कानपुर नगर- उपेन्द्र अस्थाना
कानपुर नगर: कोराना महामारी के दौरान लॉकडाउन में बढ़ी महंगाई की आंख मिचौली ने लोगों को पहले से ही परेशान करके रखा था कि बेमौसम की बारिश और पहाड़ों पर बादल फटने से नदी और नहरों में बढ़े जलस्तर ने कृषि क्षेत्र को बुरी तरह से प्रभावित किया है। नतीजा इसकी मार सीधे सब्जी की पैदावार पर पड़ी है।
पैदावार प्रभावित होने से महंगाई की इस रेस में टमाटर ने तो पेट्रोल को भी पीछे छोड़ दिया है। पिछले दो साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो खाद्य सामग्री के भाव में दोगुने से अधिक का इजाफा हुआ है। सरसों का तेल, आटा, चीनी और दाल की कीमतें आसमान छू रही हैं। थोक कारोबारी भी मानते हैं कि अगर 10 साल का रिकॉर्ड देखा जाए तो इतनी महंगाई कभी नहीं बढ़ी है।
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30 रुपये से सीधे 130 रुपये किलो तक पहुंचे दाम
सब्जी की प्रभावित हुई पैदावार से आवक असंतुलित हो गई है जिसके चलते स्थानीय मंडियों में सब्जी अन्य राज्यों से आ रही है। स्थिति यह हो गई है कि आदमी को चटनी रोटी खाने के भी लाले पड़ गए हैं क्योंकि चटनी में पड़ने वाला टमाटर 120 से 130 रुपए किलो, धनिया 10 से 15 रुपए प्रति 50 ग्राम बिक रही है। कमोबेश मिर्च, अदरक का यही हाल है।इस बढ़ी महंगाई ने किसानों और छोटे व्यापारियों को भी बुरी तरह से प्रभावित किया है।
महंगाई की मार से वह हर व्यक्ति पीड़ित है जो आर्थिक रूप से कमजोर है। ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के फसलों की कीमत जितनी बढ़ती नहीं है उससे ज्यादा महंगाई बढ़ जाती है। जिसका सीधा असर आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों पर पड़ रहा है। जिसकी वजह से उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा नहीं मिल पाती है। जब गैस के दाम बढ़ते है, जब डीजल-पैट्रोल के दाम बढ़ते है तो उसका असर सीधे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग पर पड़ता है।
1998 में प्याज की कीमतों ने छुआ था आसमान
महंगाई का एक बड़ा कारण भ्रष्टाचार भी है हालांकि केंद्र और राज्य सरकार महंगाई और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लगातार अपने एजेंडे बता रही है लेकिन इस दिशा में सरकार का कदम कब और कितना कारगर साबित होगा। ये तो समय ही बताएगा। क्योंकि ऐसे ही 1998 में प्याज की बढ़ी कीमत 120 रुपए प्रति किलो ने दिल्ली में सुषमा स्वराज की सरकार का तख्ता पलट दिया था वो दिन है और आज का दिन है भाजपा दिल्ली में अभी तक वापसी नहीं कर पाई है।