Lok Sabha Election 2024: देश में 18वीं लोकसभा के लिए 19 अप्रैल से चुनाव शुरू होंगे और 1 जून तक 7 चरणों में मतदान संपन्न होगा। वहीं बस मोहरों के नाम का ऐलान होना है, फिर एक आखिरी जंग होगी, ये तय करने के लिए देश की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक कुर्सी पर क्या नरेंद्र मोदी तीसरी बार विराजमान होंगे या फिर देश की आवाम एक नई पटकथा लिखेगी, वहीं आज प्राइम टीवी की टीम पड़ताल करते हुए पहुंच चुकी है सोनभद्र सीट पर , जहां सोनभद्र सूबे का अकेला ऐसा जिला है, जिसकी सीमाएं देश के 4 राज्यों से मिलती हैं, और ये एक ऐसा जिला है, जो देश के एक बड़े हिस्से को बिजली से रौशन करता है, बावजूद इसके विकास की रोशनी यहां पर ज्यादा नहीं दिखाई देती है, उस सीट पर मुद्दों का टोटा है और आलम ये कि विकास की रौशनी से महरूम है ये लोकसभा सीट हैं।
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बीजेपी की सहयोगी अपना दल ने ये सीट जीती थी
पहाड़ियों पर बसे इस जिले का नाम खनन को लेकर भी जाना जाता है, ये प्रदेश का अकेला ऐसा जिला है, जो चार राज्यों बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और झारखंड की सीमा से सटा है, इसके बाद भी विकास की रोशनी ज्यादा नहीं दिखाई देती है।कोयला, बालू और वन संपदा से समृद्ध इस जिले में नक्सलियों का साम्राज्य चलता है। आलम ये है कि आदिवासी बाहुल्य जिले के लोगों को अन्य जिलों और राज्यों में मजदूरी के लिए बाध्य होना पड़ता है। बात करें अगर पिछले लोकसभा चुनाव की, तो बीजेपी की सहयोगी अपना दल ने ये सीट जीती थी।
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राबर्ट्सगंज की जंग.. 2019 में BJP ने किया दंग
- बीजेपी की सहयोगी अपना दल ने दर्ज की जीत
- अपना दल प्रत्याशी पकौड़ी लाल कोल को मिली जीत
- सपा के भाई लाल कोल को 50 हजार वोटों से हराया
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शहरी इलाकों में भी विकास दिखाई नहीं देता
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति बहुल सीट पर मुद्दों का टोटा हमेशा से दिखाई देता है। विकास की बातें खूब होती हैं, लेकिन गांव ही नहीं शहरी इलाकों में भी विकास दिखाई नहीं देता है। हर पार्टी अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए योजनाओं की बातें ही करती है। योजनाएं आती भी हैं, लेकिन उनका फायदा बिचौलिए ही ले जाते दिखाई देते हैं।
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जातिगत वोटों का समीकरण
- अनुसूचित जाति- करीब 4 लाख
- अनुसूचित जनजाति- 1.75 लाख
- यादव- 1.25 लाख
- ब्राह्मण- 1.5 लाख
- कुशवाहा- 1 लाख
- पटेल- 80 हजार
- राजपूत- 40 हजार
- मुस्लिम- 60 हजार
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दल का दामन थामा और दोबारा सांसद बने
राबर्ट्सगंज लोकसभा सीट से चुने गए सांसदों के साथ एक अनूठा संयोग रहा है। यहां अब तक 18 बार लोकसभा के चुनाव हो चुके हैं।जिसमें 12 बार राम, शिव और नारायण नाम वाले उम्मीदवारों को जीत मिली है। खास बात ये कि इसमें भी अकेले नौ बार सिर्फ राम नाम की जय रही, ऐसे में ये संयोग क्या इस चुनाव में भी बरकरार रहता है। ये देखना भी दिलचस्प होगा.. अपना दल के प्रत्याशी पकौड़ी लाल कोल नेसपा के भाई लाल कोल को करीब पचास हजार वोटों सेहराया था। पकौड़ी लाल कोल इससेपहले 2009 मेंभी यहां सेसांसद चुनेगए थे। तब वह सपा की तरफ सेमैदान मेंथे। 2014 मेंभी सपा की तरफ सेउतरेऔर तीसरेनंबर पर खिसक गए थे। इसके बाद 2019 में उन्होंनेअपना दल का दामन थामा और दोबारा सांसद बने।
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एससी-एसटी बहुल सीट पर मुद्दों का टोटा
साक्षरता और जानकारी की कमी के कारण वोटिंग का पैटर्नउस समय चल रही लहर ही रहा है। राबर्ट्सगंज सीट पर कुल 83, 40,82,814 मतदाता हैं। इनमें 43,70,35,372 पुरुष और 39,70,18,915 महिलाएं हैं।