शहबाज खान
Bharatiya Janata Party: हर पार्टी अपना बीता हुआ कल आखिर कैसे भूल सकती है.भूलना चाहिए भी नहीं क्योंकि ये जरूरी हो जाता है कि हम इतिहास के उन पन्नों को पलट करे जरूर देखें ताकि हमें ये पता चल पाए जो गलती हमारे पुरखों ने कि थी वो हम ना दोहराएं. 2024 के चुनाव की गर्मी का गुब्बार थमने के बाद आज उस पार्टी की बात करते है जिसे शून्य से शिखऱ तक का सफर तय करके देश की सियासत के मायने पलट दिए.आज हम आपको बताएंगे कि चार दशक पहले जिस पार्टी का कोई अस्तित्व नहीं था आज वो पार्टी देश पर राज कर रही है आखिर कैसे?
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कैसे बीजेपी ने सत्ता के सिंघासन पर जगह बनाई?

बीजेपी एक ऐसी पार्टी जो आग में तपी और तप कर कुंदन बन गई. बीजेपी एक ऐसी पार्टी जिसने अपना अस्तित्व बनाने के लिए अपना सर्वस्व झोंक दिया. सियासत की दास्तान जब-जब लिखी जाएगी तब तब इस पार्टी का जिक्र जरूर होगा.बीजेपी एक ऐसी पार्टी जिसने जमीन से उठ कर आसमान तक का सफर तय किया है और इस सफर में ना जाने कितनी आंधियां और तूफान थे जो इस पार्टी का इंतजार कर रहे थे. हालांकि इस पार्टी के नेताओं ने आसमान से लेकर जमीन तक की सभी मुश्किलों को पार करके सत्ता के उस सिंघासन पर जगह बनाई है. जहां पहुंचने में हर एक कार्यकर्ता ने अपने लहू का एक एक कतरा कुर्बान किया है.
देश की पार्लियामेंट में जिसके कभी दो सांसद हुआ करते थे आज उसी पार्टी की धमक से विपक्षियों के कानों के पर्दे फट जाते हैं जिस पार्टी को कभी नजरअंदाज करती कांग्रेस उस पर हसा करती थी. आज उसी छोटी सी पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता के दरवाजे से बेदखल कर दिया है. सत्ता के गलियारों में कभी इठला कर चलने वाली पार्टी को बीजेपी ने आज हाशिए पर ढकेल दिया है. लेकिन सियासत में आखिर ये जादू हुआ कैसे?
1980 में बीजेपी का उदय हुआ

साल 1980 में जन्मी पार्टी का आज आज समूचे देश में डंका बज रहा है लेकिन एक सवाल है जो मन को कौंध रहा है. सवाल ये कि इस पार्टी का हुकूक आज समूचे देश में कैसे हो गया.कांग्रेस जैसी पावरफुल पार्टी को एक अदनी सी पार्टी ने कैसे ठिकाने लगा दिया? साल 1980 में बीजेपी पार्टी का उदय हुआ.अटल बिहारी वाजपेयी, मुरली मनोहर जोशी और लाल कृष्ण आडवाणी..इन तीन नेताओं को बीजेपी की स्थापना का सबसे ज्यादा श्रेय दिया जाता है. धीरे-धीरे इस पार्टी ने जमीन पर अपनी पैठ बनानी शुरू कि, गांव नुक्कड़ चौराहे पर जाकर इसके एक एक कार्यकर्ताओं ने मेहनत की.बीजेपी लोगों में अपनी छाप बना ही रही थी कि तभी देश में कुछ ऐसा हो गया कि जिसने सबको दहला दिया.
कांग्रेस को सहानुभूति वोट मिले

तारीख- 31 अक्टूबर, साल 1984 जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी. उनकी हत्या के बाद देश भर में बवाल हो गया था..चारों ओर लाशों की ढेर बिछने शुरू हो गए.हर तरफ चीख पुकार का मंजर था.इंदिरा गांधी की हत्या का कांग्रेस पर ये असर पड़ा कि देश में हुए आम चुनाव में कांग्रेस को सहानुभूति वोट मिल गए और उस वक्त के आम चुनाव में कांग्रेस ने 400 से ज्यादा सीटें जीती. वहीं नई नवेली पार्टी बीजेपी के महज दो सांसद चुन कर संसद तक पहुंचे.
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1989 के चुनाव में BJP की किस्मत का पासा पलटा

गुजरात के मेहसाणा से एके पटेल और आंध्र प्रदेश के हनमकोंडा से चंदूपातला जंगा रेड्डी. उस वक्त सदन में भले ही बीजेपी के दो सांसद रहे हो लेकिन वक्त बदला मंजर बदला और बदल गई बीजेपी. साल 1989 के आम चुनाव में बीजेपी की किस्मत का पासा ऐसा पलटा कि 2 सीटों वाली पार्टी 85 जीटें जीतने में सफल रही. तब से अब तक बीजेपी लगातार आगे बढ़ती गई. बीजेपी ने साल 1991 में 120 सीटें जीती. 1996 में 161 सीटों पर जीत दर्ज करके सबसे बड़ी पार्टी बनने का मुकाम हासिल किया और तब कुछ हुआ ऐसा जिसकी कल्पना किसी ने नहीं कि थी.पहली बार हुआ जब बीजेपी की पार्टी से निकला एक नेता देश का सिरमौर बन गया.अटल बिहारी वाजपेयी ने देश की कमान संभाली और देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली.
13 दिनों में गिर गई सरकार

हालांकि सरकार बनने के 13 दिन बाद ही बीजेपी की सरकार गिर गई और अटल बिहारी को इस्तीफा देना पड़ा.इस्तीफे के बाद भरी संसद में अटल का गुस्सा देखने को मिला और अटल ने बीजेपी की यात्रा का जिक्र किया. बीजेपी की विकास यात्रा पर बात करेंगे दूसरी कड़ीं में..अगले कड़ी में हम जानेंगे कि बीजेपी इस झटके से कैसे उभरी और फिर गिर कर कैसे उठी?
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