CAA को लेकर पक्ष-विपक्ष में फिर शुरु बहस,वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कानून के पक्ष में बताई कई अहम बातें

Aanchal Singh
By Aanchal Singh

Senior Lawyer Harish Salve: आम चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने देश में नागरिकता संशोधन कानून को लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी है. सीएए लागू होने से पाकिस्तान,अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को नागरिकता मिल सकेगी. सीएए के लागू होने पर देश के कई हिस्सों में लोगों खुशियां मनाई, तो वही कुछ हिस्सों में लोग इसका विरोध करते हुए नजर आ रहे है. विपक्षी दल लगातार मोदी सरकार पर सवाल उठाते हुए दिखाई दे रही है. जहां विपक्ष मोदी सरकार को घेरती हुई दिखाई दे रही है, वहीं बहुत से लोग इस कानून का समर्थन करते हुए भी दिखाई दे रहे है.

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कानून के पक्ष में बोले हरीश साल्वे

नागरिकता संशोधन कानून लागू होते ही देश में बहस शुरु हो गई है. अब तो ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है. वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कानून के पक्ष में कई अहम बातें बताई है. इस कानून के विरोध पर हरीश साल्वे का कहना है कि इसका मतलब नहीं बनता कि आपको ‘प्रताड़ित’ लोगों के एक वर्ग को नागरिकता देने के लिए पूरी दुनिया के लोगों को शामिल कर लें. (जिन्हें नागरिकता दी जा रही है) वे भारतीय एथ्निसिटी के हैं. धार्मिक आधार पर उनके साथ भेदभाव होता है.

‘नागरिकता कानून एक नीतिगत चॉइस’

सीएए से समानता का अधिकार और अनुच्छेद 14 के उल्लंघन के दावों पर हरीश साल्वे ने बताया कि अनुच्छेद 14 के तहत तमाम भारतीयों को भारत में अधिकार मिलता है. नागरिकता कानून एक नीतिगत चॉइस है. उन्होंने ब्रिटेन की स्थिति का हवाला देकर बताया कि कैसे ब्रिटेन ने शरणार्थियों के लिए दरवाजे खोले और आज उससे परेशान है. ब्रिटेन का इमिग्रेशन सिस्टम ध्वस्त हो रहा है. हरीश साल्वे ने कहा, “ब्रिटेन आज अपना रुतबा खो रहा है. मैं लंदन में रहता हूं लेकिन यकीन मानिए शहर जर्जर हालत में है… लंदन का बुनियादी ढांचा जर्जर हालत में है. जब मैं दिल्ली उतरता हूं तो मुझे लगता है कि मैं एक विकासशील देश से एक विकसित देश में आ गया हूं. यही अंतर है. लंदन में 200 यात्रियों के लिए इमीग्रेशन पर 2 लोग हैं… दिल्ली हवाई अड्डे पर 14 हैं. लंदन के पास इन सबके लिए पैसे ही नहीं हैं.”

‘हमारे पास इतना रिसोर्सेज नहीं है कि हम पूरी दुनिया के लोगों की मदद करें’

नागरिकता कानून से भारत की धर्मनिरपेक्षता प्रभावित होती है, इस संबंध में एक सवाल पर हरीश साल्वे ने कहा कि हमारे पास इतना रिसोर्सेज नहीं है कि हम पूरी दुनिया के लोगों की मदद करें. जब सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात करती है तो आप कहते हैं कि हर किसी के साथ एक जैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता, लेकिन नागरिकता कानून पर इसका उलटा बोलते हैं.

हरीश साल्वे ने अपनी पत्नी का किया जिक्र

आपको बता दे कि साल्वे ने कहा कि भारत वो बड़ा भाई नहीं हो सकता जो पाकिस्तान के साथ अंतर-धार्मिक विवादों को सुलझाने के लिए बैठे. भारत दुनिया के तमाम परेशान लोगों के लिए अपनी सीमा नहीं खोल सकता. (पाकिस्तान, अफगानिस्ता और बांग्लादेश के जिन समुदाय के लोगों को नागरिकता देने की बात की जा रही है) ये हमारी ही जाति के लोग हैं.नागरिकता संशोधन कानून में तीन मुस्लिम बहुल देशों के ‘प्रताड़ित’ लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है. इसको लेकर हरीश साल्वे कहते हैं कि उनकी पत्नी भी एक अफगान हैं. उन्होंने कहा, “जहां तक अफगानिस्तान की बात है… तो मेरी पत्नी एक अफगान मुस्लिम है… बड़ी होते हुए उन्हें पहले परिवार, फिर समुदाय, देश और फिर धर्म के बारे में सिखाया जाता था… लेकिन आज ये बदल चुका है, क्योंकि अब वहां तालिबान है.”

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‘भारत अपनी सीमा नहीं खोल रहा है’

संशोधित कानून में दिसंबर 2014 की कट ऑफ तारीख तय की गई है. मसलन, संबंधित देशों से जो लोग 31 दिसंबर 2014 से पहले हिंदुस्तान आ चुके हैं, उन्हें नागरिकता देने का प्रावधान है. इसपर हरीश साल्वे कहते हैं कि कुछ कट ऑफ डेट होनी चाहिए. इसका मतलब है कि जो लोग इस तारीख से पहले आकर भारत में रह रहे हैं, सिर्फ उन्हें ही नागरिकता दी जाएगी. वरिष्ठ वकील ने स्पष्ट किया, “भारत अपनी सीमा नहीं खोल रहा है.

असम के कानून का हवाला देते हुए कहा ..

हम प्रवास को आमंत्रित नहीं कर रहे हैं. ये वे लोग हैं जो पलायन कर चुके हैं लेकिन उन्हें नागरिकता नहीं मिली है.वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने असम के कानून का हवाला देते हुए कहा कि आप बांग्लादेश सीमा के बारे में बोलते हैं, तो मैं आपको भेदभाव के बारे में बता दूं… मुस्लिम को असम में प्रवेश करने पर कुछ नहीं किया जाता था लेकिन एक भारतीय अगर बंगाल में दो किलोमीटर भी प्रवेश कर जाए तो उन्हें बाहर कर दिया जाता था… लेकिन यह ठीक था क्योंकि यह एक “धर्मनिरपेक्ष सरकार” द्वारा किया गया अधिकार था?

‘कम से कम मुट्ठी भर लोगों को लाभ तो मिलने दीजिए’

दरअसल, तीन मुस्लिम बहुल देशों से ‘प्रताड़ित’ गैर-मुस्लिम आबादी को भारत की नागरिकता देने का मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता कानून को चुनौती देने के मामले पर हरीश साल्वे ने कहा कि कानून पर रोक लगाने की मांग से क्या मिलेगा? क्या सुप्रीम कोर्ट इस पर सभी के लिए रोक लगाने जा रहा है? नहीं. कम से कम मुट्ठी भर लोगों को लाभ तो मिलने दीजिए. जिनको मिल रहा है उन्हें लेने देना चाहिए. याचिकाकर्ता का मामला यह है कि अधिक लोगों को शामिल किया जाना चाहिए, ऐसा नहीं कि किसी को भी शामिल नहीं किया जाना चाहिए, है ना? तो उन्हें रुकने से क्या मिल रहा है? इसकी तात्कालिकता क्या है? क्या लोग सीमा पर मर रहे हैं? 2014 की कट ऑफ डेट है. किसी को बाहर नहीं किया जा रहा है.

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