Independence Day 2024: स्वतंत्रता दिवस की 78वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने लाल किले से अपने भाषण में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (one nation one election) की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “लाल किले से मैं राजनीतिक समुदाय से ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के विचार का समर्थन करने का आग्रह करता हूं। इस पहल के पीछे देश का एकजुट होना महत्वपूर्ण है। बार-बार चुनाव देश में गतिरोध पैदा करते हैं। आज, हर योजना और पहल ऐसा लगता है कि यह चुनाव चक्र से प्रभावित है और हर गतिविधि राजनीतिक विचारों से रंगी हुई है।”
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने इसी साल मार्च में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। रामनाथ कोविंद समिति की यह रिपोर्ट कुल 18,626 पन्नों की है। इस रिपोर्ट में 2029 में एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की गई है।
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का मतलब
भारत में हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। पिछले करीब तीन दशकों में एक साल भी ऐसा नहीं बीता, जब चुनाव आयोग ने किसी न किसी राज्य में चुनाव न करवाया हो। इस स्थिति के चलते देश में लगातार चुनावी माहौल बना रहता है, जिससे सरकारी कार्यों पर असर पड़ता है। इसका वास्तविक अर्थ है कि संसद, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ, एक ही समय पर हों। सरल शब्दों में, वोटर एक ही दिन में सरकार या प्रशासन के तीनों स्तरों के लिए वोट करेंगे। चूंकि विधानसभा और संसद के चुनाव केंद्रीय चुनाव आयोग संपन्न करवाता है और स्थानीय निकाय चुनाव राज्य चुनाव आयोग, तो इस ‘एक चुनाव’ के आइडिया में समझा जाता है कि तकनीकी रूप से संसद और विधानसभा चुनाव एक साथ संपन्न करवाए जा सकते हैं।
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के फायदे
- राजकोषीय बचत: बार-बार चुनाव न होने से खर्च कम होगा और सरकार को बड़ी बचत होगी। इससे लोगों और सरकारी मशीनरी के समय और संसाधनों की भी बचत होगी।
- विकास कार्य में तेजी: चुनावी आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य रुक जाते हैं। एक साथ चुनाव होने पर विकास कार्य तेजी से हो सकेंगे।
- काले धन पर लगाम: चुनाव के दौरान काले धन का इस्तेमाल होता है। एक साथ चुनाव होने से इस पर नियंत्रण हो सकेगा।
- प्रशासनिक सुचारूता: एक चुनाव होने से सरकारी मशीनरी का एक ही बार उपयोग होगा, जिससे सरकारी कर्मचारियों का समय और काम प्रभावित नहीं होगा।
- सुधार की उम्मीद: एक बार चुनाव होने से सरकारों को धर्म, जाति जैसे मुद्दों को बार-बार नहीं उठाना पड़ेगा और जनता को लुभाने के लिए स्कीमों का सहारा नहीं लेना पड़ेगा।
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‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के विरोध में तर्क
- क्षेत्रीय पार्टियों पर असर: भारत बहुदलीय लोकतंत्र है और क्षेत्रीय पार्टियों का अपना महत्व है। ‘एक चुनाव’ के आइडिया से छोटी क्षेत्रीय पार्टियों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो सकता है।
- स्थानीय मुद्दों की अनदेखी: लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग मुद्दों पर होते हैं। एक साथ चुनाव होने पर स्थानीय मुद्दे हाशिए पर चले जाएंगे।
- संविधानिक और कानूनी चुनौतियाँ: इस विचार को अमल में लाने के लिए संविधान के कम से कम छह अनुच्छेदों और कुछ कानूनों में संशोधन करने की जरूरत होगी।
- प्रबंधन की जटिलता: भारत की विशाल आबादी और विविधता को देखते हुए एक साथ सभी चुनाव कराना एक बड़ा प्रबंधन चुनौती हो सकता है।
- चुनाव परिणाम में विलंब: एक साथ चुनाव होने पर परिणाम आने में समय लग सकता है और इससे निपटने के लिए अलग से नीतियां बनानी होंगी।
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प्रधानमंत्री का आग्रह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण के बाद ऐसा लगता है कि सरकार ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर गंभीर है। उन्होंने कहा, “आज मोदी सरकार ‘हर घर तिरंगा’ अभियान चला रही है। हमें खुशी है कि 6 दशक के बाद उन्हें प्रायश्चित करने की सूझी है, अपनी गलती का एहसास हुआ है। इससे पहले उन्हें तिरंगे को फहराने से परहेज था।” ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का विचार सुनने में जितना आकर्षक लगता है, अमल में उतना ही चुनौतीपूर्ण है। यह विचार निश्चित रूप से देश के लोकतांत्रिक ढांचे को बदलने की क्षमता रखता है, लेकिन इसके सफल कार्यान्वयन के लिए व्यापक चर्चा और सहमति की जरूरत है। इस विचार के पक्ष और विपक्ष में मजबूत तर्क हैं और इन सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार करना आवश्यक है। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का भविष्य देश की राजनीतिक स्थिरता और विकास पर बड़ा असर डाल सकता है।