Input : muskan…
पीएम मोदी के बयानों से इतना तो समझा जा सकता है, कि पसंमादा समाज भाजपा के लिए बहुत ज़रूरी है। पीएम नरेंद्र मोदी ने मेरा बूथ सबसे मजबूत’ कार्यक्रम के दौरान पसमांदा मुसलमानों का मुद्दा उठाया, इस दौरान पीएम ने कहा कि वोटबैंक की राजनीति करने वालों ने पसमांदा मुसलमानों को तबाह कर दिया है।
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हालांकि, ये पहली बार नहीं है, जब पीएम ने इस समाज के बारे में बात की हो। इसी साल जनवरी में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पीएम ने भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं को पसमांदा मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने के लिए कहा था। आखिर कौन है, ये पसमांदा मुस्लमान, जिनपर भाजपा इतना फोकस कर रही है।
कौन है पसमांदा मुस्लमान?
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दरअसल देश में मुस्लिमों की कुल आबादी के 85 फीसदी हिस्से को पसमांदा कहा जाता है, यानि वो मुस्लिम जो दबे हुए हैं, इसमें दलित और बैकवर्ड मुस्लिम आते हैं, जो मुस्लिम समाज में एक अलग सामाजिक लड़ाई लड़ रहे हैं। उनके कई आंदोलन हो चुके हैं.एशियाई मुस्लिमों में जाति व्यवस्था उसी तरह लागू है, जिस तरह भारतीय समाज में।
भारत में रहने वाले मुस्लिमों में 15 फीसदी उच्च वर्ग या सवर्ण माने जाते हैं, जिन्हें अशरफ कहते हैं, लेकिन इसके अलावा बाकि बचे 85 फीसदी अरजाल और अज़लाफ़ दलित और बैकवर्ड ही माने जाते हैं। इनकी हालत मुस्लिम समाज में बहुत अच्छी नहीं है। मुस्लिम समाज का क्रीमी तबका उन्हें हेय दृष्टि से देखता है, वो आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक हर तरह से पिछड़े और दबे हुए हैं। इस तबके को भारत में पसमांदा मुस्लिम कहा जाता है।
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क्या हैं राजनीतिक मायने?
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माना जाता है कि पसमांदा समाज के लोग देश के लगभग 18 राज्यों में हैं। यूपी, बिहार, राजस्थान, तेलगांना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश में इनकी संख्या अधिक है. सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश में है। हर विधानसभा सीट पर इनकी उपस्थिति अच्छी खासी संख्या में है, जिनमें करीब 44 जातियां जैसे राइनी, इदरीसी, नाई, मिरासी, मुकेरी, बारी, घोसी शामिल हैं। आंकड़ों के हिसाब से यह वोट बैंक लोकसभा की सौ से अधिक सीटों पर अपना प्रभाव रखता है। जनसंख्या के आधार पर देखें, तो असम और बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या 25-30 प्रतिशत, बिहार में करीब 17 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में करीब 20 प्रतिशत, दिल्ली में भी 10-12 प्रतिशत, महाराष्ट्र में करीब 12 प्रतिशत है, केरल में 30 प्रतिशत संख्या मुस्लिम समुदाय की है।
मुस्लिम समुदाय पर फोकस करने की कोशिश की…
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बीजेपी मुस्लिम समुदाय के उस वर्ग पर फोकस करने की कोशिश कर रही है, जो आमतौर पर विपक्षी दलों का वोट बैंक है। बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में दूसरी बार सत्ता में आने के बाद पसमांदा मुसलमान दानिश अंसारी को जगह देकर इसके संकेत भी दिए। यही नहीं, इसके बाद, मोदी कैबिनेट के बड़े मुस्लिम चेहरे मंत्रिमंडल से गायब हो गए और उन्हें दोबारा राज्यसभा नहीं भेजा गया।
गौरतलब है कि यूपी-बिहार के विधानसभा चुनाव में सोशल एक्सपेरिमेंट के जरिए जिस तरह से बीजेपी ने गैर-यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों के बीच घुसपैठ की थी उसी के तहत एक कोशिश यहां भी बीजेपी करती दिख रही है।