आज से कावड़ यात्रा की शुरुआत, सावन के महीने क्यों है खास, कब से हुई इसकी शुरुआत

Laxmi Mishra
By Laxmi Mishra

Input- Nandani

सावन माह: सावन महीने को भगवान शिव के सबसे प्रिय महीने में गिना जाता है। भगवान शिव के भक्तों को तो सावन महीने का साल भर इंतजार रहता है। सनातन धर्म में सावन का महीना शुरू होते ही भोलेनाथ के भक्त बड़ी संख्या में कांवड़ यात्रा लेकर अपने आराध्य की आराधना करने के लिए निकल पड़ते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन का पवित्र महीना हर वर्ष श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ होता है। आज दिन मंगलवार से सावन मास की शुरुआत हो गयी है। पुरषोत्तम मास होने की वजह से इस बार सावन का महीना पूरे 2 महीने का होने वाला है, जिसके कारण शिव भक्तों को भोलेनाथ की आराधना का अधिक समय मिलने वाला है। आज के दिन से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हो रही है।

क्या होती है कांवड़ यात्रा?

हर वर्ष सावन के महीने में महादेव के भक्त नंगे पैर कांवड़ यात्रा निकालते हैं, जिसमें पवित्र नदी गंगा का जल लेकर शिवालय जाते हैं और वहां पर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया जाता है। यह एक तीर्थ यात्रा के समान होती है, जो सावन के पूरे महीने चलती है। कांवड़ यात्रा भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए निकाली जाती है।

कैसे हुई कावड़ यात्रा की शुरुआत

माना जाता है कि सबले पहले श्रवण कुमार ने त्रेता युग में कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। अपने दृष्टिहीन माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराते समय जब वह हिमाचल के ऊना में थे तब उनसे उनके माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा के बारे में बताया।उनकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार ने उन्हे कांवड़ में बैठाया और हरिद्वार लाकर गंगा स्नान कराए। वहां से वह अपने साथ गंगाजल भी लाए। माना जाता है तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।

कावड़ यात्रा कांवड़ यात्रा चार प्रकार की होती हैं।

सामान्य कांवड़ यात्रा

सामान्य कांवड़ यात्रा में कांवड़िए जरूरत पड़ने पर अपनी सुविधा के अनुसार कहीं पर भी विश्राम करने के लिए स्वतंत्र होते हैं. इनके लिए सामाजिक संगठन पंडाल लगाते हैं। जहां पर उनके भोजन और विश्राम का बंदोबस्त किया जाता है। उसके बाद कांवड़िए अपनी यात्रा पुनः प्रारंभ कर देते हैं।

डाक कांवड़

इस कांवड़ यात्रा में कांवड़िए एक बार चलना शुरू करते हैं तो बीच में कहीं नहीं रुकते। इनके लिए मंदिरों में विशेष रूप से व्यवस्था की जाती है। जब यह मंदिर पहुंचते हैं तो इनके लिए रास्ता साफ कर दिया जाता है। ताकि यह बिना रुके सीधे शिवलिंग पर पहुंचकर जलाभिषेक करें।

खड़ी कांवड़ यात्रा

खड़ी कांवड़ यात्रा में एक कांवड़िया अपने साथ दो तीन लोगों को लेकर चलता है। जब वह विश्राम करता है तब दूसरा सहयोगी उसकी कांवड़ को लेकर चलता है। इस यात्रा में कांवड़िए को गतिमान रहना होता है।

दांडी कांवड़ यात्रा

दांडी कांवड़ यात्रा को सबसे कठिन कांवड़ यात्रा माना जाता है, क्योंकि जब शिवभक्त एक नदी के तट से यात्रा शुरू करते हैं तो वे लोग ये यात्रा दांडी के सहारे पूरी करते हैं। इसकी वजह से इस यात्रा में कभी-कभी महीनों का समय भी लग जाता है।

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