कुल्हड़ ने बदल दी कुम्हार समाज की जिंदगी

Laxmi Mishra
By Laxmi Mishra

सहरसा संवाददाता- शिव कुमार

  • कुल्हड़ की सौंधी मिट्टी की खुशबू खूब कर रहे है लोग पसंद…
  • सुबह हो या शाम चौक चौराहे पर लोग खूब ले रहें कुल्हड़ में चाय की चुस्की…
  • बाजार में बढ़ता जा रहा है कुल्हड़ में चाय पीने का फैशन..

सहरसा: एक जमाना हुआ करता था जब हरेक घरों में मिट्टी के बर्तन ही नजर आते थे पानी पीने के गिलास से लेकर खाना खाने के बर्तन का भी इस्तेमाल मिट्टी के बर्तन का ही किया जाता था आधुनिकता के दौड़ में यह सभी चीजें दूर होती चली गई। जिसका असर कुम्हार समाज पर खूब पड़ा लेकिन कुम्हार समाज की किस्मत तब बदली जब कोरोना काल था। मिट्टी के बर्तन हमारे देश की संस्कृति का अहम हिस्सा हैं।

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मिट्टी के कुल्हड़ो को दें महत्व

लेकिन आधुनिकता के चक्कर में आज हम अपनी जड़ों को ही भूलते जा रहे हैं। प्लास्टिक, क्रॉकरी और बर्तनों ने ऐसे मार्केट में जगह बनाई है कि इको-फ्रेंडली होते हुए भी मिट्टी के बर्तनों को रसोई में जगह नहीं मिल रही है। और इसका सबसे ज्यादा गलत असर पड़ा है कुम्हार समुदाय पर।

मिट्टी के बर्तनों का चलन कम होने से उनका रोजगार छिन गया और बहुत से लोगों ने तो मिट्टी के बर्तनों का काम छोड़कर दूसरे काम शुरू कर दिए।लेकिन पिछले कुछ सालों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ने से मिट्टी के बर्तनों को एक बार फिर पहचान मिल रही है। खासकर कि छोटे-बड़े स्टार्सअप इस क्षेत्र में सामने आ रहे हैं।

बहुत से कैफे भी लस्सी, चाय आदि के लिए पेपरकप या मग की बजाय मिट्टी के कुल्हड़ो को महत्व दे रहे है। इस मिट्टी के बर्तन का इस्तेमाल करने से लोगों को अपनी संस्कृति की याद दिला देती है, तो दूसरी और कुम्हार समाज को भी एक रोजगार का जरिया बन चुका है ।

करोना के बाद बढ़ी डिमांड

इसी कड़ी में सहरसा जिला मुख्यालय के बटराहा के समीप के रहने वाले शिव जी पंडित बताते हैं के 3 से 4 साल पहले मिट्टी के बर्तन की डिमांड नहीं थी खास तौर पर कुल्हड़ की चर्चा दूर दूर तक नहीं था लेकिन करोना के बाद अचानक इसकी डिमांड बढ़ गई जिसके बाद उनके घरों में भी फिर से खुश खुशियां लौट आई है।

शिव जी पंडित बताते हैं कि एक कुल्हड़ चाय कप की कीमत ढेर रुपए है 1 दिन में 1000 कुल्हड़ बेच देते अगर महीने की बात करें तो 20 से 25 हजार की आमदनी शिव जी पंडित को हो जाती है। जिससे उनका घर खुशी-खुशी चल जाता है, अब बच्चों को भी अच्छे स्कूल में पढ़ाते हैं अच्छी शिक्षा देते हैं वे बताते हैं कि अब इसकी डिमांड दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है बड़े-बड़े रेस्टोरेंट से भी ऑर्डर लेते है। अब इसकी पकड़ मार्केट में अच्छी हो गई है और अच्छी बिक्री भी हो जाता है ।

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