By-Election News: दीपावली के बाद नवंबर में होने जा रहे 13 राज्यों की 47 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव (By-Election) सियासी नजरिए से बेहद अहम माने जा रहे हैं। इन उपचुनावों में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath), पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee), बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) और जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) की प्रतिष्ठा दांव पर है। इन उपचुनावों के परिणाम न केवल इन नेताओं की राजनीतिक ताकत की परीक्षा होंगे, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों के लिए भी संकेतक साबित हो सकते हैं। इसलिए इन चुनावों पर सभी की पैनी नजरें हैं।
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उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की साख दांव पर
उत्तर प्रदेश में होने वाले 10 विधानसभा सीटों के उपचुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा को राज्य में उम्मीद से कम सीटें मिलने के बाद, ये उपचुनाव उनके लिए एक बड़ी परीक्षा माने जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में सिर्फ 33 सीटें मिली थीं, जबकि समाजवादी पार्टी (सपा) को 37 और कांग्रेस को 6 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।

यह भाजपा के लिए बड़ा झटका था, क्योंकि राज्य में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पूरी ताकत झोंकी गई थी, फिर भी अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी थी।अब उपचुनावों में जीत हासिल करना भाजपा और योगी आदित्यनाथ दोनों के लिए आवश्यक हो गया है। मुख्यमंत्री योगी खुद इन सीटों पर प्रचार कर चुके हैं और विकास परियोजनाओं का ऐलान भी कर चुके हैं।
सपा और कांग्रेस में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान
दूसरी तरफ, समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने लोकसभा चुनाव में मिली जीत के बाद अपनी ताकत को बरकरार रखने के लिए पूरी तैयारी कर ली है। अखिलेश यादव उपचुनाव में भी यह साबित करना चाहते हैं कि लोकसभा चुनाव की जीत कोई संयोग नहीं थी। हालांकि, विधानसभा उपचुनावों में सीट बंटवारे को लेकर सपा और कांग्रेस के बीच तनाव बना हुआ है। सपा ने कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें देने का प्रस्ताव दिया है, जबकि कांग्रेस इससे असंतुष्ट नजर आ रही है।
बिहार में प्रशांत किशोर की सियासी शुरुआत

बिहार में चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इन उपचुनावों में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी पहली बार चुनावी मैदान में उतरेगी। प्रशांत किशोर ने अपनी पार्टी की शुरुआत के वक्त ही कहा था कि उपचुनाव में वे अपनी ताकत का ट्रेलर दिखाएंगे और अगले साल के विधानसभा चुनावों में पूरी ताकत झोंकेंगे। अगर प्रशांत किशोर उपचुनावों में अपनी पार्टी की दमदार उपस्थिति दर्ज कराने में सफल होते हैं, तो यह उनके लिए बड़ी उपलब्धि होगी। हालांकि, अगर उनके उम्मीदवार असफल होते हैं, तो विधानसभा चुनाव से पहले ही उनकी पार्टी की साख कमजोर हो सकती है।
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तेजस्वी यादव की प्रतिष्ठा भी दांव पर

बिहार के उपचुनाव तेजस्वी यादव के लिए भी काफी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इनमें से तीन सीटें उनके महागठबंधन के पास थीं। लोकसभा चुनाव में विपक्ष की एकजुटता के बावजूद तेजस्वी यादव अपनी ताकत दिखाने में सफल नहीं हो सके थे, इसलिए उपचुनाव उनके लिए आगामी विधानसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल की तरह है। महागठबंधन की ओर से तीन सीटों पर राजद के उम्मीदवार उतारे गए हैं, जबकि एक सीट भाकपा माले के पास गई है। हालांकि, एनडीए के खिलाफ यह उपचुनाव की लड़ाई आसान नहीं होगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने विकास कार्यों पर भरोसा है, और एनडीए भी अपनी पूरी ताकत से चुनावी मैदान में उतर रहा है।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की परीक्षा

पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए यह उपचुनाव एक बड़ी चुनौती है। लोकसभा चुनावों में टीएमसी ने 29 सीटें जीती थीं, लेकिन राज्य में हाल ही में एक महिला डॉक्टर से दरिंदगी की घटना ने ममता बनर्जी को कटघरे में खड़ा कर दिया है। भाजपा इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही है और ममता बनर्जी के इस्तीफे की मांग कर रही है। आरजी कर अस्पताल की घटना के बाद पश्चिम बंगाल में पहली बार कोई चुनाव हो रहा है, ऐसे में ममता बनर्जी के लिए यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि उनकी पकड़ अब भी बरकरार है या उन्हें राजनीतिक झटका लग सकता है।
इन उपचुनावों के परिणाम न केवल संबंधित राज्यों की राजनीति पर असर डालेंगे, बल्कि आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए भी महत्वपूर्ण संकेत देंगे। योगी आदित्यनाथ, ममता बनर्जी, तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर की सियासी प्रतिष्ठा इन चुनावों पर टिकी हुई है, और इसके नतीजे उनके भविष्य की राजनीति की दिशा तय करेंगे।