Jammu Kashmir News: जम्मू-कश्मीर की राजनीति में 16 अक्टूबर 2024 का दिन बेहद महत्वपूर्ण साबित हो रहा है। आज नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले हैं। यह शपथग्रहण समारोह इसलिए भी खास है क्योंकि यह अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव के बाद हो रहा है। वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस ने एक बड़ा और अप्रत्याशित फैसला लिया है।
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कांग्रेस का चौंकाने वाला फैसला
उमर अब्दुल्ला की शपथग्रहण से ठीक पहले कांग्रेस आलाकमान ने बड़ा निर्णय लिया है कि वह उमर अब्दुल्ला सरकार में शामिल नहीं होगी। हालांकि, कांग्रेस ने यह स्पष्ट किया है कि वह बाहर से अपना समर्थन जारी रखेगी। यह फैसला राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने इस चुनाव में गठबंधन करके जीत हासिल की थी। माना जा रहा था कि कांग्रेस सरकार का हिस्सा बनेगी, लेकिन इस निर्णय ने सभी को चौंका दिया है।
उमर अब्दुल्ला होंगे जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव था, जिसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन ने बहुमत हासिल किया। उमर अब्दुल्ला को इस गठबंधन का नेतृत्व करते हुए आज जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई जाएगी। शपथ ग्रहण समारोह श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर (SKICC) में आयोजित किया जाएगा। इस ऐतिहासिक अवसर पर जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा भी उपस्थित रहेंगे, जो अब्दुल्ला और अन्य मंत्रियों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाएंगे।
शपथ ग्रहण में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता होंगे शामिल
भले ही कांग्रेस ने उमर अब्दुल्ला सरकार में शामिल न होने का फैसला किया है, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता इस शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद रहेंगे। कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी इस समारोह में शामिल होने वाले हैं। कांग्रेस के इस निर्णय के बावजूद, उनकी उपस्थिति यह संकेत देती है कि कांग्रेस नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ अपने गठबंधन को जारी रखने के पक्ष में है।
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राजनीतिक विशेषज्ञों की राय
कांग्रेस के इस फैसले ने राजनीतिक विशेषज्ञों को भी हैरान कर दिया है। कुछ का मानना है कि यह फैसला कांग्रेस की रणनीतिक चाल हो सकता है ताकि वह अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पहचान बनाए रख सके। वहीं, कुछ अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय कांग्रेस के भीतर किसी आंतरिक असहमति या मतभेद का परिणाम हो सकता है।