China–India relations: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को स्पष्ट किया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गश्त को लेकर चीन के साथ हुए समझौते का मतलब यह नहीं है कि भारत और चीन के बीच सभी मुद्दे सुलझ गए हैं। उन्होंने कहा कि सैनिकों की वापसी से अगले कदम पर विचार का अवसर जरूर मिला है, पर यह केवल पहला चरण है। जयशंकर का यह बयान एक ऐसे समय पर आया है, जब दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख में चार साल से अधिक समय से चल रहे गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में प्रयास हो रहे हैं।
“सेना ने किया अद्वितीय साहस का प्रदर्शन”
जयशंकर ने पुणे में एक कार्यक्रम के दौरान इस समझौते का श्रेय भारतीय सेना को दिया, जो “अकल्पनीय परिस्थितियों” में वहां डटी रही। उन्होंने कहा कि सेना ने अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और कूटनीति ने भी अपना काम किया। उन्होंने यह भी कहा कि सैनिकों की वापसी का यह समझौता 21 अक्टूबर को हुआ है, जिसके तहत देमचोक और देपसांग जैसे क्षेत्रों में गश्त को फिर से प्रारंभ किया जाएगा।
“हमारी अडिगता ने दिलाई सफलता”
विदेश मंत्री ने कहा कि भारत ने अपनी बात पर अड़े रहकर इस समझौते तक पहुंचने में सफलता पाई है। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से मुलाकात की थी, जिसमें दोनों देशों के विदेश मंत्रियों और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के मिलने और आगे की योजना पर चर्चा करने का निर्णय लिया गया था। जयशंकर ने कहा कि एलएसी पर तनाव को कम करने के लिए भारत ने चीन के साथ निरंतर बातचीत जारी रखी है और सैनिकों के पीछे हटने से गश्त पर रोक को भी अब धीरे-धीरे हटाया जा रहा है।
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“सीमा पर बुनियादी ढांचे में सुधार से सेना को मिली मजबूती”
जयशंकर ने कहा कि पिछले एक दशक में भारत ने अपने सीमावर्ती इलाकों के बुनियादी ढांचे में सुधार किया है। उन्होंने यह भी कहा कि पहले के वर्षों में सीमा पर बुनियादी ढांचे की उपेक्षा की गई थी, जिसके कारण सेना को तैनात करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने यह भी कहा कि भारत अब एक दशक पहले की तुलना में पांच गुना अधिक संसाधन सीमा क्षेत्र में लगा रहा है, जिससे सेना को कारगर तरीके से तैनात किया जा सकता है और यह सीमा पर होने वाले किसी भी संभावित खतरे का सामना करने में सक्षम है।
गलवान संघर्ष के बाद से ही बढ़ा तनाव
पिछले चार सालों से पूर्वी लद्दाख में एलएसी के पास सैनिकों की तैनाती को लेकर भारत और चीन के बीच गतिरोध जारी है। जून 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों के बीच गंभीर सैन्य तनाव उत्पन्न हुआ था। इसके बाद भारत और चीन के बीच विभिन्न सैन्य और कूटनीतिक स्तरों पर चर्चा और वार्ता का सिलसिला चला, जिसमें कई चरणों में सैनिकों की वापसी और तनाव कम करने के समझौते हुए।
गश्त पर बातचीत में आई प्रगति
विदेश मंत्री ने कहा कि भारत और चीन 2020 के बाद से ही सीमा पर गश्त के मुद्दे को सुलझाने के लिए बातचीत कर रहे थे। उन्होंने बताया कि दोनों देशों ने कुछ स्थानों पर इस बात पर सहमति जताई है कि सैनिकों की गश्त पहले की तरह बहाल की जाएगी। देमचोक और डेपसांग जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भी गश्त को लेकर समझौता हुआ है, जिससे भारतीय सैनिकों को अपने क्षेत्रों में गश्त फिर से प्रारंभ करने का अवसर मिलेगा।
अभी भी बाकी है विश्वास की बहाली
विदेश मंत्री ने स्पष्ट किया कि भारत-चीन संबंधों को सामान्य बनाने में अभी समय लगेगा। उन्होंने कहा कि भरोसे को पुनः स्थापित करने और साथ मिलकर कार्य करने की प्रक्रिया समय लेगी। जयशंकर ने कहा कि हम अपनी बात पर दृढ़ता से खड़े रहे हैं और यह हमारे लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इस समझौते के बाद भी, भारत और चीन को संबंधों को एक स्थिर और सकारात्मक दिशा में ले जाने के लिए कूटनीतिक स्तर पर और प्रयास करने होंगे।
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सीमा प्रबंधन और गश्त व्यवस्था के सुधार पर दिया जोर
जयशंकर ने यह भी कहा कि सीमा पर तैनाती और गश्त को व्यवस्थित करना तथा प्रबंधन में सुधार करना दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है। इसके तहत, एक व्यापक सीमा प्रबंधन प्रणाली बनाने पर विचार किया जा रहा है, जिससे सीमा पर होने वाले विवादों का शांतिपूर्ण हल निकाला जा सके। भारत और चीन के बीच हालिया समझौते से यह स्पष्ट हो गया है कि दोनों देशों के बीच सभी मुद्दे अभी सुलझे नहीं हैं। लेकिन, भारतीय सेना की साहसिक तैनाती और सरकार की कूटनीतिक सक्रियता ने एक ऐसे समझौते की दिशा में कदम बढ़ाया है, जो भारत की सुरक्षा और संप्रभुता को मजबूत बनाएगा।