गणगौर व्रत, जो भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है, सनातन धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। यह व्रत विशेष रूप से महिलाओं द्वारा रखा जाता है, जिसमें विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए व्रत करती हैं। वहीं अविवाहित कन्याएं इस दिन व्रत रखकर माता पार्वती से अच्छे वर की प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। गणगौर व्रत का आयोजन हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है, जो इस साल 2025 में 31 मार्च को पड़ेगा।
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गणगौर व्रत का महत्व
गणगौर व्रत का नाम भगवान शिव (गण) और माता पार्वती (गौर) से लिया गया है। यह व्रत शिव-पार्वती की पूजा करने का विशेष दिन है और इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है। खासकर महिलाएं इस दिन अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए गणगौर व्रत का पालन करती हैं। धार्मिक मान्यताएं हैं कि इस दिन विशेष रूप से पूजा करने से जीवन में समृद्धि और खुशहाली का वास होता है।

गणगौर व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त
गणगौर व्रत 2025 में 31 मार्च को उदया तिथि पर रखा जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 31 मार्च को सुबह 9 बजकर 11 मिनट पर शुरू हो रही है और यह 1 अप्रैल को सुबह 5 बजकर 42 मिनट तक रहेगी। इस दिन पूजा का विशेष महत्व होता है, और महिलाएं इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं।
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पूजा विधि
गणगौर व्रत की पूजा का आयोजन दिनभर किया जाता है, जिसमें महिलाएं व्रत रखकर खास पूजा करती हैं। पूजा की शुरुआत सूर्योदय से होती है। पूजा के दौरान महिलाएं गणगौर की मूर्ति या मिट्टी की प्रतिमा का पूजन करती हैं, जो भगवान शिव और माता पार्वती के रूप में होती है।
इसके बाद महिलाएं विशेष रूप से भगवान शिव की महिमा का गायन करती हैं और उनका ध्यान करती हैं। पूजा में विशेष रूप से एकांत स्थान पर स्वच्छता बनाए रखते हुए पूजा सामग्री का प्रयोग किया जाता है। पूजा में फल, मिठाई, पुष्प और जल का चढ़ावा अर्पित किया जाता है। इस दिन महिलाएं व्रत के दौरान केवल फलाहार करती हैं और शुद्धता बनाए रखती हैं।

मान्यताएं और कहानी
माता पार्वती की तपस्या की कहानी: एक मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। वह अपने समर्पण, आस्था और भक्ति से भगवान शिव को आकर्षित करने में सफल हुईं। भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी पत्नी बनने का वरदान दिया। इसी कथा से यह संदेश मिलता है कि इस व्रत को रखने से महिलाएं अपने जीवनसाथी के साथ सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करती हैं।