1975 में इंदिरा गांधी को इमरजेंसी लगानी पड़ी, जानें क्या थी असली वजह?

Mona Jha
By Mona Jha

Emergency Anniversary Today: 25 जून 1975 का दिन भारतीय इतिहास में एक ऐसा दिन है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी, जो 21 मार्च 1977 तक चला। यह 21 महीने का कालखंड भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बेहद कठिन समय था, जिसे अक्सर एक काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है।

आपातकाल के दौरान कई लोकतांत्रिक अधिकारों पर रोक लगा दी गई थी, मीडिया पर सेंसरशिप लागू कर दी गई थी, और विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को बड़े पैमाने पर गिरफ्तार किया गया था। इस अवधि में कई लोगों को जेल में डाला गया, यातनाएं दी गईं, और नागरिक अधिकारों का हनन हुआ।

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49वीं बरसी

आपातकाल की 49वीं बरसी पर, उन दिनों के संघर्षों और कष्टों को याद किया जाता है। लोकतंत्र सेनानियों ने उन दिनों की भयावहता को साझा करते हुए अपने दर्द और संघर्षों की कहानी बयां की है। आपातकाल ने देश को सिखाया कि लोकतंत्र और व्यक्तिगत स्वतंत्रता कितनी महत्वपूर्ण हैं, और इनके संरक्षण के लिए हमेशा सतर्क रहना जरूरी है।

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जानें क्यों लगाया था आपातकाल

इंदिरा गांधी के उस आदेश को लागू करने की वजह आंतरिक गड़बड़ी बताई गई। चुनावों को रद्द कर दिया और प्रधानमंत्री को अभूतपूर्व शक्तियां दे दी गईं। इंदिरा गांधी सरकार ने यह भी तर्क दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा था जिसके लिए ऐसे कड़े कदम उठाने की जरुरत पड़ गई। यह बताया गया था कि कुछ वर्ष पहले पाकिस्तान के साथ युद्ध समाप्त हुआ। विरोध प्रदर्शन और हड़तालों की वजहों से अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ। सरकार ने कहा कि इससे देश को काफी हद तक नुकसान पहुंचा है।

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ऐसा माना जाता है कि आपातकाल 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद लगाया गया था, जिसमें इंदिरा गांधी को चुनावी कदाचार का दोषी ठहराया गया था और उन्हें संसद से अयोग्य घोषित कर दिया गया था और कहा गया था कि वह अगले 6 वर्षों तक किसी भी निर्वाचित पद पर नहीं रह सकेंगी। इस फैसले के तुरंत बाद उन्होंने इमरजेंसी की घोषणा कर दी थी।

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आपातकाल के दौरान क्या हुआ था?

आपातकाल (1975-1977) के दौरान भारत में कई महत्वपूर्ण और विवादास्पद निर्णय लिए गए, जिनका व्यापक प्रभाव हुआ। इन निर्णयों में नागरिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध के साथ-साथ ट्रेड यूनियनों पर भी सख्त कार्रवाई शामिल थी। सरकार ने ट्रेड यूनियन गतिविधियों और मजदूरों की हड़तालों पर प्रतिबंध लगा दिया था और निश्चित वेतन लागू कर दिया था, जिसमें बोनस की कोई गुंजाइश नहीं थी। इस कठोर नीति का विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं को गंभीर दमन का सामना करना पड़ा।

इसके अलावा, संजय गांधी के नेतृत्व में नसबंदी कार्यक्रम और शहरों के सौंदर्यीकरण के नाम पर झुग्गियों को ध्वस्त करने का अभियान चलाया गया, जिसमें झुग्गीवासियों को कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई थी।आपातकाल 21 मार्च, 1977 को समाप्त हुआ, इससे पहले 18 जनवरी, 1977 को इंदिरा गांधी ने नए सिरे से चुनाव का आह्वान किया और कई विपक्षी नेताओं को जेल से रिहा करने का आदेश दिया। ये घटनाएँ भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में महत्वपूर्ण और विवादास्पद मानी जाती हैं।

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