Bihar voter list : बिहार में मतदाता सूची के विशेष एवं गहन संशोधन (एसआईआर) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं। गुरुवार को न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जयमाल्या बागची की पीठ ने सुनवाई शुरू की। याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने इसे संविधान और मतदाता पंजीकरण नियमों के खिलाफ बताया।
यह प्रक्रिया भारत के इतिहास में पहली बार
याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि इस संशोधन में “विशेष गहन पुनरीक्षण” नाम की कोई प्रक्रिया अधिनियमों में नहीं है। यह पहली बार हो रहा है कि बिहार की 7.9 करोड़ आबादी को इस प्रक्रिया में शामिल किया गया है। उन्होंने कहा कि यह पूरी प्रक्रिया केवल 30 दिनों में पूरी करने का आदेश दिया गया है, जो अव्यावहारिक है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि आयोग केवल 11 दस्तावेज़ स्वीकार कर रहा है और आधार कार्ड तथा मतदाता पहचान पत्र को खारिज कर रहा है। इसके बजाय माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र मांगे जा रहे हैं। कोर्ट में कहा गया कि जिन लोगों ने पिछले चुनावों में मतदान किया है, उन्हें फिर से अपनी नागरिकता साबित करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
न्यायाधीशों के तीखे सवाल
न्यायमूर्ति धूलिया ने सवाल किया कि क्या चुनाव आयोग अपनी मर्जी से ऐसी प्रक्रिया चला सकता है। वकीलों ने जवाब में कहा कि वे आयोग की शक्ति नहीं, बल्कि उसकी कार्यप्रणाली को चुनौती दे रहे हैं। न्यायमूर्ति बागची ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 14 और 21 का हवाला देते हुए कहा कि आयोग को कुछ हद तक स्वतंत्रता दी गई है।
महुआ मोइत्रा ने जताई आशंका
तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने अपनी याचिका में कहा कि बिहार के बाद अब पश्चिम बंगाल में भी ऐसी ही प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह लोकतंत्र के बुनियादी ढांचे पर हमला है और लोगों को मतदान के अधिकार से वंचित किया जा रहा है।
क्या किसी को मताधिकार से वंचित किया जा सकता है?
सुनवाई में यह भी सवाल उठा कि क्या किसी नागरिक को केवल कागज़ी तकनीकी आधार पर उसके मताधिकार से वंचित किया जा सकता है। वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि आयोग की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1), 21, 325 और 326 का उल्लंघन करती है।
तीन करोड़ मतदाता खतरे में?
विपक्ष का दावा है कि इस प्रक्रिया से तीन करोड़ लोगों का मताधिकार खतरे में पड़ सकता है। आयोग की नई गाइडलाइन के अनुसार, 1987 से पहले जन्मे लोगों को जन्म प्रमाण पत्र देना होगा, जबकि 1987-2004 के बीच जन्मे नागरिकों को अपने माता-पिता में से किसी एक का प्रमाण देना होगा। 2004 के बाद जन्मे लोगों को दोनों माता-पिता का प्रमाण दिखाना होगा।
SC में कई याचिकाएं, स्थगन आदेश की मांग
महुआ मोइत्रा, मनोज झा, योगेंद्र यादव और एनजीओ पीयूसीएल सहित कई याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से इस आदेश पर रोक लगाने की मांग की है। वे चाहते हैं कि यह प्रक्रिया न केवल बिहार बल्कि बंगाल और अन्य राज्यों में भी लागू न की जाए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला न सिर्फ बिहार बल्कि देश के अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है, जहां भविष्य में इसी तरह की प्रक्रियाएं लागू की जा सकती हैं।
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