BJP ने लोकसभा स्पीकर पद के लिए निकाला यह तोड़, विपक्ष परेशान

Akanksha Dikshit
By Akanksha Dikshit

BJP News: स्पीकर के पद को लेकर राजनैतिक माहौल में काफी हलचल मची हुई है। हर कोई चाहता है कि यह महत्वपूर्ण पद उसकी झोली में आ गिरे। क्योंकि जब तक मंत्रिमंडल काल का निर्णय नहीं हुआ था। तब तक विपक्षी दलों के लोगों द्वारा यह कयास लगाया जा रहे थे कि भाजपा सहयोगी दलों को अपने पास रखने के लिए उन्हें भर-भर के महत्वपूर्ण पद देगी। ऐसा सोचा जा रहा था कि टीडीपी, जदयू, शिवसेना इन सभी राजनीतिक दलों की मांगों को माना जाएगा। लेकिन लगता है मोदी सरकार 3.0 ने विपक्षी पार्टियों को करारा जवाब देने के लिए कोई रास्ता ढूंढ निकाला है।

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मोदी सरकार के पास है इसका तोड़

जैसे ही सभी विभागों का बंटवारा हुआ तो पता चला कि एनडीए एलाइंस के सहयोगियों में सिर्फ 11 को विभागीय पद मिले हैं। इसके बाद विपक्षी दलों में यह बात आग की तरह फैल गई कि मोदी सरकार अपनी सहयोगी पार्टियों से बिल्कुल भी नहीं डरती हैं। उन्हें किसी भी प्रकार का यह भय नहीं है कि अगर इन सब ने एक-एक करके गठबंधन तोड़ दिया तो मोदी सरकार 5 सालों तक कैसे टिकेगी।

इन सब बातों को देखकर सभी अपोजिशन वालों को लग रह है कि जरूर मोदी सरकार कोई ना कोई समाधान लेकर चल रही है। जिसके चलते ही वह सभी सहयोगी दलों को अपने नियंत्रण में रख सकती है। अगर बात की जाए कि ऐसा कौन सा समाधान भाजपा सरकार ने खोज लिया है तो कई लोगों द्वारा यह अनुमान लगाया जा रहा है कि हो सकता है इनकी नीति महाराष्ट्र काल से कुछ मिली-जुली हो।

वह समय जब महाराष्ट्र सरकार महाविकास अघाड़ी दल द्वारा चल रही थी तब शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन से उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के सीएम बने। उसी समय भाजपा के द्वारा शिवसेना के और एनसीपी के कुछ लोगों को अपने साथ मिला लिया गया था। दो तिहाई से भी ज्यादा शिवसेना और एनसीपी के लोगों को जब उन्होंने अपने साथ मिला लिया तो एंटी डिफेक्शन लॉ (Anti-Defection Law) के द्वारा उसे मर्जर कहा गया। सीधी सरल भाषा में कहा जाये तो सरकार बीजेपी (BJP) यानी एनडीए की चल रही है। एकनाथ शिंदे सीएम बने हुए हैं।

इसी राजनीतिक फिर बदल को देखते हुए फिर से यह कयास लगाया जा रहा हैं कि बीजेपी एनडीए एलाइंस को ज्यादा पद न देकर के फिर से इतिहास को दोहराना तो नहीं चाहती है? क्योंकि सीधी सी बात है अगर सहयोगियों के सांसदों को अपने साथ मिला लिया जाए तो सरकार तो वैसे भी बची रहेगी। यानी अगर सहयोगियों के सांसदों को भाजपा से मिला दिया जाए या फिर एक पार्टी को तोड़कर दूसरी नई पार्टी के साथ मर्ज कर दिया जाए तो इस काम को करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है स्पीकर। जिस पद के लिए ही यह सारा तना बना बुना जा रहा है।

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स्पीकर पद के लिए चल रही रस्साकस्सी

लोकसभा के अंदर लोकसभा स्पीकर का पद वह पद है जो कि एंटी-डिफेक्शन लॉ (Anti-Defection Law) के अंतर्गत दसवीं अनुसूची 52वें संवैधानिक संशोधन 1985 के तहत अगर कोई पार्टी टूट करके किसी दूसरी पार्टी के साथ मर्ज होना चाहती है, तो उसे पार्टी से दो तिहाई सांसदों का समर्थन चाहिए होता है। इस प्रक्रिया को वैलिड सिर्फ स्पीकर कर सकता है।

इसीलिए इस पद पर सभी की निगाहें टिकी हुई है। शपथ समारोह के बाद राजनीतिक गलियारे में इस पद की विशेष तौर पर चर्चा की जा रही है। जितनी भी सहयोगी पार्टिया हैं वह चाहती हैं कि अगर उन्हें कोई भी प्रमुख विभाग नहीं दिया गया है तो कम से कम स्पीकर का पद उनके पास आ जाए नहीं तो हो सकता है कि भाजपा किसी कारणवश उनके सांसदों को अपने साथ मिलाकर किसी दूसरी पार्टी का निर्माण कर ले। अगर ऐसा होता है तो भाजपा सरकार 5 साल बिना किसी समस्या के आसानी से चल सकती है।

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नायडू और नीतीश लगा रहे अपना जोर

नेताओं की बात करे तो खास तौर से स्पीकर के पद पर आंध्र प्रदेश मुख्यमंत्री चंद्र प्रकाश नायडू और बिहार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दोनों की ही निगाहें टिकी हुई है। दोनों ही दिग्गज नेता पूरा प्रयास कर रहे हैं कि यह पद उनके पास आ जाए। इस स्थिति का फायदा उठाते हुए विपक्षी दल आग में घी डालने का कार्य कर रहा है। बार-बार इंडिया एलाइंस इन सहयोगी दलों को उकसा रहा है कि कुछ भी करके स्पीकर पद को आप ना जाने दे। मतलब विपक्ष में होते हुए भी सहयोगी दल के उत्साहवर्धन में लगे हुए हैं क्योंकि अगर गठबंधन टूटता है तो हो सकता है कुछ स्ट्रांग कैंडिडेट उनसे जाकर मिल जाए ताकि राजनीति में उनका पलड़ा बाकियों से भारी साबित हो।

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क्या स्पीकर पद की शक्तियां

कौन सा सांसद किस तरह का सवाल पूछेगा यह भी स्‍पीकर तय करता। साथ ही सदन की कार्यवाही को कैसे जारी किया जाए यह भी स्‍पीकर ही तय करता है। स्पीकर सदन में बहस और चर्चाओं का संचालन करते हैं, और यह सुनिश्चित करते हैं कि चर्चा सुचारु और निष्पक्ष हो। स्पीकर सदन के सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा करते हैं और किसी सदस्य के विशेषाधिकार हनन की शिकायतों की जांच करते हैं। लोकसभा स्पीकर भारतीय संसद में एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली भूमिका निभाता है।

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