कैसे हुई जीउतिया की शुरूवात , जानें क्या हैं पौराणिक कथा….

Mona Jha
By Mona Jha

Jivitputrika : यूपी, बिहार और झारखंड में जीउतिया व्रत का सबसे विशेष महत्व होता है। यह व्रत संतान के सुखी जीवन व लम्बी उम्र के लिए उनकी माताएं रखती हैं। ऐसा कहा जाता हैं कि छठ से पहले रखा जाने वाला सबसे कठिन व्रत जियत्वपुत्रिका का होता हैं, क्योंकि यह उपवास भी 3 दिन को होता हैं। इस दिन माताएं 24 घंटे तक बिना खाएं व कुछ पिए अपने संतान के संमृद्धी के लिए व्रत रखती हैं। इस साल यह व्रत 6 अक्टूबर को रखाजाएगा।वहीं इसे जीवित्पुत्रिका के नाम से भी जाना जाता है।

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व्रत का महत्व..

देश में आज यानि 6 अक्टूबर को जीवित्पुत्रिका का त्योहार मनाया जा रहा हैं। वहीं इस दिन माताएं अपने संतान के लिए इस व्रत को रखती हैं। वहीं इस व्रत रखने का मुख्य उद्देश्य यह हैं कि उनके संतान के जीवन में आने वाली सभी बांधए व कष्ट उनके जिंदगी से हट जाएं। आपको बता दें कि इस व्रत का शुरूवात महाभारत से शुरू हुआ था। तो आइए जानते है कि जितिया व्रत की शुरुआत कैसे हुई और क्या है इसकी पौराणिक कथा।

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कैसें हुई जीउतिया व्रत की शुरूवात

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब महाभारत का युद्ध चल रहा था तब उस युद्ध में बहुत से योद्धा मारे गए थे उसी युद्ध में द्रोणाचार्य की मृत्यु हो गई इसी का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर ब्रह्मास्त्र चला दिया जिसकी वजह से अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे की मौत हो गई थी, लेकिन कृष्ण भगवान ने उत्तरा के गर्भ में मरे बच्चें को जीवित कर दिया। बाद में उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। तभी से ऐसा माना जाता हैं कि संतान की लंबी उम्र के लिए माताएं जितिया का व्रत करने लगी हैं।

जानें जीवित्पुत्रिका की पौराणिक कथा

प्रचलिए पौराणिक कथा के मुताबिक, एक पेड़ पर चील और सियारिन रहती थीं। दोनों की आपस में खूब बनती थी। चील और सियारिन एक-दूसरे के लिए खाने का एक हिस्सा जरूर रखती थीं। एक दिन गांव की औरतें जितिया व्रत की तैयारी कर रही थीं। उन्हें देखकर चील का भी मन व्रत करने का कर गया। फिर चील ने सारा वाक्या सियारिन को जाकर सुनाया। तब दोनों ने तय किया कि वो भी जितिया का व्रत रखेंगी। लेकिन अगले दिन जब दोनों ने व्रत रखा तो सियारिन को भूख और प्यास दोनों लगने लगी।

सियारिन भूख से व्याकुल इधर-उधर घूमने लगी। व्रत के दिन गांव में किसी की मृत्यु हो गई यह देखकर सियारिन के मुंह में पानी आ गया। फिर सियारिन ने अधजले शव को खाकर अपनी भूख को शांत किया। वह भूल गई उसने जितिया का व्रत रखा है। वहीं चील ने पूरी निष्ठा और मन से जितिया का व्रत और पारण किया।

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अमृत छिड़कर उन्हें जीवित कर दिया..

अगले जन्म में चील और सियारिन सगी बहन बनकर एक राजा के घर में जन्म लिया। चील बड़ी बहन बनीं और सियारिन छोटी बहन। दोनों का विवाह राजा के घर में हुआ। चील ने सात बेटों को जन्म दिया, वहीं सियारिन के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते। ऐसे में अपनी बहन को सुखी और खुश देखकर सियारिन अंदर-अंदर से जलने लगी और उसने चील के सातों बेटों का मरवा दिया। सियारिन के सातों बेटों के सिर कटवाकर उसने उन्हें चील के घर भिजवा दिया। यह सब देखकर भगवान जीऊतवाहन ने मिट्टी से सातों भाइयों के सिर बनाए और सभी के सिरों को उसके धड़ से जोड़कर उस पर अमृत छिड़कर उन्हें जीवित कर दिया।

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जीऊतवाहन की कृपा से उसे..

वहीं जो कटे सिर सियारिन ने भेजे थे वो सब फल में बदल गए। अपनी बहन से रोने की आवाज न सुनकर सियारिन व्याकुल हो उठीं और वहां जाकर सारा माजरा जानने पहुंच गई। सियारिन सारी बातें जब चील को बताई। कहते हैं कि तब चील ने उसे पिछले जन्म की सारी बातें बताई और ये सब सुनकर सियारिन को अपनी गलती का पश्चाताप होने लगा। इसके बाद चील सियारिन को उसी पेड़ के पास ले गई और भगवान जीऊतवाहन की कृपा से उसे सारी बातें याद आ गई। इससे सियारिन इतनी दुखी हुई कि उसकी मौत उसी पेड़ के पास हो गई। राजा को जब इस बात की जानकारी मिली तब उन्होंने सियारिन का दाह संस्कार उसी पेड़ के पास करा दिया।

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