CJI BR Gavai News: सुप्रीम कोर्ट को आज 52वां मुख्य न्यायाधीश (CJI) मिल गया है। जस्टिस बी.आर. गवई ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। शपथ से पहले का एक दृश्य ने लोगों का ध्यान खींचा, जब जस्टिस गवई ने मंच के पास बैठे गणमान्य लोगों से हाथ जोड़कर अभिवादन किया और फिर अपनी मां के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। यह भावुक क्षण कैमरों में कैद हुआ और सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया।
राष्ट्रपति ने दिलाई शपथ
बताते चले कि, राष्ट्रपति भवन में आयोजित शपथ समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जस्टिस गवई को भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। समारोह में उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, और सुप्रीम कोर्ट के जज संजीव खन्ना सहित कई प्रमुख हस्तियां उपस्थित रहीं।
दलित समुदाय से दूसरे और पहले बौद्ध CJI
जस्टिस गवई की नियुक्ति कई मायनों में ऐतिहासिक है। वह स्वतंत्र भारत के पहले बौद्ध और दलित समुदाय से दूसरे CJI बने हैं। इससे पहले, न्यायमूर्ति के.जी. बालकृष्णन दलित समुदाय से पहले CJI बने थे। जस्टिस गवई का कार्यकाल हालांकि छह महीने का होगा, लेकिन उनके योगदान को विशेष महत्व दिया जा रहा है।
कई ऐतिहासिक फैसलों में रहा है योगदान
जस्टिस बी.आर. गवई ने अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक और संवेदनशील मामलों में अहम फैसले दिए हैं। इनमें अनुच्छेद 370 को बरकरार रखना, डिमोनेटाइजेशन को वैध करार देना, SC कोटे में उप-वर्गीकरण को समर्थन, और बुलडोजर न्याय पर रोक लगाने जैसे बड़े निर्णय शामिल हैं। उनके निर्णय न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा की दिशा में मील का पत्थर माने जाते हैं।
बुलडोजर न्याय पर जताई आपत्ति
‘बुलडोजर जस्टिस’ के मामलों में जस्टिस गवई ने नैतिकता, न्याय और मानवाधिकारों की रक्षा की आवाज बुलंद की। उन्होंने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि मनमानी तोड़फोड़ की कार्रवाई न्याय के सिद्धांतों और कानून के राज के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि सरकारें जज, जूरी और जल्लाद की भूमिका एक साथ नहीं निभा सकतीं। आश्रय के अधिकार को उन्होंने संवैधानिक अधिकार बताया और राज्य की मनमानी पर सख्ती से अंकुश लगाने की बात कही।
जस्टिस बी.आर. गवई का मुख्य न्यायाधीश के रूप में चयन, न्यायपालिका के सामाजिक समावेश और न्याय की व्यापक दृष्टि का प्रतीक माना जा रहा है। उनके अब तक के फैसले यह दर्शाते हैं कि वे संविधान की गरिमा और न्याय के मूलभूत सिद्धांतों के प्रति समर्पित हैं। आने वाले छह महीनों में देश को उनसे संतुलित, न्यायपूर्ण और साहसी निर्णयों की उम्मीद है।
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