तहसीलों, रायबरेली, हैदरगढ़, बछरावा और डलमऊ में विभाजित किया गया था।

जिले का यूपी में हिस्सा

यह व्यवस्था बहुत अनियमित आकार के, 13 कि.मी. लम्बा और 100 कि.मी. चौड़ा एक जिले में हुई। रायबरेली जिला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है। इस जिले का मुख्यालय रायबरेली में स्थित है। यह उत्तर प्रदेश के मध्य हिस्से में स्थित है। इस जिले के उत्तर में बड़ा बांकी जिला, दक्षिण में कौशाम्बी जिला, पूर्व में अमेठी जिला, पश्चिम में उन्नाव जिला, दक्षिण-पूर्व में प्रतापगढ़ जिला, दक्षिण-पश्चिम में फतेहपुर जिला तथा उत्तर-पश्चिम में लखनऊ जिला स्थित है।

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16 बार कांग्रेस की रही विजय

यूपी के रायबरेली सीट पर काफी लम्बे समय से गांधी परिवार का कब्जा रहा हैं, जहां से इस वक्त भी यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी सांसद हैं, वहीं 2009 और 2014 में समाजवादी पार्टी ने सोनिया गांधी के खिलाफ प्रत्याशी नहीं उतारा था, जिसके चलते 2009 में सोनिया गांधी 3,72,000 से ज्यादा वोटों से चुनाव जीतीं थीं। तो वहीं 2014 में सोनिया गांधी 3,52,000 वोटों से विजयी हुईं थीं, यहां के 16 लोकसभा चुनावों और 3 उपचुनावों में कांग्रेस ने 16 बार जीत दर्ज की, 1977 में भारतीय लोकदल और 1996, 1998 में बीजेपी ने इस सीट पर जीत दर्ज की, बीएसपी इस सीट पर अभी तक खाता नहीं खोल सकी है और एसपी लगातार 2 चुनावों से इस सीट पर प्रत्याशी नहीं उतार रही है।

इस वीआईपी जिले की संसदीय सीट पर 16 बार कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की है। भारतीय जनता पार्टी के अशोक सिंह ने 2 बार जीत दर्ज की है। एक बार जनता पार्टी के राजनारायण ने जीत दर्ज की है। बसपा और सपा अभी तक यहां खाता तक नहीं खोल पाए हैं। वर्तमान में यहां सांसद सोनिया गांधी हैं।

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जानें रायबरेली सदस्य की लिस्ट

  • 1952 – लोकसभा के सदस्य – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1952 – बैजनाथ कुरील – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1952 – फ़िरोज़ गांधी – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1952 – विशंभर दयाल – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1952 – स्वामी रामानंद – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1957 – बैजनाथ कुरील – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1957 – फ़िरोज़ गांधी – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1960 – आरपी सिंह – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1962 – बैजनाथ कुरील – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1967 – इंदिरा गांधी – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1971 – इंदिरा गांधी – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1977 – राज नारायण – जनता पार्टी
  • 1980 – इंदिरा गांधी – जनता पार्टी
  • 1980^ – अरुण नेहरू – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1984 – अरुण नेहरू – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1989 – शीला कौल – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1991 – शीला कौल – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1996 – अशोक सिंह – भारतीय जनता पार्टी
  • 1998 – अशोक सिंह – भारतीय जनता पार्टी
  • 1999 – सतीश शर्मा – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 2004 – सोनिया गांधी – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 2006^ – सोनिया गांधी – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 2009 – सोनिया गांधी – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 2014 – सोनिया गांधी – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 2019 – सोनिया गांधी – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

जातीय समीकरण

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वहीं अगर जिले के जातीय समीकरण की बात करें तो इस जिले में ब्राह्मण – 11%, ठाकुर – 9 %, यादव – 7%, एससी- 34 %, मुस्लिम – 6 %, लोध – 6 % कुर्मी – 4 % और अन्य लोगों की बात करें तो 23 % जिसमें जिले के 779813 कुल मतदाता हैं। साथ ही पुरुष मतदाता की संख्या-870954, और महिला मतदाता की संख्या 779813 हैं। वहीं इस बार लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी, सपा और कांग्रेस है मगर देखना यह है कि इस बार किसके हाथ में लोकसभा चुनाव के जीत का परचम लहरेगा।

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