Ganga Dussehra 2025: हिंदू धर्म में पर्व त्योहारों की कमी नहीं है और सभी का अपना महत्व होता है, लेकिन गंगा दशहरा को बेहद ही खास माना जाता है जो कि मां गंगा को समर्पित है।
मान्यता है कि इसी पावन दिन देवनदी गंगा स्वर्ग से धरती पर आई थी। यहीं कारण है कि हर साल ज्येष्ठ महीने में गंगा दशहरा का पावन पर्व मनाया जाता है। इस साल गंगा दशहरा पर्व 5 जून दिन गुरुवार को मनाया जाएगा। ऐसे में हम आपको गंगा के स्वर्ग से धरती पर आने से जुड़ी एक पौराणिक कथा बता रहे हैं, तो आइए जानते हैं।

गंगा दशहरा की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में अयोध्या में महाराजा सगर रहते थे। उनके 60 हजार पुत्र थे। एक बार राजा ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। ऐसे में इंद्र ने अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया और उसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। इस करण राजा के अश्वमेध यज्ञ में बाधा आ गई। राजा के साथ सभी पुत्रों ने घोड़े को खोजने की शुरुआत की, जिससे यज्ञ पूरा हो सके। अंत में वह मुनि के आश्रम में पहुंच गए। इस दौरान वहां पर महर्षि कपिल ध्यान अभ्यास कर रहे थे।
घोड़े की चोरी
वहीं, घोड़े को बंधा देख उन्हें विश्वास हो गया कि घोड़े की चोरी कपिल ऋषि ने ही की है। राजा सगर के पुत्रों ने कपिल ऋषि को ललकारा और अपमानित भी किया। उस समय कपिल ऋषि क्रोधित हो उठे और राजा सगर के पुत्रों को भस्म कर दिया। ऐसे में यज्ञ खंडित हो गया।
आत्मा की शांति
इसके पश्चात महाराज सगर ने पुत्रों की आत्मा की शांति के लिए उपाय जाना। उन्होंने इस कार्य के लिए मां गंगा को धरती पर लाने का प्रयास किया। उस दौरान ऋषि ने धरती पर मौजूद सारा जल को ग्रहण कर लिया और धरती पूरी तरह से सुख गई। इसके बाद मां गंगा को धरती पर अवतरित करने के लिए महाराज सगर, अंशुमान और महाराजा दिलीप तपस्या ने की, लेकिन उन्हें सफलता प्राप्त नहीं हुई। महाराजा दिलीप का पुत्र भगीरथ था। उसने तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया।
गंगा धरती पर अवतरित हुईं
भगीरथ को इस कार्य में सफलता मिली। मां गंगा धरती पर अवतरित हुईं। हालांकि, मां गंगा के वेग को रोकने के लिए भगवान शिव ने अपनी जटाओं में उन्हें समेट लिया। मां गंगा को शिव की जटाओं में स्थान दिया तब एक शिखा से मां गंगा का धरती पर अवतार हुआ। भगीरथ ने रसातल में जाकर अपने पितरों को उद्धार किया। जब गंगा नदी में राजा सगर के पुत्रों की अस्थि मिली, तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।
