जानें प्राइम टीवी की खास लेख में अब्दुल हमीद की वीर गाथा

Laxmi Mishra
By Laxmi Mishra
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  • अब्दुल हमीद की वीर गाथा

यूपी ब्यूरो- गौरव श्रीवास्तव
“आओ झुक कर सलाम करे उनको,
जिनके हिस्से मे ये मुकाम आता है,
खुशनसीब होता है वो खून
जो देश के काम आता है
जय हिन्द जय शहीद”
Abdul Hamid Indian soldier: अब्दुल हमीद वो वीर जिसकी वीर गाथा हम सभी ने अपने बचपन के दौरान अपनी पाठ्य पुस्तकों में पढ़ी थी। और उसको पढ़ने के बाद हम सबके के अंदर देश के लिए मर मिटने के भाव आ जाते थे। आज उसी वीर अब्दुल हमीद की जयंती है। प्राइम टीवी ने अपने इस लेख के माध्यम से उस अमर वीर सपूत को अपना नमन किया है।

जानें जीवन गाथा

युद्ध में दुश्मनों के छक्के छुड़ा देने वाले वीर अब्दुल हमीद उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के एक मामूली परिवार में एक जुलाई 1933 को जन्मे थे। अब्दुल हमीद के वीरता की गाथा शब्दों में नहीं पिरोई जा सकती। क्योंकि 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान वीर अब्दुल हमीद ने न सिर्फ पाकिस्तानी दुश्मनों के दांत खट्टे किए, बल्कि पाक के सात पैटर्न टैंकों के परखच्चे उड़ा दिए।

इसी दौरान वह दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए। परिवार वाले बताते हैं कि पाकिस्तान से युद्ध के दौरान घर से निकलते ही अब्दुल हमीद के साथ अपशगुन हुआ था। पिता ने रोका, लेकिन वह नहीं रुके। उन्होंने उस दौरान अपनी पत्नी से सिर्फ यही कहा था, ”तुम बच्चों का ख्याल रखना, अल्लाह ने चाहा तो जल्द मुलाकात होगी।

शहीद वीर अब्दुल हमीद के पिता अपने क्षेत्र के पहलवानों में गिने जाते थे, लेकिन गरीबी की वजह से आजीविका के लिए वह सिलाई का काम करते थे। बेहद तंगी की हालत में पहलवान मोहम्मद उस्मान खलीफा ने अपने बड़े बेटे वीर अब्दुल हमीद को किसी तरह 5वीं तक की पढ़ाई पूरी करवाई।

लोग बताते है कि अब्दुल हमीद का मन भले ही पढ़ने में न लगता हो, लेकिन स्कूल जाते समय वह गांव के अन्य बच्चों को भी पकड़कर स्कूल पहुंचाते थे। वह चाहते थे कि गांव के सभी बच्चे अच्छी शिक्षा पाए। अब्दुल हमीद ने 27 दिसंबर 1954 को भारतीय सेना में सैनिक के रूप में देश सेवा शुरू की।

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1962 में भारत-चीन का युद्ध

सेना में भर्ती होने के बाद सबसे पहली बार 1962 में भारत-चीन युद्ध में अब्दुल हमीद ने अपनी वीरता दिखाई। गोलियों से घायल होने के बावजूद घुटनों और कोहनियों के बल पर चलते हुए अब्दुल ने चीन द्वारा कब्जा किए गए 14-15 किलोमीटर एरिया को क्रॉस करते हुए भारत-चीन के ओरिजिनल बॉर्डर पर तिरंगा लहराया था।

युद्ध के दौरान भारतीय सेना को पता नहीं था कि अब्दुल हमीद जिंदा हैं। युद्ध खत्म होने के बाद जब पीछे से गई सेना की टुकड़ियों ने सैनिकों को शाम को बटोरना शुरू किया तो उन्हीं के बीच घायल हालत में अब्दुल हमीद मिले। वीरता को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें नेशनल सेना मेडल दिया।

पाक सेना के कर दिए थदांत खट्टे

थल सेना में तैनात अब्दुल हमीद जब 33 साल के थे। 1965 की भारत-पाक जंग के दौरान दुश्मन देश की फौज ने अभेद पैटर्न टैंकों के साथ 10 सितंबर को पंजाब प्रांत के खेमकरन सेक्टर में हमला बोला। भारतीय थल सेना की चौथी बटालियन की ग्रेनेडियर यूनिट में तैनात कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद अपनी जीप में सवार दुश्मन फौज को रोकने के लिए आगे बढ़े।

पैटर्न टैंकों का ग्रेनेड के जरिए सामना करना शुरू कर दिया। दुश्मन फौज हैरत में पड़ गई और भीषण गोलाबारी के बीच पलक झपकते ही अब्दुल हमीद के अचूक निशाने ने पाक सेना के पहले पैटर्न टैंक के परखच्चे उड़ा दिए। मोर्चा संभाले अब्दुल हमीद ने पाक फौज की अग्रिम पंक्ति के सात पैटर्न टैंकों को चंद मिनटों मे ही धाराशायी कर दिया था।

पाक फौज के पैटर्न टैंकों से निकला एक गोला अब्दुल हमीद की जीप पर आ गिरा। देश की सरहद की सुरक्षा मे तैनात गाजीपुर के इस लाल ने सन 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान न सिर्फ दुश्मन देश के 7 पैटर्न टैंकों के परखच्चे उड़ाकर पाक सेना के दांत खट्टे कर दिए, बल्कि वतन की रक्षा करते हुए अपनी जान की कुर्बानी दे दी।

भारत-पाक के बीच 1965 का युद्ध

भारत-पाक के बीच 1965 में युद्ध छिड़ा। उस समय अब्दुल हमीद छुट्टियों में घर आए हुए थे। रेडियो पर सूचना मिलते ही उन्होंने पिता से छिपाते हुए सिर्फ पत्नी रसूलन बीबी से कहा, ”मेरी छुट्टियां खत्म हो गई हैं और मुझे वापस जाना होगा।” परिवार से युद्ध शुरू होने की बात छिपाई : वीर अब्दुल हमीद ने पूरे परिवार से युद्ध शुरू होने की बात छिपा दी। ताकि उन्हें जाने से कोई रोक न पाए। उन्होंने चुपके से अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया। अब्दुल के वापस जाने की सूचना सिर्फ उनकी पत्नी रसूलन बीबी और दोस्त बच्चा सिंह को थी।

तब उन्होंने अपने दोस्त से कहा कि वह भोर में चुपके से साइकिल लेकर घर के बाहर आ जाए, ताकि कुछ सामान रेलवे स्टेशन तक पहुंचाया जा सके। लेकिन सुबह निकलते वक्त सब लोग इस रहस्य को जान गए।

अब्दुल हमीद की शहादत के बाद पत्नी को मिला परमवीर चक्र

तब अब्दुल हमीद ने कहा था, अपना देश भी तो परिवार है। और रसूलन बीबी को प्रदान किया गया परमवीर चक्र 1965 के भारत-पाक युद्ध में वीर अब्दुल हमीद की शहादत के एक हफ्ते बाद 16 सितंबर 1965 को भारत सरकार ने देश का सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र देने की घोषणा की। 26 जनवरी 1966 गणतंत्र दिवस पर तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने वीर अब्दुल हमीद की पत्नी रसूलन बीबी को परमवीर चक्र प्रदान किया।

फिल्मकार चेतन आनंद द्वारा बनाए गए टीवी सीरियल परमवीर चक्र विजेता में मशहूर कलाकार नसीरुद्दीन शाह ने अब्दुल हमीद की भूमिका निभाई है। जबकि, आर्मी पोस्टल सर्विस की ओर से वीर अब्दुल हमीद की स्मृति में 10 सितंबर 1979 और 28 जनवरी 2000 को डाक टिकट जारी किए गए। हमे और पूरे देश को इस वीर सपूत पर गर्व है सदैव आपका नाम इतिहास के सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा।

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