Delimitation Row: दक्षिण भारत में भाषा से शुरू हुआ विवाद अब परिसीमन पर आ चुका है.जी हां एक बार फिर परिसीमन कराए जाने की सुगबुगाहट तेज हुई तो दक्षिण के नेताओं ने मोर्चा खोल दिया.आखिर क्या है ये परिसीमन और क्यों उठ रहा ये विवाद जानिए यहां…
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एमके स्टालिन का ऐलान

दक्षिण भारत, पहचान अलग, सियासत अलग संस्कृति अलग और तो और भाषा भी अलग.अब इसी पहचान, संस्कृति को लेकर दक्षिण भारत में एक नया ज्वालामुखी फूट चुका है. दक्षिण भारत के नेताओं ने इसके लिए जंग का ऐलान कर दिया. तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन के नेतृत्व में तमाम दलों ने एक लड़ाई की शुरूआत कर दी है. बता दें कि लोकसभा सीटों के प्रस्तावित परिसीमन को लेकर राजनीतिक बहस तेज हो गई.सबसे पहले जानते है कि आखिर परिसीमन क्या होता है.
क्या होता है परिसीमन ?
- निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं को दोबारा निर्धारित करना
- आबादी का सही प्रतिनिधित्व के लिए होती है प्रक्रिया
- चुनावी प्रक्रिया लोकतांत्रिक बनाने के लिए परिसीमन जरूरी
आपको बता दे कि, भारत में परिसीमन की पूरी प्रक्रिया जनगणना के आंकड़ों पर आधारित होती है. यह इसलिए किया जाता है क्योंकि जनसंख्या में लगातार बदलाव होता रहता है और नए परिसीमन से यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की आबादी लगभग समान हो. यह परंपरा 1951 की पहली जनगणना से शुरू हुई, जब संविधान के तहत पहली बार परिसीमन आयोग गठित किया गया था.
परिसीमन का इतिहास

- 1952 में पहली बार हुआ परिसीमन
- परिसीमन के बाद 494 सीटें हुई निर्धारित
- 1963 में दूसरे परिसीमन के बाद लोकसभा में 522 सीट
- 1973 में तीसरी बार परिसीमन के बाद लोकसभा में 543 सीट
उस वक्त देश की जनसंख्या लगभग 55 से 60 करोड़ के बीच थी तब 543 सीटें थी और अब देश की जनसंख्या 145 करोड़ के पास है ऐसे में एक बार फिर परिसीमन होना है और इस परिसीमन से सबसे ज्यादा खतरा दक्षिण भारत पर ही मंडराता नजर आ रहा है.अगर जनगणना के हिसाब से सीटों का बंटवारा हुआ तो दक्षिण भारत में प्रतिनिधित्व का खतरा मंडराएगा. बस इसलिए ही दक्षिण नेताओं की लॉबी एकजुट हुई थी.
परिसीमन से जुड़ी चिंताएं
- संसदीय और विधानसभा का पुनर्निधारण किया जाएगा
- दक्षिण राज्यों में राजनैतिक दलों का प्रतिनिधित्व खोने का डर
बस यही कारण है कि दक्षिण भारत के पेशानी पर चिंताओं की लकीरे दिखाई दे रही है.इस पूरे मुद्दे की अगुवाई तमिलनाडु के सीएम एके स्टालिन कर रहे हैं. तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने कहा, परिसीमन उन राज्यों को प्रभावित करेगा, जिन्होंने परिवार योजना को सफलतापूर्वक लागू किया है. इसलिए हम इसका विरोध कर रहे हैं. मणिपुर दो साल से जल रहा है लेकिन उनकी आवाज नहीं सुनी जा रही है. क्योंकि उनके पास उन्हें सुनने के लिए सांसद नहीं हैं. प्रतिनिधित्व खोने से धन और कानूनों पर अधिकार खो देंगे. छात्र, महिलाएं, किसान प्रभावित होंगे. इससे पहचान खतरे में पड़ जाएगी. हमारे अपने देश में हमारे पास राजनीतिक अधिकार नहीं होंगे.
परिसीमन पर पहली संयुक्त कार्य समिति की बैठक

इससे पहले परिसीमन पर पहली संयुक्त कार्य समिति की बैठक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन की अध्यक्षता में हुई बैठक में हिस्सा लेने वाले नेताओं में केरल के सीएम पी विजयन, तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान सहित कई राज्यों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था.फिलहाल देखना ये होगा कि इस नए विवाद का आखिर क्या अंत होने वाला है.
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