Anant Singh: बिहार के मोकामा से पूर्व विधायक और बाहुबली अनंत सिंह शुक्रवार की सुबह पटना के बेऊर जेल से रिहा हो गए हैं। अनंत सिंह (Anant Singh) सुबह करीब 5 बजे जेल से बाहर निकले, जहां उनका काफिला उन्हें उनके पैतृक गांव ले गया। उनके बेटे ने अहले सुबह जेल पहुंचकर उनका स्वागत किया। पटना हाई कोर्ट ने बुधवार को अनंत सिंह को उनके आवास से भारी मात्रा में हथियार, गोला-बारूद और विस्फोटक बरामद होने के मामले में बरी कर दिया था। कोर्ट ने AK-47 केस में सबूतों के अभाव में उन्हें बरी किया। पटना की सिविल कोर्ट ने कुछ साल पहले गैरकानूनी गतिविधियां अधिनियम के तहत अनंत सिंह को 10 साल की जेल की सजा सुनाई थी।
अनंत सिंह का बयान
जेल से बाहर आने पर अनंत सिंह ने कहा, “हमें न्याय मिला है और बाहर आकर बढ़िया लग रहा है।” उनके बेटे और पूर्व विधायक अंकित कुमार ने भी बयान दिया, “हम उत्साहित हैं कि मेरे पिता बाहर आ गए हैं। हमें हमेशा से विश्वास था कि वे बाहर आएंगे। उन्हें झूठे आरोपों में फंसाया गया था।” आपको बता दें कि अनंत सिंह के खिलाफ कई कानूनी मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें हथियार और गोला-बारूद की बरामदगी प्रमुख हैं। इन मामलों ने उनकी राजनीतिक करियर पर गहरा प्रभाव डाला है। हालांकि, अदालत से बरी होने के बाद उनके समर्थकों में खुशी की लहर है और वे उन्हें एक बार फिर सक्रिय राजनीति में देखना चाहते हैं।
विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य करार

जून 2022 में पारित आदेश के बाद अनंत सिंह को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य करार दिया गया था। यह मामला दो साल पहले उनके पैतृक आवास से AK-47 राइफल समेत गोला-बारूद बरामद होने के बाद दर्ज किया गया था। दूसरा मामला, पटना के सरकारी आवास से 2015 में बरामद एक इंसास राइफल की बरामदगी से संबंधित था। इस मामले में जुलाई 2022 में आदेश आया था।
विधानसभा में पत्नी का प्रतिनिधित्व

अनंत सिंह मोकामा से चार बार लगातार विधायक रह चुके हैं, मगर कोर्ट से दोषी करार दिए जाने के बाद उनकी विधायकी चली गई थी। उनकी पत्नी नीलम देवी अब विधानसभा में मोकामा का प्रतिनिधित्व करती हैं। नीलम देवी ने राजद के टिकट पर यह सीट जीती थी। हालांकि, कुछ महीने पहले वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू में शामिल हो गईं।
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बिहार की राजनीति में एक नया मोड़
अनंत सिंह की जेल से रिहाई और हाई कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के फैसले ने बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। यह घटना एक बार फिर से सवाल उठाती है कि क्या भारतीय न्यायिक प्रणाली में राजनीतिक हस्तक्षेप होता है? अनंत सिंह के मामले में सबूतों का अभाव दिखाना और बरी करना न्याय का हिस्सा है या फिर इसे राजनीति से जोड़कर देखा जाना चाहिए, यह सोचने का विषय है। अब देखना यह है कि आने वाले समय में उनके और उनके परिवार का राजनीतिक सफर कैसा रहेगा और वे अपने समर्थकों के विश्वास को किस हद तक कायम रख पाते हैं। अनंत सिंह की कहानी बिहार की राजनीति का एक प्रमुख हिस्सा है और इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।