Sitamarhi Muharram Juloos : सीतामढ़ी से एक बड़ी खबर सामने आई है। यहां ताजिया जुलूस के दौरान भारी हंगामा हुआ है। इसके बाद दो पक्षों के बीच विवाद के बाद बात बढ़ गई और पथराव शुरू हो गया। मिली जानकारी के अनुसार पथराव की इस घटना में दोनों पक्ष के दर्जनों लोग घायल हुए हैं।
हालात को काबू में करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा है। नगर थाना क्षेत्र के मेहसौल चौक और किरण चौक की है।जिसके बाद स्थिति कंट्रोल में आई। इस बीच जख्मी लोगों को इलाज के लिए सदर अस्पताल में भर्ती किया गया है। घटना को लेकर शाम को नगर थाना में शांति समिति की बैठक बुलाई गई है।
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दो पक्षों के बीच पथराव
दरअसल, बुधवार की सुबह मोहर्रम के दौरान दो ताजिया जुलूस में शामिल लोगों के बीच किसी बात को लेकर विवाद शुरू हो गया। इस दौरान बात इतना बढ़ गई की पथराव शुरू हो गया।
वहीं हंगामे की जानकारी मिलने के बाद मौके पर भारी संख्या में पुलिस बल पहुंचे और हंगामा कर रहे लोगों को समझाने की कोशिश की लेकिन जब दोनों पक्ष के लोग नहीं माने तो पुलिस ने हालात को काबू में करने के लिए लाठीचार्ज कर दिया और हंगामा कर रहे लोगों को खदेड़ दिया। पुलिस के मुताबिक, फिलहाल स्थिति नियंत्रण में है।
पटना में भी हुआ बवाल
वहीं इससे पहेल राजधानी पटना के शास्त्री नगर थाना क्षेत्र के समनपुरा की मदरसा गली में मंगलवार की देर रात ताजिया जुलूस के दौरान बवाल की सूचना मिलते ही पटना पुलिस हरकत में आ गई। एक युवक की दुकान में तोड़फोड़ और लूटपाट की बात कही जा रही है। हालांकि, डीएसपी ने लूटपाट से इनकार किया है। कहा कि जुलूस से पूर्व मारपीट हुई थी। दुकान का फ्रिज क्षतिग्रस्त हुआ है।
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जानें ताजिया जुलूस क्यों निकालते है?
मुस्लमानों के लिए यह त्योहार एक शोक, गम और त्याग का त्योहार होता है. इसलिए इस दिन लोग काले रंग के कपड़े पहनते है और कर्बला की जंग में शहादत होने वालों का याद में मातम मनाते हुए ताजिया जुलूस निकालते है। लेकिन मोहर्रम को अलग-अलग करकों से मनाया जाता है। जैसे शिया समुदाय के लोगों द्वारा ताजिया निकाला जाता है, मजलिस पढ़ जाते है और दुख जाहिर किया जाता है तो वहीं सुन्नी समुदाय वाले रोजा रखकर नमाज अदा करते है।
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शिया और सुन्नी कैसे मनाते हैं मुहर्रम?
रमजान के बाद इस्लाम में मुहर्रम का भी खास स्थान होता है। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, मुहर्रम इस्लामिक नए साल का पहला महीना होता है और इसे पवित्रता, भक्ति और शहादत का महीना माना जाता है। मुहर्रम का दसवां दिन, जिसे ‘यौम-ए-आशूरा’ कहते हैं, विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस दिन पैगंबर मोहम्मद के पोते, हजरत इमाम हुसैन, और उनके साथियों की करबला में शहादत की याद में मनाया जाता है।
मुहर्रम के दौरान मुस्लिम समुदाय इमाम हुसैन की कुर्बानी और उनके द्वारा दी गई शिक्षा को याद करते हुए शोक मनाता है। इस महीने में जगह-जगह पर मजलिसें और मातम आयोजित किए जाते हैं। शिया समुदाय के लोग काले कपड़े पहनकर इमाम हुसैन की याद में मातम करते हैं, जबकि सुन्नी समुदाय इस दिन रोजा रखकर इमाम हुसैन की शहादत को याद करता है।