Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची में संशोधन को लेकर सियासत तेज हो गई है। चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) का आदेश जारी किया है, जिसे लेकर कई विपक्षी दलों ने नाराजगी जताई है। अब तृणमूल कांग्रेस (TMC) की सांसद महुआ मोइत्रा ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है और चुनाव आयोग के निर्णय को चुनौती दी है।
महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका
महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर चुनाव आयोग के 24 जून 2025 के आदेश को असंवैधानिक करार दिया है। याचिका में उन्होंने कहा है कि यह आदेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(a), 325 और 328 का उल्लंघन करता है और इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर गंभीर असर पड़ेगा। उनके अनुसार, यह कदम लाखों मतदाताओं को उनके वोट देने के अधिकार से वंचित कर सकता है।
नागरिकता प्रमाण की शर्त पर जताई आपत्ति
महुआ मोइत्रा ने याचिका में आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग पहली बार ऐसा नियम लागू कर रहा है, जिसमें पुराने मतदाताओं को भी नागरिकता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा। उनका दावा है कि इस नई प्रक्रिया से कई ऐसे लोग जो वर्षों से मतदान करते आ रहे हैं, उनका नाम अब मतदाता सूची से हट सकता है। इससे न सिर्फ उनके संवैधानिक अधिकार प्रभावित होंगे, बल्कि चुनाव की निष्पक्षता पर भी सवाल उठेंगे।
11 दस्तावेजों में से एक दिखाना अनिवार्य: चुनाव आयोग
बिहार चुनाव की तैयारी के तहत चुनाव आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान की घोषणा की है। इस प्रक्रिया के तहत 1 जुलाई से 31 जुलाई 2025 तक मतदाता सूची का संशोधन किया जाएगा। आयोग ने मतदाताओं को 11 दस्तावेजों की सूची जारी की है, जिनमें से किसी एक को प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा। यह प्रक्रिया राज्यभर में लागू की जा रही है।
1 सितंबर तक शिकायत दर्ज करने का मौका
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि संशोधित मतदाता सूची 1 अगस्त को प्रकाशित की जाएगी। इसके बाद नागरिकों को 1 सितंबर तक अपनी आपत्तियां और शिकायतें दर्ज करने का अधिकार होगा। यदि कोई व्यक्ति दस्तावेज प्रस्तुत करने में विफल रहता है, तो 30 अगस्त तक उसकी जांच की जाएगी और उसी के आधार पर तय होगा कि उसका नाम वोटर लिस्ट में शामिल किया जाएगा या नहीं।
बिहार विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया ने राजनीतिक गर्मी बढ़ा दी है। विपक्ष इसे मतदाता अधिकारों पर हमला बता रहा है, वहीं चुनाव आयोग इसे पारदर्शी चुनाव के लिए आवश्यक कदम बता रहा है। अब देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या रुख अपनाता है और क्या इसका असर आगामी चुनावी प्रक्रिया पर पड़ता है।