Bihar Politics: बिहार की राजनीति में Prashant Kishor की पार्टी ‘जन सुराज’ का हुआ आगाज, गांधी जयंती पर किया ऐलान

Akanksha Dikshit
By Akanksha Dikshit
prashant kishor ki speech

Bihar Politics: बिहार की राजनीति में आज एक नया मोड़ आ गया है। प्रशांत किशोर, जो पिछले दो वर्षों से पदयात्रा के माध्यम से राज्य के विभिन्न हिस्सों में लोगों से संवाद कर रहे हैं, ने अपनी राजनीतिक पार्टी ‘जन सुराज’ (Jan Suraaj) की औपचारिक शुरुआत कर दी है। गांधी जयंती के खास मौके पर पार्टी लॉन्च कर प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने बिहार की सियासी बिसात पर नई चाल चली है। उनका लक्ष्य आगामी विधानसभा चुनावों में बिहार (Bihar) की जनता का समर्थन हासिल करना है, और वे इस सपने को पूरा करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। आपको बता दें कि पटना के वेटनरी कॉलेज ग्राउंड में जन सुराज पार्टी के गठन का कार्यक्रम आयोजित किया गया है। जहां उन्होंने आगामी बिहार चुनाव की रणनीति के बारे में भी बताया।

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प्रशांत किशोर: किस दल के लिए सबसे बड़ा खतरा?

प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) की पार्टी की एंट्री ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। सवाल यह है कि उनकी पार्टी का सबसे ज्यादा नुकसान किस राजनीतिक दल को होगा? प्रशांत किशोर अपने भाषणों में भाजपा, कांग्रेस, लालू प्रसाद यादव की राजद और नीतीश कुमार की जदयू पर एक साथ निशाना साधते रहे हैं। हालांकि, बिहार के चार प्रमुख दल—भाजपा, कांग्रेस, जदयू और राजद—किसी भी प्रकार के नुकसान को लेकर चिंतित नहीं दिख रहे हैं। वे अपने-अपने जातीय समीकरणों पर भरोसा जताते हुए प्रशांत किशोर को बड़ा खतरा मानने से इनकार कर रहे हैं।

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नीतीश कुमार से थी दोस्ती, अब तकरार

कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के करीबी माने जाने वाले प्रशांत किशोर अब उनकी कड़ी आलोचना करने से पीछे नहीं हटते। उनके मुख्य निशाने पर नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) हैं, लेकिन वे भाजपा (BJP) और कांग्रेस (Congress) को भी समय-समय पर कोसते रहे हैं। पहली बार प्रशांत किशोर खुद चुनावी मैदान में उतर रहे हैं, और इस वजह से वे तमाम दलों के लिए अबूझ पहेली बन चुके हैं।

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जातीय समीकरण तोड़ने की है कोशिश

प्रशांत किशोर ने अपनी पदयात्रा के दौरान जातिवाद की राजनीति के खिलाफ लोगों को जागरूक करने की कोशिश की है। उनका दावा है कि बिहार की राजनीति को जातीय समीकरणों के मकड़जाल से निकालने की जरूरत है। हालांकि, बिहार के राजनीतिक दल अपने जातीय समीकरणों पर मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं। राजद अपने ‘मुस्लिम-यादव’ (MY) समीकरण पर और नीतीश कुमार अपने ‘लव-कुश’ समीकरण पर भरोसा करते हैं।

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राजद का चुनावी समीकरण रहता है फिक्स

लालू यादव की पार्टी राजद अपने मुस्लिम-यादव समीकरण के दम पर सत्ता में रही है। प्रशांत किशोर ने लालू यादव के परिवारवाद पर तीखे हमले किए हैं, और उनके बेटे तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) का मखौल भी उड़ाया है। हालांकि, राजद का मानना है कि तेजस्वी यादव को यादवों और मुसलमानों का भरपूर समर्थन मिलता रहेगा और इस समीकरण को कोई चुनौती नहीं दे पाएगा।

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नीतीश का रहता जातीय गणित

दूसरी ओर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का लव-कुश समीकरण भी बेहद मजबूत है। कुर्मी और अति पिछड़ा वर्ग के वोटों पर उनकी गहरी पकड़ रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार का यह समीकरण भी इतना मजबूत है कि इसे तोड़ पाना आसान नहीं होगा।

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भाजपा और चिराग पासवान की स्थिति पर एक नजर

भाजपा ने फिलहाल प्रशांत किशोर के राजनीतिक प्रभाव का आकलन करते हुए ‘वेट एंड वॉच’ की स्थिति अपनाई है। पार्टी ने अभी तक इस मुद्दे पर खुलकर कुछ नहीं कहा है। वहीं, चिराग पासवान दलित वोट बैंक के दम पर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। वे भी प्रशांत किशोर की एंट्री को लेकर सतर्क दिखाई दे रहे हैं।

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बिहार के मुद्दों पर प्रशांत किशोर की पकड़

प्रशांत किशोर लगातार बिहार की बदहाली और विकास की कमी के मुद्दे उठाते रहे हैं। वे बिहार के विकास को लेकर बड़े-बड़े वादे कर रहे हैं। उनका दावा है कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है, तो वे बिहार को देश के पिछड़े राज्यों की सूची से निकालकर शीर्ष 10 राज्यों की श्रेणी में लाएंगे। उन्होंने रोजगार, पलायन, और इंडस्ट्री की कमी जैसे मुद्दों पर राज्य सरकार और भाजपा पर तीखे हमले किए हैं।

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क्या समर्थन वोटों में होगा तब्दील?

प्रशांत किशोर को अपनी पदयात्राओं में जनता से काफी समर्थन मिलता दिखाई दिया है। हालांकि, बड़ा सवाल यह है कि क्या प्रशांत किशोर इस समर्थन को वोटों में बदलने में कामयाब हो पाएंगे? जन सुराज (Jan Suraaj) की एंट्री से बिहार की सियासी लड़ाई और भी दिलचस्प हो गई है। अब यह देखने वाली बात होगी कि प्रशांत किशोर अपने सपनों को साकार कर पाएंगे या नहीं।

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