Azim Premji: देश के जाने माने कारोबारी व उद्योगपति विप्रो कम्पनी के मालिक अज़ीम प्रेमजी के खिलाफ जारी एक जमानती वारंट में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच से बड़ी राहत मिली है. इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा खारिज कर दिया है. श्रम कानून के कथित उल्लंघन के मामले में कोर्ट ने कहा कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट लखनऊ ने इस मामले में अज़ीम प्रेमजी को तलब करने और उनके खिलाफ वारंट जारी करने में अपने विवेक का प्रयोग नहीं किया है. इसके अतिरिक्त न्यायालय द्वारा प्रकरण में संज्ञान लिए जाने के पूर्व कोई भी कारण अथवा आधार दर्शाए नहीं गए थे.
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अज़ीम प्रेमजी के खिलाफ जारी गैर जमानती वारंट निरस्त
बता दे कि, उच्च न्यायालय के न्याय मूर्ति जस्टिस शमीम अहमद की एकल बेंच ने एक निचली अदालत द्वारा अज़ीम प्रेम जी के विरुद्ध जारी सम्मन और गैर जमानती वारंट इस आधार पर निरस्त कर दिया कि किसी कम्पनी के अधिकारी, निदेशक, प्रबंध निदेशक या अध्यक्ष आदि के किसी अपराधिक कृत्य में आपराधिक इरादे के साथ सक्रिय भूमिका को साबित करने के लिए पर्याप्त सामग्री होने पर ही आरोपी बनाया जा सकता है तथा भारतीय दंड संहिता में परोक्ष दायित्व का कोई प्रावधान नहीं है.
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शमीम अहमद की एकल पीठ ने सुनावई करते हुए क्या कहा ?
बताते चले कि न्यायमूर्ति शमीम अहमद की एकल पीठ ने अज़ीम प्रेमजी की ओर से सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दाखिल अर्जी को मंजूर करते हुए यह आदेश पारित किया. इस मामले में सुनवाई पूरी करके कोर्ट ने 13 मई को आदेश सुरक्षित कर लिया था, जिसे बुधवार को सुनाया. कोर्ट ने कहा कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने परिवादी की ओर से पेश सुबूतों व अन्य दस्तावेजों का ठीक प्रकार से परीक्षण नहीं किया, जिससे उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई केस नहीं बनता है.
प्रेमजी के वकील ने क्या कहा ?
प्रेमजी के वकील करुणानिधि यादव का तर्क था कि विप्रो ने एक सर्विस प्रोवाइडर कंपनी मेसर्स जी फॉर जी सिक्योर साल्यूसन्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड से मैन पावर सप्लाई करने का समझौता किया था. समझौते में साफ था कि काम करने वाले न तो विप्रो के एजेंट होंगे और न ही उसके कर्मचारी ही कहलाएंगे. यह भी तय था कि उनका भुगतान भी सर्विस प्रोवाइडर कंपनी ही देगी. इसके साथ यह भी कहा गया कि कि प्रेमजी का लखनऊ के विप्रो के लोकल ऑफिस से प्रतिदिन के कामकाज से कोई लेना देना नहीं है.
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