BJP को 586 करोड़ का चंदा देने वाली मेघा इंजीनियरिंग पर CBI का शिकंजा

Mona Jha
By Mona Jha

Electoral Bond Case:देश में लोकसभा चुनाव का शोर है, हर तरफ पार्टियों की तैयारियों की होड़ भी दिख रही है,इस बीच सियासी माहौल भी काफी गर्म है, इस बीच इलेक्टोरल बॉन्ड पर इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर देश में खूब राजनीति देखने को मिली रही थी। पक्ष और विपक्ष द्वारा एक दूसरे पर खूब आरोप लगाए गएं। इस बीच CBI ने हैदराबाद की कंपनी मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के खिलाफ FIR दर्ज की है। यह कंपनी इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने में दूसरे नंबर थी।

कंपनी ने 966 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीद थे। यह FIR रिश्वत से जुड़े मामले में की गई है।अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं।वहीं सूत्रों के मुताबिक अब बताया जा रहा है कि सीबीआई ने इन अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार का केस दर्ज कर लिया है। इस कंपनी की ओर से 2018 से 2024 के दरम्यान राजनीतिक पार्टियों को इलैक्टोरल बॉन्ड के जरिए 1200 करोड़ रुपये से ज्यादा का चंदा दिया गया था।

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इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाली मेघा इंजीनियरिंग

दरअसल कंपनी ने 966 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे थे और वह इन बॉन्ड की दूसरी सबसे बड़ी खरीदार है। अधिकारियों ने शनिवार को कहा कि जगदलपुर एकीकृत इस्पात संयंत्र से संबंधित कार्यों के लिए मेघा इंजीनियरिंग के 174 करोड़ रुपये के बिलों को मंजूरी देने में लगभग 78 लाख रुपये की कथित रिश्वत दी। प्राथमिकी में एनआईएसपी और एनएमडीसी के आठ अधिकारियों और मेकॉन के दो अधिकारियों को भी कथित तौर पर रिश्वत लेने के लिए नामित किया गया है।

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चुनावी बॉन्ड की दूसरी सबसे बड़ी खरीदार थी

आपको बता दें कि चुनाव आयोग के 21 मार्च को जारी आंकड़ों के अनुसार मेघा इंजीनियरिंग चुनावी बॉन्ड की दूसरी सबसे बड़ी खरीदार थी और उसने भाजपा को लगभग 586 करोड़ रुपये की सबसे अधिक राशि का दान दिया था। कंपनी ने बीआरएस को 195 करोड़ रुपये, डीएमके को 85 करोड़ रुपये और वाईएसआरसीपी को 37 करोड़ रुपये का दान दिया। टीडीपी को कंपनी से करीब 25 करोड़ रुपये मिले, जबकि कांग्रेस को 17 करोड़ रुपये मिले।

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चुनावी बॉन्ड पर हंगामा

चुनावी बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी खूब हंगामा देखे को मिला था। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को कहा था कि वह यूनिक कोड के साथ चुनावी बॉन्ड खरीदने वालों, पार्टियों के नाम का खुलासा करें। लेकिन एसबीआई द्वारा कई बार पूरी जानकारी नहीं दी गई। इसके बाद एसबीआई द्वारा दी गई जानकारी को जब चुनाव आयोग की वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया तो पता चला कि उसमें यूनिक कोड नहीं दिया गया था। इस मामले पर अगली सुनवाई में जब सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई तब जाकर एसबीआई की तरफ से यूनिक कोड जारी कर अपडेटेड जानकारी साझा की गई थी।

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