मराठों को बड़ी सौगात,10% आरक्षण बिल महाराष्ट्र विधानसभा से पास

Mona Jha
By Mona Jha

Maratha Reservation Bill:मराठा समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत आरक्षण देने की काफी लंबे समय से मांग कर रहे मराठा कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल ने अनिश्चितकालीन अनशन किया, अब इसी कड़ी में आज महाराष्ट्र ने बड़ा फैसला लिया है, महाराष्ट्र की शिंदे सरकार ने 10 फीसदी आरक्षण देने के प्रस्ताव मुहर लगा दी है, अब शिंदे सरकार मराठा समुदाय को नौकरी और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण देगी, बता दें कि राज्य में पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा दी गई रिपोर्ट को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है।

वहीं अब CM एकनाथ शिंदे ने मंगलवार दोपहर यह आरक्षण विधेयक पेश किया, जिसे विधानसभा ने पारित कर दिया है, अब यह बिल विधान परिषद में रखा जाएगा, जिससे पास होने और फिर राज्यपाल की मुहर के बाद महाराष्ट्र के मराठा समुदाय की लंबे वक्त से चली आ रही मांग पूरी हो जाएगी।

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बिल में किस बात का है जिक्र?

भारत के संविधान के अनुच्छेद 30 के खंड एक में निर्दिष्ट अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के अलावा अन्य शैक्षणिक संस्थानों के साथ-साथ निजी शैक्षणिक संस्थानों, चाहे राज्य द्वारा अनुदान प्राप्त हो या नहीं, में प्रवेश के लिए कुल सीटों का दस प्रतिशत और कुल संख्या का दस प्रतिशत राज्य के नियंत्रण के तहत सार्वजनिक सेवाओं और पदों में सीधी सेवा भर्तियों में ऐसा आरक्षण सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए अलग से आरक्षित किया जाएगा।

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महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मसला क्या है?

  • महाराष्ट्र में एक दशक से मांग हो रही थी कि मराठा को आरक्षण मिले। 2018 में इसके लिए राज्य सरकार ने कानून बनाया और मराठा समाज को नौकरियों और शिक्षा में 16% आरक्षण दे दिया।
  • जून 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे कम करते हुए शिक्षा में 12% और नौकरियों में 13% आरक्षण फिक्स किया। हाईकोर्ट ने कहा कि अपवाद के तौर पर राज्य में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50% आरक्षण की सीमा पार की जा सकती है।
  • जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो इंदिरा साहनी केस या मंडल कमीशन केस का हवाला देते हुए तीन जजों की बेंच ने इस पर रोक लगा दी। साथ ही कहा कि इस मामले में बड़ी बेंच बनाए जाने की आवश्यकता है। इसके बाद मामला 5 जजों की बेंच के पास गया।
  • इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ओबीसी जातियों को दिए गए 27 प्रतिशत आरक्षण से अलग दिए गए मराठा आरक्षण से सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का उल्लंघन हुआ जिसमें आरक्षण की सीमा अधिकतम 50 प्रतिशत ही रखने को कहा गया था।
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