जानें कुंडा के DSP जिया-उल हक की हत्या की कहानी, पहले लाठी-डंडों से पीटा,फिर मारी गोली..

Mona Jha
By Mona Jha

सहारनपुर संवाददाता : नज़म मंसूरी

Lucknow : उत्तर प्रदेश के बड़के जिले प्रतापगढ़ के हथिगवां थाना क्षेत्र के बलीपुर गांव में 2 मार्च 2013 रात की रात लगभग सवा 8 बजे एक ऐसा कांड हुआ था,जिससे पूरे उत्तर प्रदेश में हड़कंप मच जाता है।बलीपुर गांव में दो हत्या होने के बाद मचे बवाल की सूचना पर गांव पहुंचे तत्कालीन कुंडा क्षेत्राधिकारी जिया-उल-हक को बड़ी बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया जाता है।सीओ हत्याकांड की आंच समाजवादी पार्टी सरकार में मंत्री रहे कुंडा विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया तक पहुंचती है।10 साल बाद एक बार फिर ये आंच राजा भइया तक पहुंची है।

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बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने सीओ जिया-उल-हक हत्याकांड में कुंडा विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया की भूमिका की जांच का आदेश सीबीआई को दिया है।सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को इस मामले की तहकीकात कर तीन महीने में रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा है।जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला माधुर्य त्रिवेदी की इस पीठ ने मारे गए सीओ जिया-उल-हक की पत्नी परवीन आजाद की ओर से दायर याचिका पर फैसला देते हुए पिछले साल इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा क्लोजर रिपोर्ट को मान्यता देने वाले आदेश को रद्द कर दिया था।

जानें सीओ जिया-उल-हक के बारे में

जिया-उल-हक देवरिया जिले के गांव नूनखार टोला जुआफर के रहने वाले थे। जिया-उल-हक के साथी बताते हैं कि वो बेहद मिलनसार पुलिस अफसरों में शुमार थे।जिया-उल-हक की 2012 में बतौर क्षेत्राधिकारी कुंडा में तैनाती हुई।यहां तैनाती के बाद से ही जिया-उल-हक पर कई तरह के दबाव आते रहते थे।दबाव बनाने वालों में कुंडा विधायक राजा भइया का भी नाम भी लिया गया और ये आरोप किसी और ने नहीं बल्कि जिया-उल-हक के परिजनों ने लगाए।

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बवाल होने की सूचना पर पहुंचे थे जिया-उल-हक

बता दें कि हथिगवां थाना क्षेत्र के बलीपुर गांव में 2 मार्च 2013 की शाम प्रधान नन्हे यादव एक जमीनी विवाद का मामला सुलझाने के लिए कामता पाल के घर पर ग‌ए थे।इसी दौरान मोटरसाइकिल से आए बदमाशों ने नन्हे यादव को गोली मारकर भाग गए।नन्हे यादव की हत्या की खबर जब उनके समर्थकों को मिली तो भारी बवाल शुरू हो गया।आक्रोशित लोगों ने कामता पाल के घर को आग के हवाले कर दिया।पुलिस को सूचना दी गई,लेकिन कुंडा कोतवाल सर्वेश मिश्र अपनी टीम के साथ नन्हें यादव के घर की तरफ नहीं जा सके।

तोड़फोड़, आगजनी और लोगों में बढ़ते आक्रोश के बीच नन्हे यादव का शव बिना पोस्टमॉर्टम ही गांव में पहुंच गया।बिना पोस्टमॉर्टम शव गांव में पहुंचने की खबर सीओ जिया-उल-हक को जब मिली तो लाव-लश्कर के साथ गांव वालों से बात करने पहुंचे,लेकिन वहां हिंसा शुरू हो गई और पुलिस पर ही पथराव होने लगा।

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जिया-उल-हक की घेरकर की गई बेरहमी से हत्या

सीओ जिया-उल-हक कुंडा कोतवाल सर्वेश मिश्रा के साथ जैसे ही बलीपुर गांव पहुंचे तो लोगों ने हमला बोल दिया।अफरा-तफरी में फायरिंग शुरू हो गई।नन्हे यादव के भाई सुरेश यादव की गोली लगने से मौत हो गई।सुरेश यादव की मौत के बाद लोग और आक्रोशित हो गए और सीओ जिया-उल-हक को घेरकर उनकी बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी। गांव में हुई दो हत्या से आगबबूला लोगों ने सीओ जिया-उल-हक को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया और बाद में गोली मारकर हत्या कर दी।सीओ जिया-उल-हक के गनर इमरान और विनय कुमार सिंह भाग गए।

रात 11 बजे भारी पुलिस बल बलीपुर गांव पहुंचा और सीओ जिया-उल-हक की तलाश शुरू की तो उनका शव प्रधान नन्हे यादव के घर के पीछे खड़ंजे पर पड़ा हुआ मिला।सीओ जिया-उल-हक हत्याकांड का आरोप तत्कालीन समाजवादी पार्टी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया और उनके करीबी गुलशन यादव समेत कई लोगों पर लगा था।

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एक वारदात, चार एफआईआर,राजा भइया का भी नाम

इस हत्याकांड में चार एफआईआर दर्ज करवाई गई।एक एफआईआर प्रधान नन्हे यादव की हत्या की थी।दूसरी एफआईआर पुलिस पर हमले की थी।तीसरी एफआईआर नन्हे यादव के भाई सुरेश यादव के हत्या की थी।चौथी एफआईआर सीओ जिया-उल-हक के हत्या की थी,जिसमें तत्कालीन थानाध्यक्ष मनोज शुक्ला की तरफ से प्रधान नन्हें यादव के भाइयों और बेटे समेत 10 लोगों को नामजद किया गया।सबसे आखिर में सीओ जिया-उल-हक की पत्नी परवीन की ओर से एफआईआर दर्ज कराई गई थी।

परवीन की ओर से दर्ज कराई गई एफआईआर में राजा भइया का नाम था।इसके अलावा तत्कालीन नगर पंचायत अध्यक्ष गुलशन यादव, राजा भइया के प्रतिनिधि हरिओम श्रीवास्तव,रोहित सिंह,संजय सिंह उर्फ गुड्डू का भी नाम था।इन पर आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 302, 504, 506, 120 बी और सीएलए एक्‍ट की धारा 7 के तहत एफआईआर दर्ज कराई गयी थी।

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सीबीआई को सौंपी गई थी जांच

बलीपुर गांव में हुए इस हत्याकांड ने उत्तर प्रदेश को हिला दिया था।तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव विपक्ष के निशाने पर थे।यह मामला इतना चर्चित हो गया कि अखिलेश यादव को सीओ जिया-उल-हक के घर जाकर परिजन को सांत्वना देनी पड़ी।बाद में सपा सरकार ने सीओ जिया-उल-हक हत्याकांड की जांच सीबीआई को सौंप दी थी, लेकिन सीओ जिया-उल-हक की पत्नी परवीन आजाद की ओर से दर्ज कराई गई एफआईआर पर सीबीआई ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट 2013 में ही दाखिल कर दी थी।

सीबीआई ने राजा भ‌इया, गुलशन यादव, हरिओम, रोहित, संजय को क्लीन चिट दे दी।बरहाल इस क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ परवीन आजाद फिर से कोर्ट चली गई थी,जिसके बाद कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया था।अब सुप्रीम कोर्ट ने फिर से सीबीआई को इस केस की फाइल ओपन करने का आदेश दिया है।साथ ही राजा भइया की भूमिका की भी जांच करने के लिए कहा है।ऐसे में राजा भइया की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।अब मामला फिर सीबीआई के पास पहुंच चुका है। देखना होगा अब सीबीआई कुंडा से क्या निकालकर बाहर लाती है।

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