Bharat Bandh 2024: बहुजन समाज पार्टी (BSP) की प्रमुख मायावती ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के खिलाफ संविधान संशोधन की मांग की है। मायावती ने भारत बंद के दौरान किसी भी प्रकार की हिंसा से बचने और इसे शांतिपूर्ण तरीके से आयोजित करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि बंद (Bharat Bandh) को प्रभावी और संगठित ढंग से संपन्न करना चाहिए ताकि सरकार को इस मुद्दे की गंभीरता का एहसास हो।
आकाश आनंद का निर्देश
बसपा प्रमुख के भतीजे आकाश आनंद ने भी पार्टी कार्यकर्ताओं से शांतिपूर्ण बंद में शामिल होने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा, “बसपा के कार्यकर्ता पार्टी के झंडे के साथ बंद का समर्थन करेंगे और इस आंदोलन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।” उन्होंने सोशल मीडिया पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलित और आदिवासी समुदायों में भारी नाराजगी है, और यह बंद उसी गुस्से का शांतिपूर्ण जवाब होगा।
जीतनराम मांझी ने जताया विरोध
बिहार में भारत बंद को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने इस बंद का समर्थन करते हुए इसे केन्द्र सरकार के खिलाफ विपक्ष का अहम कदम बताया है। राजद प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने कहा, “यह बंद केन्द्र की तानाशाह सरकार के खिलाफ विपक्ष का बिगुल है।” हालांकि, केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने इस बंद को ‘विपक्ष का भारत बंद’ बताते हुए इसका विरोध किया है।
राजस्थान प्रशासन सतर्क, स्कूल-कॉलेज बंद
राजस्थान में भी भारत बंद का व्यापक असर देखने को मिल सकता है। इसको लेकर राज्य प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं। राज्य के कई जिलों में स्कूल-कॉलेज और कोचिंग संस्थानों को बंद रखने के आदेश दिए गए हैं। जयपुर, बाड़मेर, भरतपुर, और अन्य जिलों में जिला कलेक्टरों ने शिक्षण संस्थानों को बंद रखने के निर्देश दिए हैं। भीलवाड़ा और अन्य जिलों में बंद के दौरान अस्त्र-शस्त्र, लाठी-डंडे लेकर चलने पर पाबंदी रहेगी। डीजे पर भावनाएं आहत करने वाले गाने बजाने पर रोक लगाई गई है। कई जिलों में इंटरनेट सेवाएं भी बंद रहेंगी ताकि किसी भी प्रकार की अफवाहों से बचा जा सके।
उत्तर प्रदेश में निषेधाज्ञा लागू, प्रशासन चौकस
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भारत बंद को देखते हुए प्रशासन ने पहले से ही निषेधाज्ञा लागू कर दी है। लखनऊ पुलिस ने 17 अगस्त से 14 सितंबर तक धारा 144 (अब 163) के तहत निषेधाज्ञा लागू की है। इस दौरान बिना अनुमति के धरना-प्रदर्शन करने, ड्रोन शूटिंग, ट्रैक्टर, बैलगाड़ी का प्रवेश और घातक पदार्थ लेकर आवाजाही पर प्रतिबंध रहेगा। लखनऊ पुलिस ने प्रशासन को हिदायत दी है कि किसी भी प्रकार की हिंसा न हो और इस बंद को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाया जाए।
मध्य प्रदेश में विशेष सुरक्षा इंतजाम
मध्य प्रदेश के ग्वालियर और चंबल क्षेत्र में पिछले बंद के दौरान हुई हिंसा को ध्यान में रखते हुए प्रशासन ने इस बार विशेष सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैं। डबरा और ग्वालियर में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया है और निगरानी के लिए ड्रोन कैमरों का उपयोग किया जाएगा। प्रदेश के कई दलित और आदिवासी संगठनों ने भी बंद का समर्थन किया है। बसपा प्रदेश अध्यक्ष रमांकांत पिप्पल ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट का फैसला दलित और आदिवासी समुदायों के खिलाफ है। हम इसका पुरजोर विरोध करेंगे।” जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) ने भी इस बंद का समर्थन करते हुए अपने समर्थकों से शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करने की अपील की है।
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बिहार में बढ़ी सक्रियता
बिहार में भारत बंद के आह्वान को लेकर सक्रियता बढ़ गई है। ऑल बिहार आंबेडकर कल्याण छात्रावास संघ के अध्यक्ष अमर आज़ाद पासवान ने कहा, “केंद्र सरकार हमारे आरक्षण के अधिकारों को छीनने की कोशिश कर रही है। हम इसके खिलाफ हैं और 21 अगस्त को पटना में बड़ी संख्या में छात्र जुटेंगे और रेल चक्का जाम करेंगे।” बिहार के प्रमुख विपक्षी दल राजद ने इस बंद का समर्थन किया है, जबकि लोजपा (रामविलास) और ‘हम’ पार्टी ने इस पर अब तक कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है। राजद ने इसे केंद्र सरकार के खिलाफ विपक्ष का महत्वपूर्ण कदम बताया है।
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पिछले बंद के अनुभव से सिखते हुए कड़े इंतजाम
यह याद रखना जरूरी है कि पिछले बंद के दौरान देशभर में हिंसा हुई थी। खासकर, 2 अप्रैल 2018 को दलित संगठनों द्वारा बुलाए गए बंद में मध्य प्रदेश में छह लोगों की मौत हो गई थी। इसे ध्यान में रखते हुए इस बार प्रशासन पहले से ही अलर्ट पर है और बंद के दौरान किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए तैयार है।
भारत बंद का संभावित असर
भारत बंद का असर देशभर में व्यापक हो सकता है। इस बंद के दौरान देशभर के संवेदनशील क्षेत्रों में विशेष सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं। अगर बंद शांतिपूर्ण तरीके से होता है, तो यह दलित और आदिवासी समुदायों के मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुखता से उठाने में मददगार हो सकता है। हालांकि, हिंसा की स्थिति में यह आंदोलन नकारात्मक छवि बना सकता है और इससे समुदायों के प्रति सहानुभूति की बजाय आलोचना का सामना करना पड़ सकता है।
यह समय सरकार और प्रशासन दोनों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह बंद न केवल एक राजनीतिक मुद्दा है, बल्कि सामाजिक न्याय की लड़ाई का हिस्सा भी है। अगर प्रशासन इस बंद को शांतिपूर्ण और संगठित तरीके से निपटाने में सफल होता है, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का एक मजबूत उदाहरण पेश कर सकता है। लेकिन अगर हिंसा होती है, तो यह देश में सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर सकता है और इससे उत्पन्न स्थिति को संभालना और भी मुश्किल हो जाएगा।
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क्या होगा आगे?
भारत बंद के बाद सरकार और विपक्ष दोनों के बीच की दूरी और भी बढ़ सकती है। ऐसे में यह देखना अहम होगा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या रुख अपनाती है और दलित-आदिवासी समुदायों की मांगों पर क्या प्रतिक्रिया देती है। आने वाले समय में इस मुद्दे का राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर गहरा असर हो सकता है, और यह तय करेगा कि देश किस दिशा में आगे बढ़ेगा।