Climate Change : जलवायु परिवर्तन की तेज़ी से हो रही वैश्विक गर्मी के कारण अंटार्कटिका में बर्फ पिघल रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे अंटार्कटिका की बर्फ के नीचे दबे कम से कम 100 ज्वालामुखी फिर से सक्रिय हो सकते हैं। हालिया शोधों ने इस खतरे की तरफ गंभीर इशारा किया है कि जल्द ही विश्व के कई हिस्सों में लगातार और भयानक ज्वालामुखी विस्फोट हो सकते हैं।
प्राग में आयोजित गोल्डश्मिट जियोकेमिस्ट्री कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत एक शोध पत्र में चिली के एंडीज पर्वत के भूगर्भीय आंकड़ों की जांच के आधार पर यह दावा किया गया है कि बर्फ के पिघलने से ज्वालामुखी जाग सकते हैं। शोध के मुताबिक, 26,000 से 18,000 साल पहले बर्फ की मोटी परत के नीचे दबे ज्वालामुखी 13,000 साल पहले बर्फ पिघलने के बाद सक्रिय हुए और लगातार विस्फोट हुए। अब वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यही प्रक्रिया अंटार्कटिका समेत दुनिया के अन्य हिस्सों में भी हो सकती है।
दुनिया के लिए बड़ी चुनौती
वैज्ञानिकों का मानना है कि आइसलैंड में पहले ही बर्फ पिघलने के कारण ज्वालामुखी सक्रिय हो चुके हैं। यह अनुभव पूरी दुनिया पर लागू हो सकता है। अगर अंटार्कटिका में छुपे ‘सोए हुए दिग्गज’ ज्वालामुखी जाग गए, तो इससे बड़े पैमाने पर विनाशकारी विस्फोट हो सकते हैं, जो वैश्विक जलवायु और जीवन के लिए गंभीर खतरा साबित होंगे।
शोधकर्ता पाब्लो मोरेनो-यागर और उनकी टीम की खोज
चिली में एक ज्वालामुखी का अध्ययन कर रहे शोधकर्ता पाब्लो मोरेनो-यागर और उनकी टीम ने ज्वालामुखीय चट्टानों के रेडियोआइसोटोप की जांच की है। इससे पता चला कि ज्वालामुखी बर्फ के नीचे दबे थे और जब बर्फ पिघली, तो ज्वालामुखी सक्रिय हो गए। टीम ने फिर से सक्रिय ज्वालामुखियों की संख्या गिननी शुरू कर दी है, जिससे स्पष्ट होता है कि भविष्य में इसके और विस्फोट होने की संभावना है।
वैश्विक तापमान वृद्धि से बढ़ रहा खतरा
वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण अंटार्कटिका की बर्फ तेजी से पिघल रही है, जिससे भू-तापीय गतिविधि बढ़ रही है। उन्होंने ‘लाल बादल’ यानी ज्वालामुखी के सक्रिय होने के संकेत देखना शुरू कर दिए हैं। यदि ये ज्वालामुखी फिर से जाग उठे तो इससे भारी विनाशकारी घटनाएं हो सकती हैं, जिनका प्रभाव विश्व स्तर पर महसूस किया जाएगा।
वैज्ञानिकों की इस चेतावनी से यह साफ हो गया है कि जलवायु परिवर्तन केवल ग्लोबल वार्मिंग तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे पृथ्वी की आंतरिक शक्तियां भी जागृत हो सकती हैं। बर्फ के नीचे दबे ज्वालामुखी के विस्फोट विश्व के लिए एक नया और बड़ा खतरा बन सकते हैं। इस दिशा में सतर्कता और त्वरित वैज्ञानिक कार्यवाही आवश्यक है ताकि भविष्य में होने वाली आपदाओं से बचा जा सके।
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