हादसे में पैर कटने के बाद भी नही हारी इंटरनेशनल क्रिकेटर ने हिम्मत…

Shankhdhar Shivi
By Shankhdhar Shivi

कहते है बुरा समय बता दे के नहीं आता है,ऐसा ही कुछ इंटरनेशनल क्रिकेटर ललित पाठक के साथ हुआ था। ट्रेन हादसे में पैर गवां दिए, पर हिम्मत नहीं हारी। पिता को ब्रेन स्ट्रोक हुआ तो खेत बिक गया। खुद का पैर कटा तो ट्यूबवेल बिक गया। ट्रेन हादसे में पैर गवां दिए, पर हिम्मत नहीं हारी और क्रिकेट के प्रति अपने जोश को बरकरार रखते हुए कामयाबी की राह तक जा पहुंचे।

प्रयागराज: उत्तर प्रदेश की रानी मंडी के रहने वाले ललित ने अपनी अलग पहचान बनाई है। ललित ने ट्रेन हादसे में अपने पैर खो दिए थे। इसके बावजूद उन्होंने हौसला नहीं खोया। वह आज इंटरनैशनल क्रिकेट प्लेयर के रूप में अपनी पहचान बना रहे हैं। बता दे कि प्रयागराज के रहने वाले ललित क्रिकेट के बहुत शौकीन हैं। लेकिन एक हादसे में वह पैर गवां बैंठे थे। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

ट्रेन स्लो हुई किसी ने धक्का दिया और मैं नीचे गिर गया…

15 अप्रैल 2012 की तारीख थी। मैं महानगरी एक्सप्रेस से अपनी ससुराल मध्यप्रदेश जा रहा था। सतना से पहले जैतवारा स्टेशन पर ट्रेन धीमी हुई। महानगरी का स्टॉपेज नहीं था, यहां पर हमें लगा कि शायद ट्रेन रुकेगी। मैं गेट की तरफ बढ़ा। पीछे पब्लिक थी। मैंने पिट्ठू बैग ले रखा था। तभी किसी ने मुझे धक्का दिया और मैं स्टेशन पर पेट के बल गिर गया। बैग मैंने आगे की तरफ टांगा था तो मेरे आगे का हिस्सा बच गया, लेकिन मेरा दाहिना पैर ट्रेन की चपेट में आ गया। पैर घुटनों के नीचे कट गया।

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ललित के करियर की यूं हुई शुरुआत…

इसके साथ ही ललित के करियर की शुरुआत हो गई। अपने प्रदर्शन के दम पर दिव्यांग क्रिकेट इंटरनैशनल में एक ऑलराउंडर क्रिकेट खिलाड़ी के रूप में ललित ने अपनी जगह बना ली। प्रयागराज के निवासी सहस राम पाठक के पुत्र ललित पाठक ने दिव्यांग इंटरनैशनल क्रिकेट में शुरुआत करते हुए अपना पहला मैच 2017 मे आयोजित त्रिकोणीय टूर्नामेंट नेपाल से खेला। इसमें नेपाल, भारत, बांग्लादेश, की टीमों ने हिस्सा लिया। 2018 में गोरे गांव स्टेडियम मुंबई में दो देशों की सीरीज (भारत और बांग्लादेश) का भी वह हिस्सा रहे। ललित कई नैशनल और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट में अपना जौहर दिखाते रहे।

30 मिनट तक बिना किसी मदद के दर्द से कराहता रहा…

गिरते ही ट्रेन में घसीटता गया। मैं पटरी पर जा गिरा। मेरा दूसरा पैर रेलवे लाइन पर पड़ गया और वह भी कट गया। मैं करीब 30 मिनट तक बिना किसी मदद के दर्द से वहीं कराहता रहा। 50 मिनट बाद मुझे फर्स्ट एड देकर दूसरी ट्रेन से सतना लाया गया और वहां मेरा इलाज हुआ। मेरा काफी खून बह गया था। AB पॉजिटिव ब्लड नहीं मिल रहा था। मेरे पिता जी और मेरा भाई सतना पहुंचे तो मुझे प्रयागराज लाया गया। यहां हॉस्पिटल में मेरा 28 घंटे बाद 16 अप्रैल 2012 को ऑपरेशन हुआ।

बस कभी हिम्मत ना हारें और…

ललित के नैशनल इंटरनैशनल क्रिकेट परफॉर्मेंस को देखते हुए साल 2019 में उन्हें उत्तर प्रदेश क्रिकेट टीम का कप्तान बनाया गया। ललित कहते हैं, ‘दिव्यांगता को कभी कमजोरी ना समझें और सभी दिव्यांगों से अपील है कि अपनी दिव्यांगता की वजह से जीवन में निराशा को नहीं आने दें। एक चांस आप को हीरो बना सकता है। इसी वजह से अपना चांस कभी ना खोएं और मेहनत करते रहें।’

अतुल श्रीवास्तव से मिला व्हीलचेयर क्रिकेट का रास्ता…

मेरी मुलाकात प्रयागराज के रहने वाले अतुल श्रीवास्तव से हुई। वो भी दिव्यांग थे और इंडियन व्हील चेयर क्रिकेट टीम के कैप्टन थे। उन्होंने मेरा टेस्ट लिया और मेरा चयन इंटरनेशनल क्रिकेट टूर्नामेंट के लिए हो गया, जोकि नेपाल में होना था। इस त्रिकोणीय मुकाबले में भारत, नेपाल और बांग्लादेश की टीमों ने भाग लिया था। बांग्लादेश ने खिताब जीता, पर मेरे उम्दा खेल से मुझे नई पहचान मिली। इसके बाद मुश्किलें तो और बहुत आईं, पर मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

घर चलाने को पेट्रोल पंप पर नौकरी की…

एक समय ऐसा भी आया कि मुझे अपने घर का खर्च चलाने के लिए कहीं नौकरी ही नहीं मिल रही थी। सभी मेरे पैर देखकर मुझे नौकरी से मना कर दे रहे थे। तब मुझे सिफारिश पर पेट्रोल पंप पर नौकरी मिली। इसके एक साल बाद वह भी छूट गई। इस समय मैं एक रेस्टोरेंट में मैनेजर के पद पर भी काम कर रहा हूं। मैं अब निराश नहीं होता। अब कृत्रिम पैर लगने से मैं चल फिर सकता हूं।

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